Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 63

Jankriti International Magazine/ जनकृसत अंतरराष्ट्रीय पसिका आिान नहीं है बद्री नारायण लाल हो जाना िुिील स्ितंि मबहार कम्य म ु नसे पाटी के इमतहास में 21 मई 2017 कभी नहीं भ ल पाने वाली वह तारीख है , जब साम्यवादी आन्दोलन का चमचमाता लाल मसतारा अपने सामथयों को हमेशा के मलए अलमवदा कह गया। गत 31 मई को पटना के आईएमए सभागार म भारतीय कम्य म ु नसे पाटी ने मदव ग ं त कॉमरे ड बद्री नारायि लाल की स्मृमत में सवादलीय श्रद्धांजमल सभा का आयोजन मकया। श्रद्धांजमल सभा में बद्री बाबू की जीवनी और उनके योगदानों पर मवस्तार से बातें हुई। तमाम वक्ताओ ं ने उनसे ज ड़ ु े संस्मरि साझा मकए। अपनी सरलता और सहजता से मकसी को भी प्रभामवत कर लेने की अमद्वतीय क्षमता के धनी बद्री बाबू का व्यमक्तत्व मवमवधरंगी आयामों ममलकर बना था। वे एक सच्चे माक्सावादी, कमाठ संगठनकताा और मवधायी जीवन में ईमानदारी की ज्वलंत ममशाल होन के साथ-साथ एक बेहतरीन एवं प्रेरक मपता थे। दरअसल, सबके प्यारे बद्री बाबू की जीवन गाथा को मकसी एक श्रद्धांजमल सभा में समेट पाना संभव ही नहीं है। और न मकसी एक आलेख में उनके जीवन क हर पहलू को छू पाना संभव है। श्रद्धांजमल सभा म बोलते हुए वयोवृद्ध कॉमरे ड गिेश श क र मवद्याथी न बद्री बाबू के जीवन-संघर्षा को एक वाक्य में समामहत करते हुए कहा था मक “बद्री बाबू को अर्गर सच्ची श्रद्धा ज ं शल देनी है और अर्गर हमारे अन्दर जरा भी कम्य श ु नष्ट श द ं ा है िो अपने आस-पास जहाीँ कहीं भी िोषण हो रहा हो, उसके शखलाफ लड़ा खड़ी कीशजए ।” कॉमरे ड गिेश श क र मवद्याथी ने बद्री बाब को तब से देखा था जब वे मशक्षक की नौकरी छोड़कर प्रमतब म ं धत कम्य म ु नसे पाटी को अपना जीवन सममपात करने आए थे। उन्होंने भ म ू मगत रहकर पाटी का काम श रू मकया था और आमखरी सांस तक उनकी सबस बड़ी मचंता पाटी और संगठन ही थी। Vol. 3 , issue 27-29, July-September 2017. ISSN: 2454-2725 अभी चार महीने पहले ही (मदसंबर 2016 में) उनको पेसमेकर लगाया गया था। अस्वस्थ्य होने की अवस्था में भी कोई ऐसा पाटी कायाक्रम नहीं था, मजसमें मकसी य व ु ा की तरह बद्री बाबू शाममल होने के मलए आत र ु न रहते हों। असल में उनके मलए जीव न में पाटी- संगठन से बड़ी कोई और प्राथममकता थी ही नहीं। अपने जीवन के आमखरी कायाक्रम में वे पत्नी और घरवालों के हजार बार मना करने के बावज द ू खगमड़या पाटी संगठन सम्मेलन में भाग लेने रेन स चले गए, जबमक डॉक्टरों ने उनको रे ल यात्रा नहीं करन की सख्त महदायत दी थी। वहीं जाकर बद्री बाबू को तेज ब ख ार आया। सामथयों ने उनको सम्मेलन में भाग न लेकर आराम करने को कहा। बद्री बाबू ब ख ार की दवाई लेते रहे लेमकन उनका मन होटल में रुक कर आराम करने में नहीं लगा। वे दवाई खाकर रोजाना सम्मेलन सभागार में सबसे पीछे जाकर बैठ जाया करते थे। अपनी आमखरी साँस तक बद्री बाबू इस ब ख ार से पीमड़त रहे। बद्री बाबू उन तथाकमथत कम्य म ु नसेों में से नहीं थे जो वैचाररक रूप ब ल ंद और बेहद वाचाल होते हैं लेमकन सामामजक कुरीमतयों और धाममाक अ ध ं मवश्वासों क मामले में बगलें झाँकने लगते हैं। 1973 में उनके मपता स्वगीय नोखी लाल का मनधन हुआ। उस समय का समाज प्रगमतशील मवचारों को आसानी से स्वीकार नहीं कर पाता था, मफर भी सामामजक मान्यताओ ं क मवरुद्ध खड़े होकर बद्री बाबू ने मपता के देहांत क उपरा त ं मकसी तरह का कमाकांड नहीं होने मदया। बद्री बाबू मृत्यू के बाद के जीवन या प न ु जान्म जैसी धारिा को अ ध ं मवस्वास मानते थे, इसमलए उन्होंने रामप र ु क समस्त मनवामसयों को स म ू चत कर मदया था मक उनक मपता के दाह-संस्कार के बाद मकसी िाह्मि को भोज नहीं कराया जाएगा। इकलौते प त्र ु होने के बावज द ू मपता की मृत्यू के बाद न तो उन्होंने अपने मसर के बाल म ड ं ु वाए और न ही मकसी तरह का मक्रया-क्रम (तेरहवीं आमद) मकया। ऐसा ही 1994 में उनकी माताजी की मृत्यू के समय हुआ। बद्री बाबू मकसी कॉमरे ड को वर्ष 3, अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017