Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 45

घड़ी
Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725

घड़ी

िमीक्षक : िंदीप तोमर
घडी सग्रह के मूल लेखक कमव मोहन मसंह हैं , मजसे यशपाल मनमाल ने डोगरी से महंदी में अनूमदत मकया है । यू ँ तो अनुवाद का काम ही अत्यंत दुरूह है परन्तु यमद काव्य को अनूमदत करना हो तो अनुवादक की मजम्मेवारी और अमधक बढ़ जाती है और यह काया और अमधक दुरूह हो जाता है । काव्य का अनुवाद अन्य मवधाओं से अमधक जमटल होता है । इसका कारि ये है मक काव्य में भाव प्रधान होते हैं और मकसी अन्य के भावों को बनाये रखते हुए लय के साथ मबना भावों को बदले अनुवाद करना वास्तव में यशपाल सरीखे रचनाधमी ही कर सकते हैं ।
यशपाल की एक प्रमुख मवशेर्षता इस अनुमदत पुस्तक में मदखाई देती है मक वे अत्यंत भाव प्रिव हैं । छंदबद्ध रचना का जहाँ आज के युग में प्रादुभााव हैं वही यशपाल न के वल अनुवाद करते हैं बमल्क छंद के मनयमो का पुिातः पालन करते हैं :
आते-जाते को मनहारती एक मवयोगन खड़ी-खड़ी ।
घड़ी की तुलना मवयोगन से करके यशपाल एकदम अलग खड़े प्रतीत होते हैं वे पुन : कहते हैं :
आज तेरे यौवन की चच ा हर कमवता की कड़ी कड़ी ।
ये शब्द संयोजन ही है जो उन्हें एक कमव के रूप में स्थामपत करता है तब वो एक अनुवादक नहीं रह जाते , पूिा रुपें कमव में तब्दील हो जाते हैं , जहाँ भाव प्रधान हैं ,, जहाँ शब्दों की बाजीगरी नहीं , भावों की बाजीगरी चलती है । इस पूरी प्रमकया में वे मात्र अनुवादक नहीं
रह जाते वरन ऐसा प्रतीत होता है मक वे एक सम्पूिा रचनाकार हैं , और ये सम्पूिा रचना उनकी स्वयं की है वे ही इसके अमभयंता हैं । पुस्तक के प्रारंभ में अचाना के सर उन्हें आशीवाचन में मलखती भी हैं ---
“ यशपाल ने अपने अंदर रहने वाले कमव को यथासंभव अनुवादक से प्रथक रखा है ।“
समाज की मवसंगमत पर भी यहाँ बहुत सलीके से कलम चलायी गयी है-
हमीं कहार थे और हमीं मफर आये शोक मनाने । हमीं समक्ष हुए अमनन फे रे जली हमारे हाथों ।
यहाँ रचनाकार संवेदनाओ पर तीखा व्यंनय करता प्रतीत होता है और अनायास ही रचनकार एक अन्दर का व्यंनयकार मचमत्रत हो उठता है । शब्दों का संयोजन यहाँ बहुत महत्वपूिा हो जाता है , जहाँ जब मजस तरह के शब्दों की जरुरत होती है यशपाल उसी तरह के शब्दों का संयोजन करते हैं , उनके आनुवाद को देखकर ऐसा लगता है मक जहाँ कहीं आवश्यकता होती है वो डोगरी के शब्दों को यथावत रखने के महमायती हैं . जैसे धाम भोजड़ी मीटी । यशपाल मूल रचना के फ्लेवर के साथ खड़े हैं , उन्हें इस तरह के शब्दों के मलए महंदी शब्दों की आवश्यकता नहीं पड़ती , ये जो डोगरी महंदी की ममलीजुली खुशबु है ये काव्य की महक को बढ़ाती है । यशपाल जहाँ कहीं जरुरत होती है अलंकाररक भार्षा का प्रयोग भी करते हैं- मन मेरा मौजी मतवाला , पढ़-पढ़ प्रीतम पाठ तेरा ।
बकौल मूल लेखक मोहन मसंह घड़ी अस्सी के दशक का चमचात काव्य संग्रह है मजसे कमव-सम्मेलनों , मुशायरों में खूब प्रशंसा ममली है , लेमकन ये बेहद अफ़सोस की बात है मक एक लम्बे अरसे के बाद
Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 . वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017