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थे और उस सांझ तारे को एकदम से गले लगा लू ।
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ही कप्तान का आवाज़ सुनाई मदया मक हम मंमजल के |
मखडकी के अंदर से ही हाथ फै ला कर मैने उसकी |
करीब पहूँच गए हैं और कु छ ही देर में हमारा हवाई |
मकस्सी ली । |
जाहज लेंमडंग हो जाएगा । मैने आखरी बार उस सांझ |
हवाई जाहज को मेरे मन में चल रहे इन सारे |
तारा को देखा । वह मेरे बहुत ही करीब नज़र आ रही |
ख्यालों का क्या पता था वह तो अपनी ही धुन में |
थी , एक पल में लगा मैने बचपन में देखी हुई वह |
उड़ती जा रही थी और मैं अपनी दुमनया में खोई हुई |
सपना साकार हो गयी । मैं बहुत देर तक उस नीली |
थी । जैसे की खराब मौसम का ऐलान हुआ मैं सीट |
नीली अंबर में बादलों के बीच उस सांझ तारे की |
बेल्ट कस कर बांध कर रखी । कु छ ही देर में वह सफे द |
आँख में आँख ममला कर सैर ही तो कर रही थी । |
बादल कहीं गायब हो गए भूरे रंग के बादलों के बीच |
कु छ ही देर में हमारी हवाई जाहज भूमी की ओर |
हवाई जाहज उड़ता चला । आगे जाते जाते वह रंग |
गतीमान होने लगी । वह बादलों से मनकल कर धीरे |
और भी गहरा होने लगा । कहीं कहीं मबजली कड़कने |
धीरे धरती के तरफ बढने लगा । मेरी सामने मखडकी |
लगी । मबजली की कड़कती आवाज़ हवाई जहाज की |
पर बाररश के बू
ँदे टपटपाने लगे थे । एयर पोटा की
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आवाज़ में कहीं गुम हो रही थी पर भूरे रंग के बादलों |
मबजली , बाररश के साथ साथ हमारा स्वागत कर रही |
के बीच से मबजली की झलक मदख रही थी । मैं समझ |
थी । न जाने क्यों कु छ पल के मलए मेरे आँखें नम हो |
गई की धरती पर मबजली चमक रही होगी मजसकी |
गए । लगा मक ये अश्रु वो मपता के तो नहीं जो अपनी |
झलक बादलों के उपर तक मदख रही है । लेमखका |
बच्ची के तलाश में भटक रहा था । क्या यह अश्रु |
अगर ररयमलटी में जीने लगी तो लेमखका कै से बनीं ? |
अपनी बच्ची को पाकर उससे ममलने मक ख़ुशी से |
मैं तो सपनो को घेरे में जी रही हूँ । ररयमलटी में भी कु छ |
होगी या ...... मफर ... खोने की दुःख से ..? |
नया ढूँढ लेना उस नया पन में एक नयी कहानी ढूँढ |
मफर क्या था धरती की हर चीज मुझे धू
ंधली
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लेना ही तो लेमखका की खामसयत है । नए नए शब्दों |
सी नजर आने लगी । हमारी मुम्बई से कोलकत्ता की |
से एक नयी कहानी रचना उन कहामनयों में रंग भर कर |
सफर इस तरह रहा । हवाई जाहज धरती को छू ते ही |
पाठकों को पेश करना कोई आसानी बात नहीं थी । |
हम सब लेमखकाएँ अपने अपने सामान कै ब से |
इस बात पर एक बात याद आ गई बहूत खूब कहा है |
मनकालने लगे और आगे की सफर की ओर बढ़ गए |
मकसीने और मबल्कु ल सही कहा है , " जहाँ पहूँच न |
। |
पाता है रवी वहाँ पहूँच जाता है कवी " । वाह ! | |
यही खयालात मेरे मन को छू गई , उन कड़कती |
लता तेजेश्वर |
बादलों को देख कर मेरे मन का ड़र बाहर उभर आया |
Mob . no : 9004762999 |
। जगह जगह मबजली की झलक बादलों के उपर से | |
टचा की रोशनी जैसी नज़र आ रही थी । पल भर के | |
मलए लगा जैसे मकसी मपता ने अंधेरे में अपनी रास्ता | |
भटकी हुई बच्ची की तलाश में टचा लेकर ढूँढ रहा हो | |
। मदल में भय और ममता मलए कड़कड़ाती और | |
थरथरााती आवाज़ से अपनी लाड़ली बेटी को पुकार | |
रहा हो । एकदम से मेरे रोंगटे खड़े हो गए और रोम रोम | |
काँप उठे । मेरी अपनी बेटी की याद आ गई और मैं | |
सपनों को तोड़ कर सीधी बैठ गई । बहुत देर तक उन | |
आवाज़ों को महसूस करती रही । मबल्कु ल उसी वक्त | |
Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 . |
वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017 |