Jankriti International Magazine/ जनकृसत अंतरराष्ट्रीय पसिका
िासहसययक सिमिक: हाईकु
ISSN: 2454-2725
सिडम्बना-
हाइकु- डॉ अचक ना सि ह ं चाह म झ ु स
बेसियाँ- प ि ू ा समपाि की ?
प्रसव पीड़ा स्वयं स्वाथी ।
नहीं, ये तड़प तो
बेटी होने की ।
तारे मगनत
देखती रही राह,
बेटी होने की,
त म ु न आये ।
स न ु खबर
म र ु झाया है , म ख
।
बाट जोहती
स र ू ज उगने की
पाँव पसार
बदली छाई ।
अब सोयेगा मपता
बेटी ब्याह दी ।
कराहती मा
दे रही आवाज
लाडली बेटी
बेटा है ध त ु ।
बढ़ी द र ू ी इतनी
बनी बहू जो ।
स ख
ी धरती
हो उठे गी व्याकुल
पाँव प ज ू त
पानी न डालो ।
बेटी हुयी पराई
वाह री रीत
Vol. 3 , issue 27-29, July-September 2017.
डॉ अचकना सिंह
गोमती नगर एक्ििेंिन
लखनऊ,
वर्ष 3, अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017