Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 59

Jankriti International Magazine/ जनकृसत अंतरराष्ट्रीय पसिका िासहसययक सिमिक: िंस्मरण मैंने देखा है बादलों के आगे एक दुसनया और भी लता तेजेश्वर मेरी फ्लाइट छुटने वाली थी। मैं मखडकी क पास वाली सीट पर बैठे सोच में मनमनन थी। मैं पहली बार अके ले घर और अपनी देश से द र ू जा रही थी। मेरे पती तेज श्व े र म झ ु े इन्टरनशनल एरोड्रम तक छोड कर घर वापस लौट गए। वहाँ मेरी बाकी दोस्तों ने भी इसी फ्लाइट का इ त ं जार कर रहे थे । हम सब साथ में साल के द स ू रे महीना फे ि व ु ारी के 21 तारीख को रात 6-30 बजे भ ट ू ान यात्रा के मलए घर से मनकले थे। हमारा फ्लाइट रात के 9 बजे की थी। हम सब ने मटकट चैमकंग और पासपोटा की सारे मनयमों को पालन करत हुए फ्लाइट के अ द ं र पहू च ँ े। अपना सामान कै ब में रख कर मैं अपने सीट पर जा बैठी। यात्री एक एक कर अपने सीट में बैठ रहे थे। उसी वक्त मेरी मेबाइल बज उठी । तेज का फोन था । दो ममनट बात कर रखमदए । म झ ु े पता था जब तक में सकुशल पहू च ं कर उनस बात कर न लेती तब तक वह मचंमतत रहेंग । े मैंने मखडकी से बाहर देखा एरोप्लेन को सट कर लगाई हुई सीमढयाँ हटाई जा रही थी । कुछ ही पल में मेरी फ्लाइट छूटने को तैयार थी। एयर होस्टेस हमारी स्वागत करते हुए सीट बेल्ट बांधने की स च ू ना दी । म अपना फोन बंद करने से पहले मेरे पती और बेटी मेघा से आखरी बार बात की । कॉप्टेन मनोहर जोशी न थोडी ही देर में प्लैन उडान भरने की स च ू ना दी । उसक साथ ही सारे स र ु क्षा की चेतावनी और हादसे के दौरान ख द ु को महफूस रखने के मलए जाने वाले सार जानकारी दी गई । Vol. 3 , issue 27-29, July-September 2017. ISSN: 2454-2725 गोरी गोरी स द ं ु र स द ं ु र जवान एयर होस्टेस लाल और ग ल ाबी रंग की मलपमस्टक लगाए हुए थे जैसे अभी अभी ब्य म ु ट पालार से मेकअप करके फ्लाइट म चढी हो । पैर में काले रंग की नेट कपडे से बनी सक्स घ ट ु नों से उपर तक ढके हुए थे और उसके उपर पए ट ं ेड काले रंग की ब ट ू ् स उनकी पहनावा को और भी ख ब ु स र ू त बना रही थी । शरीर पर गाढा नीले रंग की टाइट जॉके ट जो शरीर की सौसेव के अलग अलग अंगों को बारीकी से मदखा रहे थे । वही रंग की स्कटा कमर स घ ट ु नों तक ढक रहे थे । वे अपने बालों को पीछे की और कसकर बांध कर रखे थे । उनकी ब ट ू की ठक ठक आवाज बार बार मेरे ध्यान भनन कर रही थी । मैं लता तेज श्व े र के नाम से पहचानी जाती हूँ । संतोर्ष मश्रवास्तव जी ने जब भ ट ु ान यात्रा की प्रस्ताव मेरे सामने रखी मैं तो उछल पडी थी। लेमकन संसाररक दौर से चलते मेरा इस कायाक्रम में भाग लेना हो पाएगा की नहीं इस मममांसा में थी । लेमकन तेज श्व े र ने मेरा यह मममा स ं ा को द र ू कर मदया ।जैसे की मैने स त ं ोर्ष जी क इस प्रस्ताव की बारे में बताया त र ु ं त ही उन्होंने कहा आप को भी जाना चामहए । यह बात स न ु कर मेरी ख श ी का अ त ं नहीं था। मैं त र ु ं त ही तैयार हो गयी। इस तरह संतोर्ष मश्रवास्तवजी के साथ साथ मवद्या मचटकोजी, रोचना भारती जी क्रीष्ट्ना खत्री जैसी बडे बड रचनाकारों के साथ कुछ मदन मबताने का सौभानय प्राप्त हुई। इनके अलावा अन य ु ा दलवी मममथलेश कुमारी आदी प्रम ख ममहला लेमखकाएँ भी इस यात्रा म शाममल थीं । इन सब को मैं पहली बार ममली मगर ऐसा लगा की जैसे मैं बहुत पहले से उन्हें जानती हूँ । मेरा ख श ी का तो अ त ं नहीं था। हम सब साथ मनकल पडे। हमारा मक्शद द स ु रे देशों में जाकर लोगों से मेल ज ल बढ़ाना और उनकी रोजमराा मज द ं गी के अह जानकारी हामसल करना था । पािात् देशों के लोगों की जीने की समलका उनकी ररती ररवाजें उनकी रहन सहन और उनकी जीवनी पर मलखकर लोगों को पािात देशों की तौर तरीके से रूबरू करवाना हमारा वर्ष 3, अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017