Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 425

Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725
‘ वैलेन्टाइन्स-डे ’ मांसल प्रेम पर चोट करती है । ‘ फै सला ’ की भारतीय सास अपनी मिमटश बहू से सांमजस्य नहीं मबठा पाती । पुत्र और मां दोनों ही मिमटश बहू के प्रमत दुराग्रहों से ग्रस्त हैं जबमक रेचल अपने पमत और सास के प्रमत सममपात रहती है । अन्ततः सास अमृत को अपनी गलती का अहसास होता है और वह अपने बेटे-बहू से माफी मांग लेती है । कहामनयों में महन्दी , अंग्रेजी और पंजाबी तीन भार्षाओं का मममश्रत सौंदया पाठकों को आकमर्षात करता है । महंदी भार्षा की शमक्त , सामथ्या तथा संप्रेर्षनीयता को एक प्रवासी लेमखका द्वारा मजस अंदाज में बयान मकया गया है , वह प्रशंसनीय है । ‘ सौ सुनार की ’ शीर्षाक कहानी का संवाद मुहावरों-लोकोमक्तयों में चलता है । यह संवाद न के वल कथा को रोचक तथा सरस बनाता है अमपतु महन्दी के दजानों मुहावरों- लोकोमक्तयों को संदभा समहत प्रस्तुत करता है । इन कहामनयों में प्रूफ संशोधन का अभाव है । वतानी तथा वाक्य अशुमद्ध के साथ कहीं-कहीं शब्दों का अनावश्यक प्रयोग ममलता है । इन त्रुमटयों के प्रमत प्रकाशक तथा लेमखका दोनों को सचेत रहने की आवश्यकता है । संग्रह की शीर्षाक कहानी ‘ 2050 ’ प्रजामत-भेद पर आधाररत श्रेष्ठ कहानी है । तथाकमथत आधुमनक देशों में नस्ल और रंग-रूप के आधार पर होने वाले भेदभाव को मजस काल्पमनक शैली में उभारा गया है , वह दशानीय है । कहानी के एमशयन दंपमत ऋचा और वेद बच्चा पैदा करना चाहते हैं परंतु समाज सुरक्षा पररर्षद के अमधकारी उन्हें अनुममत नहीं देते । भावी पीढ़ी को परफै क्ट बनाने की बात कहकर समाज सुरक्षा पररर्षद एमशयन जोडों को बच्चा पैदा करने की अनुममत नहीं देती जबमक उनके अपने नागररकों के मलए मनयमों में काफी छू ट है । ऋचा द्वारा अमधकाररयों को मनाने की तमाम कोमशशें असफल रहती है । अवसादग्रस्त ऋचा जब आत्महत्या की
इच्छा जताती है तो अमधकाररयों द्वारा उसे आत्महत्या परामशा पररर्षद का पता बता मदया जाता है । कहानी उत्तर आधुमनक सभ्यता के खोखलेपन तथा नस्लवाद के मघनौने यथाथा को उभारती है । मदव्या जी की इन कहामनयों में परंपरा और आधुमनकता तथा प्रेम और सेक्स के बीच के अंतर को दशााया गया है । लेमखका सेक्स और आधुमनकता को तटस्थ रहकर व्यक्त करती हैं , वे अपनी मनजी सोच और मवचारधारा से घटनाओं को संचामलत नहीं करती , अमपतु कथानक को अपने जीवंत रूप से आकार लेने की स्वतंत्रता देती हैं । मदव्या जी न तो यथाथा के प्रमत आग्रहशील हैं , न ही आदशा थोपना उनकी नीयत है । इस संग्रह की सभी कहामनयां इस कसौटी पर खरी उतरती हैं ।
Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 . वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017
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नरेश भारतीय ( नरेश अरोड़ा ) मिटेन मे बसे भारतीय मूल के महंदी लेखक है । एक लम्बे असे से बी . बी . सी . रेमडया महन्दी सेवा से जुड़े रहे । उनके लेख भारत की प्रमुख पमत्रकाओं में प्रकामशत होते रहे हैं । पुस्तक रूप में उनके लेख संग्रह `उस पार इस पार ' के मलए उन्हें पद्मानंद सामहत्य सम्मान ( 2002 ) प्राप्त हो चुका है । उनके इस संकलन की मवशेर्षता यह है मक उनके जो लेख पहले पमत्रकाओं में प्रकामशत हो चुके थे उन्होंने संकलन में आवश्यक बदलाव करने में कोई गुरेज़ नहीं मकया । महन्दी लेखकों के मलए यह एक अनुकरिीय कदम है । वर्षा 2003 में आतंकवाद पर उनकी पुस्तक `आतंकवाद ' प्रकामशत हुई है । नरेश भारतीय कमवता भी मलखते हैं मकन्तु लेख उनकी मप्रय मवधा है । नरेशजी मकसी भी प्रकार की सामहमत्यक राजनीमत से दूर मनरंतर लेखन में व्यस्त रहते हैं । उनके पहले उपन्यास मदशाए बदल गई का मवमोचन भारत की राजधानी मदल्ली में मकया गया ।