Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 47

Jankriti International Magazine/ जनकृसत अंतरराष्ट्रीय पसिका िासहसययक सिमिक: व्यंग्य एक समि के सलए उिके ि भ ाकांक्षी समि का पि प्रदीप कुमार िाह आदरिीय ममत्रवर, अपनत्वप ि ू ा नमस्कार। ममत्रवर आपको समय प व ू सचेत करते हुए अच्छा नहीं लग रहा, तथामप ममत्र धम म झ ु े वैसा करने के मलए मजब र ू कर रहा है। अतः क्षमा करें मक बगैर सचेत मकये नहीं मान ँग ू ा। ममत्र, म झ ु मजब र ू न आगाह करना पड़ रहा है मक सच्चाई छुपाय नहीं छुपती और एक मदन वह सबके सामने आ ही जाती है। ठीक उसी तरह जैसे मक काष्ठ की हांड़ी आग पर अमधक समय नहीं मटकता। मफर पाप की हांड़ी को एक मदन फूटना ही होता है। ममत्रवर आप "मानते ह मक कई ईमानदार सरोकारी भी हैं।" अपने स्वीकारोमक्त में "भी" शब्द प्रय क्त कर अपनी अमनच्छा और अपना प व ू ााग्रह प्रकट करने से नहीं च क े । शायद दीघा समय स अन त्त ु ररत यक्ष प्रश्न ही प व ू ााग्रह का कारि है जो मटप्पिी रूप में आगे अ म ं कत है मक-"सक्षम-असक्षम पाठक और इमतहास तय करे गा?" ममत्रवर, प्रथमतः तो स्वयं ही पाठक को सक्षम और असक्षम वगा म बाँटना उमचत नहीं, बमल्क यह तय करना पाठक क स्वयं के मववेक पर छोड़ना उमचत है। प न ु ः यह अमधकार मकसी अन्य को नहीं मक वह मकसी अन्य पर व्यमक्तगत आक्षेप करे । मफर तय करने का अमधकार तो एकमात्र पाठक का है मक वह तय करे मक अम क की लेखनी कै सी है ? द स ू री बात मक पाठक सचम च ु के आम आदमी होत हैं, खासम-खास नहीं। मकसी आमस्तक के उपरवाल प्रत्यक्षत: उसे राजा से रंक बना मदए हो और रंक स Vol. 3 , issue 27-29, July-September 2017. ISSN: 2454-2725 राजा बनाया हो या न बनाया हो, मकंतु आम आदमी कदामप धोखा नहीं देनेवाले एक सच्चे इ स ं ान को अपनी आँखों में जरूर बसा लेते हैं। माना मक हमारा समाज और आम आदमी जात-पात, पंथ-सम द ु ाय और धमा-मजहब के जख्म से कराह रहे हैं, तथामप आम आदमी अपने मवचारधारा के ध र ु मवरोधी मकसी सच्चे इ स ं ान को अपने मदल के तख्त पर जरूर बैठा लेते हैं। उसे अपने मदल से राजा जरूर मान लेते हैं और देर-सवेरे ही सही अपने ग प्त ु शत्रु रूपेि सहायक को क्षमा याचना के मलये उसके कदम में जरूर डाल देत हैं। अतः ममत्र सम्भवतः संशय अब खत्म हो गया होगा मक आम आदमी इमतहास तय नहीं करते। सच तो यह है मक खासम-खास लोग इमतहास तय कतई नहीं कर सकते। अतः सादर अन र ु ोध है मक तयश द ु ा जगहों को कुछ भी मलखकर न भरा जाये। व्यथा म कागज काला न मकया जाये और देश कल्याि हेत उसे गरीब छात्रों में बाँट मदया जाये, क्योंमक आज क बच्चे ही कल के भमवष्ट्य हैं।सादर। आपका श भ ु ाका क्ष ी ममत्र, चक्ष म ु स अमवद्या। प्रदीप. वर्ष 3, अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017