Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 56

Jankriti International Magazine/ जनकृसत अंतरराष्ट्रीय पसिका मेरी पहली हिाई यािा ISSN: 2454-2725 घ म ु क्कड़ी हमारी भारतीय संस्कृ मत की पहचान रही हैं। महन्दी सामहत्य के आध म ु नक य ग ु में ‘यात्रा-वृतांत ’ मवधा का जन्म ही इसी घ म ु क्कड़ी का पररिाम हैं। मेरे घ म ु क्कड़ी के शौक को मवकमसत करने मे मपताजी का बड़ा योगदान रहा हैं। गमी की छुरट्टयों में जहाँ आस- पड़ोस के बच्चे नाना-नानी के घर छुरट्टयाँ मनाने जात थे ,वहीं मै मपताजी के साथ ध प ू ढलने पर गाँव क आस-पास की जगहों पर मनकल पड़ती थी। हरे -भर खेत और उनके बीच खड़ा फसल का रक्षक ‘मबज क ा’ आज भी म झ ु े नहीं भ ल ता। शाम को खेत मकनारे बनी झोपड़ी के बाहर हरी घास पर लेटे-लेटे ऊपर आसमान में पमक्षयों को मनहारना म झ ु े बहुत भाता था। उन्हे आकाश की उचाइयों को यू मापते देख मन न जाने मकतनी आकांक्षाओ ं से भर उठता था। काश ! में भी इनकी तरह आसमान से धरती देख पाती-जैसी इच्छाएँ बलवती हो उठती। उस समय तो ये सब असम्भव ही लगता था मकन्तु वतामान में हवाई- जहाज जैसे यातायात के संसाधनो तक मध्यम वगा की पहु च ँ ने उस सपने को साकार मकया तब, जब म झ ु मदल्ली से औरंगाबाद एक सामहमत्यक कायाक्रम म जाने का अवसर ममला। जब बात मकसी भी नए और ‘प्रथम’ अन भ ु व की हो तो वह स्वयं में वैसे भी अमभभ त ू करनेवाला होता हैं मफर चाहे वह पहले बच्च का जन्म हो, पहली मकताब का लोकापाि हो अथवा कोई पहली हवाई-यात्रा। इससे प व ू ा इसे मैने आसमान में अथवा मफल्मों में ही देखा था। आज उसे न के वल नजदीक से बमल्क अ द ं र से भी देखने का अवसर ममल रहा था। यही वजह थी मक मन मे उत्साह था और इसी उत्साह के चलते मै सबसे पहले एयरपोटा पहु च ँ गई तय समय से पहले। बेक-पैक मलए मै एयरपोटा क सौंदया को च म ू ती रही अपने नेत्रो से और कै मरे की आ ख ो से।वहीं के एक रे स्तरा से कॉफी के साथ कुछ मबस्के ट खाये जो मै अपने साथ लेकर आई थी। समय पर पहु च ँ ने की जल्दबाज़ी में सुबह का नाश्ता भी ढंग से नहीं कर पाई थी,वैसे भी जब कहीं जाना हो तो मेरी भ ख मर जाती हैं और ग त ं व्य स्थल पर पहु च ँ ते ही उठ खड़ी होती हैं अपनी उग्रता के साथ । इसकी उग्रता को कम करने के मलए ही मैने कॉफी और मबस्के ट का सहारा मलया। तभी साथी लोग आ गए और इधर- उधर की बातों में समय होते ही हम बोमडिंग-पास क साथ जा लगे अका म ं क्षत स्थल पर। एयर-होस्टेस हमार बोमडिंग-पास देख-देख सीटो पर बैठा रही थी। म झ ु मकनारे की सीट ममली मजसे मैने अपनी एक साथी स बदल मखड़की की सीट प्राप्त कर ली। इसके ममलते ही मन ऐसी उम ग ं से भर रहा था जैसे मकसी भ ख े को रोटी और प्यासे को पानी ममल जाता हैं। इ ज ं न स्टाटा होत ही शरीर में हल्की झ र