Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 60

Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725
मक्शद था । साथ ही हमारा राष्ट्र भार्षा महंदी को पािात् देशों में एक मंच देना और बेटी बचाव आंदोलन की प्रचार भी हमारे मक्शद में शाममल थी । मैने मखडकी से बाहर देखा प्लेन धीमी गती से मनकल कर रफ्तार पकड़ चुकी थी । कु छ ही पल में हम मु ंबई की धरती छोडने ही वाले थे ।
एरोड्रम में जगह-जगह हवाई जाहाजें खड़ी थी । मकसी ने अभी अभी उड़ान भर कर आराम कर रहा था तो मकसी फ्लाइट को उड़ान भरने से पहले की सजावट की जा रही थी । मकसी हवाई जाहज को नहालाया जा रहा था तो मकसी जाहज गभावती ममहला की तरह लोंगों को शरीर में मलए रास्ता मक्लयर होने का इंतजार कर रही थी । तरह तरह की उड्डन जाहाज थे । कई छोटे तो कई बड़े , कई प्राइवेट प्लेन थे तो कोई सरकारी । जैसे की हमारी फ्लाइ मु ंबई की ममट्टी को छोडकर आकाश की तरफ उछल पड़ी वैसे ही खुशी और ड़र का एक मममश्रत भाव मन में कसमकस हो रहा था । जैसे की मुझे इस मरप में जाने की इजाजत ममलगई मैं तो बहुत खुश थी । साथ साथ घर न लौटने की ड़र भी था जो मक अक्शर हवाई जाहाज के हादसों के चलते जो मन में होती रहती है ।
मैं सीट बेल्ट बांध कर पीछे की तरफ आराम से बैठने की कोमशश की । तब एयर होस्टेस की बूट की ध्वमन ठक ठक कर सुनाई दी । वह चकलेट की टोकरी लेकर सामने रखी मैं कु छ चकलेट लेकर टोकरी वापस कर दी मफर मखडकी की ओर देखा । मखडकी से धरती का नज़ारा बहुत खूब सूरत नज़र आ रहा था । बढ़ते हुए गती के साथ साथ धरती पर चीजें छोटे छोटे और बहुत छोटे मदखने लगे । उपर से पूरी मुबंई शहर मदख रहा था । गमतशील गामडयाँ फ्लाइ ओवर पर मचमटयों सी नज़र आ रही थी । बड़ी बड़ी इमारतें धरती पर नाक
शहर को छू कर मनकल रहा था । मुबंई की मेराइन ड्राइव भारत माता को पहनाई हुई हीरे जेवरात की नेक्लेस की तरह खूब जगमगा रही थी । इसमलए मेराईन ड्राइव को डायमंड नेकलेस भी कहा जाता है । मु ंबई की लंबे खुब सूरत मिड्ज और मु ंबई की शान सी-मलंक की नज़ारा तो खासमखास था । धीरे धीरे सारे नज़ारे आँखों से ओझल होने लगे ।
हमारी हवाई जाहज आवाज़ करते हुए बादलों में प्रवेश करने लगा । समय समय पर फ्लाइट की कप्तान बाहर की मौसम और फ्लाइट की जमीन से उंचाइ के बारे में सचेत कर रहे थे । हम में से कु छ बातें करने में मनमनन थे तो कु छ हमारे अगले कायाक्रम के बारे में चचाा कर रहे थे । कु छ हंसी मजाक कर रहे थे तो कु छ नींद की दुमनया में सैर कर रहे थे । बीच बीच में शेर शायरी का चटखा खूब मज़ा आ रहा था ।
समय ६बजकर १० ममनट हो चुका था । जैसे की फ्लाइट बादल में प्रवेश करने लगा धरती का नज़ारा मबल्कु ल ही मदखना बंद हो गया । जहाँ भी देखो सफे द तैरते हुए बादल । जैसे की दूध फशा पर मगर कर सफे द हो गई हो और मलाई जगह जगह अलग अलग सैप में दूध पर तैर रही हो । कहीं पलता सा एक सफे द चद्दर जैसी एक परदा मजसके अंदर से कहीं नीला आसमान मदख रहा है तो कहीं गाढा मलाई से भरी पाहड जैसी बादलें । जब इन बादलों से हवाइ जाहज रगड़ कर चलता तब आवाज़ समहत मवमान महलता ड़ु लता हुआ महसूस होता रहता ।
अचानक ही कप्तान की आवाज़ सुनाई दी खराब मौसम की चलते सुरक्षा के खातीर बेल्ट लगा कर बैठने की सूचना दी गई । तब एयर होस्टस नाश्ता का पैके ट के साथ पानी ले कर पहूँची । मेरा ध्यान कु छ समय के मलए नीला आसमान से हट कर उस एयर हस्टेस के उपर कें मद्रत हुई । ' थैक्यू ' कह कर मैने पैकट ले ली । खोल कर देखा एक सॉ्डमवच प्लामस्टक् से
रगड़ते मदख रहे थे । मु ंबई का भूगोल रुप रेख समहत मबजली की रोशनी से मबंदूओंसी सजाई हुई मदख रही थी । प्रशांत महा सागर की एक छोर मुबंई की गेट वे से मनकल कर मेराइन ड्राइव और चौपाटी से होकर लपेटे हुए साथ ही एक सॉस का पैके ट कु छ भूने हुए Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 . वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017