Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 71

Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725
जैसे तैसे वह काम पूरा कर लेता है । ऐसी मस्थमत में शोध काया के मनष्ट्कर्षा स्पसे रूप में कै से आ सकते है ? मनष्ट्कर्षा भी वह मलख नहीं पाता । शोधप्रबंध जांचने की मवमध एक अलग शोध का मवर्षय हो सकता है । इस प्रकार के शोधप्रबंध कचरे के ढेर का महस्सा बन जाते हैं । मवश्वमवद्यालय अनुदान आयोग द्वारा प्रमवमध सुमनमित कराने के बावजूद इस प्रमवमध के प्रमत गंभीरता से न देखने के कारि शोधकाया में भारत मपछड़ रहा है ; यह बात सवामवमदत है । अनुसंधान में दुमनया के १३० देशों में भारत का स्थान कभी भी १०० के अंदर नहीं आ पाया है । यह मचंताजनक मस्थमत है । शोध में सुधार हमारी अमनवायाता है । इस काया के प्रमत शोधकतााओंको अमधक सतका , समक्रय , पररश्रमी , बनाने की ्टमसे से तथा मनमित मदशा में काम करने की ्टमसे से प्रयास जरुरी हैं । यही वह प्रश्न है मजसके उत्तर ढूँढने का एक छोटा सा प्रयास इस काया द्वारा मकया जाना है ।
िोधकायक का अंतर अनुिािनीय दृसि िे महयि ( Interdisciplinary Approuch )
अनुसंधान की एक मनमित पद्धमत है ; मजसे अनुसंधान प्रमवमध कहा जाता है । इस प्रमवमध के अनुसार ही शोध काया होना चामहए । इस प्रमवमध से , मकसी भी संकाय के मकसी भी मवर्षय में शोध करनेवाले शोधकत ा को पररमचत होना जरुरी होता है । प्रो . यशपाल ने भारतीय ज्ञान आयोग द्वारा अंतर अनुशासनीय अध्ययन के महत्व को सबसे पहली बार प्रमतपामदत मकया । उसके बाद अंतर अनुशासनीय ्टमसे से मकए जानेवाले अध्ययन का महत्व बढ़ गया । मवश्वमवद्यालय अनुदान आयोग अंतर अनुशासनीय शोध पर बल देता है । लघु और बृहत प्रकल्प काया को स्वीकृ मत देते समय शोध मवर्षय का अंतर अनुशासनीय ्टमसे से महत्व देखा जाता है । यह जो छोटा सा प्रकल्प काया मकया जा रहा है इसका महत्व
तो सभी ज्ञान शाखाओं की ्टमसे से है । अनुसंधान प्रमवमध का अध्ययन मकए मबना मकसी भी मवर्षय में शोध काया मकया ही नहीं जा सकता । मशमला में आयोमजत १२४ वे उन्मुखी कायाक्रम में मवमभन्न राज्यों के १६ मवर्षयों के प्रमतभागी समम्ममलत है । इन सभी की ्टमसे से इस मवर्षय का महत्व है । इनमें कु छ शोध मनदेशक हैं , कु छ मवद्यावाचस्पमत है , कु छेक को अभी मवद्यावाचस्पमत बनना है । सभी की ्टमसे से इस मवर्षय का महत्व मनमवावाद है । यह शोध प्रकल्प अंतर अनुशासनीय शोध प्रकल्प है ।
िोध सिषय का राष्ट्रीय एिं अंतराकष्ट्रीय दृसि िे महयि
ऊपर बताया जा चुका है अनुसंधान के क्षेत्र में भारत बहुत मपछड़ रहा है । मवश्वमवद्यालय अनुदान आयोग ने मवद्यावाचस्पमत उपामध के मलए पंजीकृ त शोधामथायों के मलए एक पाठ्यक्रम ( Ph . D . Course – Work ) अमनवाया मकया है । इस पाठ्यक्रम में चार प्रश्नपत्रों में पहला प्रश्नपत्र अनुसन्धान प्रमवमध का भी है । हमारे यहाँ बहुत अच्छी – अच्छी योजनाएँ बनती है ; परंतु अमल में लाते समय उसका मूल रूप बच नहीं पाता , यह वास्तमवकता सवामवमदत है । मकसी भी योजना का प्रत्याभरि ( Feed – Back ) लेने की पद्धमत का अभाव यहाँ है । यमद अनुसंधान प्रमवमध का गंभीरता से पालन होता तो हम अनुसन्धान के क्षेत्र में अव्वल न सही , पहले २५ में तो होते । यह प्रश्न अनुसंधानकताा को भी छलता है । यह अनुमान जरुर लगाया जा सकता है मक कही कोई सुराख जरुर हो सकता है ; मजसके कारि अनुसंधान प्रमवमध का गंभीरता से अध्ययन नहीं हो रहा है । इस सुराख को ढूँढ़ने का प्रयास ; यह शोध काया है । इस पाठ्यक्रम की व्यावहाररकता का स्वरूप क्या है ? जमीनी स्तर पर यह प्रमवमध पहुँच चुकी है क्या ; इसे पहचानना राष्ट्रीय
Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 . वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017