My first Magazine April 2018 | Page 31

POETRY नन्ह ीं सी बिटिया... बिटिया के जन्म लेने पर, अब तो ये आलम है, लिए ही ला रही थी बेर | चारों तरफ खुशियों का हो रहा संगम है | अगर बिटिया का घर में सुनाई न दे चहचहाना, उसकी एक मुस्कान बना दे हम सबको दीवाना, सूना सा हो जाता है पल भर में यह आशियाना | उसके एक आँ सू पर थम जाए यह सारा ज़माना | घर पर लौटकर करे वो खाने के लिए सबको एक साथ तैयार, नन्हें- नन्हें हाथों से थामें अपने मम्मी – पापा का हाथ, हर रोज लगे जैसे घर पर मना रहें हो त्योहार | जीवन भर ख़त्म नहीं होता है, ये अनूठा और अनोखा साथ | बार-बार जब वह दे खे दर्पण में अपना लिबास, छोटे –छोटे पैरों से नापती है घर का आँ गन, तब-तब होता है माँ को उसके बड़े होने का एहसास | माँ से मांगती है, उसके हाथ में पहना हुआ कंगन | बेटियाँ ही हैं जो दे ती हैं सबको मान - सम्मान, पापा के कंधे पर करती है रोज सवारी, तभी तो होता है इनके संस्कारों का हर जगह गुणगान | अपने माँ बाप की नन्हीं सी....प्यारी सी...ये दु लारी | बेटियाँ ही हैं जो जीवन को करती हैं संपूर्ण, स्कूल जात