मेरे चन्द्द हाइकु
Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725
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मेरे चन्द्द हाइकु
ियया िमाक ' कीसतक '
गुजरे पल उग आती झुररायाँ उम्र डाली पे ।।
दौड़ता अश्व जीवन पथ पर मन सारथी ।।
पूछते बच्चे आँगन औ तुलसी ममलते कहाँ ।।
मदन गौरैया चुगती जाती दानें उम्र खेत का ।।
नये सृजन रचे परमेश्वर धरा चाक पे ।।
उदास आत्मा ।।
सकिान
मचलमचलाती जीवन की ये धूप वर्षाा तू कहाँ ।।
जीवन पथ मसफा संघर्षारत रोये मकसान ।।
सूखी है आँखे धरती है उदास इंद्र नाराज ।।
फटी जमींन फसल हुए नसे जीवन व्यथा ।।
गीला है मन बस एक उपाय खुद की हत्या ।।
हमारा मन कमजोर पमथक
कड़वा सच होते ही हैं अनाथ सारे मकसान ।।
Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 . वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017