Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 42

Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725
हमारे पुरुर्षप्रधान समाज में हमेशा से ममहलाओं को दोयम दजे का स्थान प्रदान मकया जाता रहा है । नेपाल जैसे राष्ट्र में आधी से अमधक अवामद ममहलाओं की है , वहाँ भी ममहलाएँ जीवन के हर क्षेत्र में पुरुर्षों से पीछे हैं । मपछले कु छ समय से सरकारी एवं गैर सरकारी संस्थाओं के प्रयासों ने ममहलाओं में मशक्षा के प्रमत जागरूकता बढ़ाने का काम मकया है । मकसी भी समाज का स्वरूप वहाँ की ममहलाओं की मस्थमत एवं दशा पर मनभार करता है , मजस समाज की ममहलाएँ मजतनी सबल एवं एवं सशक्त होंगी वह समाज भी उतना ही सु्टढ़ एवं मजबूत होगा ।
आलोच्य उपन्यास ‘ कारा ’ में इस परर्टश्य का उदाहरि देखने को ममलता है । इस उपन्यास में माता- मपता की मृत्यु के बाद भाइयों द्वारा पाली गई नामयका पढ़-मलखकर सेक्शन ऑमफ़सर तो बन गई । लेमकन
वस्तुतः हमारा सामामजक ढाँचा ही ममहलाओं एवं पुरुर्षों के मलए अलग-अलग अमधकार क्षेत्र मनधाारि करता है , मजसके दुभाानयपूिा पररिाम ममहलाओं के साथ हर स्तर पर मदक्कते उपमस्थत करते हैं । नेपाल ही नहीं , मवश्व का हर राष्ट्र यह दावा करने में आज असमथा है मक उनके यहाँ ममहलाओंका उत्पीड़न नहीं होता । वतामान में ममहलाएँ तृतीय मवश्व की भाँती हैं , जहाँ उनके अमधकार सीममत एवं कताव्य असीममत हैं । शहरी क्षेत्रों में ममहलाओं की भागीदारी हर क्षेत्र में देखी जा सकती है , वे अपने साथ हो रहे अन्यायों का मवरोध करना जानती हैं , अपने अमधकारों को हामसल करना जानती हैं , परंतु , ग्रामीि क्षेत्रों की ममहलाएँ इन बातों से अभी भी अनमभज्ञ हैं । उन्हें न तो अपने अमधकारों की समझ है , ना ही उसे पाने की वह इच्छा- शमक्त रखती हैं । पररवार में अपनी महत्ता के मलए मस्त्रयाँ कई-कई त्रासमदयाँ झेलती रहती हैं ।
वह कु वारी बनी रही । शादी की इच्छा होते हुए भी
शादी कर नहीं पाई । उसका कारि , माता-मपता की
इस उपन्यास की नामयका के जीवन की त्रासदी अपार
मृत्यु के बाद मपता की वसीहत के अनुसार सारी
है । शादी करने के इच्छा होने के बावजूद वह अपने
सम्पती उसके सभी सन्तानो को ममलनी थी । मपता ने
भाइयों से बोल नहीं पाती , और एकाकीपन का दंश
दोनों पुत्रों के अलावा अपनी पुत्री ( नामयका ) को भी
चुपचाप झेलती रहती है । इस बात को नामयका इस
संपमत्त का महस्सेदार बनाया था । नेपाली समाज की
तरह व्यक्त करती है- “ पहले मजतने ररश्ते आए , उनमें
परंपरा के अनुसार नामयका से शादी का प्रस्ताव लेकर
दो-तीन मुझे पसंद नहीं आए , ऐसी बात नहीं थी । पर
आने वाले सभी लड़के वालों को नामयका के भाई द्वारा
स्वयं मैं कै से कहती मक मुझे यह लड़का पसंद है और
अस्वीकृ त कर देते थे । कहते थे मक योनय वर नहीं है ।
मै इससे शादी करूँ गी ।’' ( पृ . -69) यह एक ऐसा समाज
दोनों भाइयों पर संपमत्त का लोभ छाया रहता था ,
है , जहाँ कोई लड़की अपनी इच्छा जामहर नहीं कर
मकन्तुमदखावा करते थे मक वे अपनी बहन को
सकती । मकसी लड़की के इच्छा जामहर कर देने से
अत्यमधक प्रेम करते हैं । बहन की नजरों से उस
पररवार की इज्जत ममट्टी में ममल जाती है ।
मदखावटी प्रेम मछपी नहीं थी । इसी बात को उपन्यास
में नामयका के सम्भार्षि से स्पसे मकया गया है- “ दोनों
भाई मुझे पहले से अमधक प्यार करने लगे । भाभी तो
उन दोनों से अमधक ।’’ ( पृ . -67) इस कारि नामयका
के मन में भाइयों के प्रमत मवतृष्ट्िा उत्पन्न हो गई । एक
मदन भाइयों के मदखावटी प्रेम से तंग आकर घर-द्वार
छोड़कर नामयका अके ले रहने चली गई ।
नारी जीवन की मूल के मूल संवेदनाओं पर पहले भी
नेपाली भार्षा के रचनाकारों ने अपनी कलम चलाई
है । लेमकन पाररजात के उपन्यासों की रचना के बाद
वानीरा मगरर ने अपने पहले ही उपन्यास ‘ कारार्गार ’ में
पाठको एवं समालोचको से अपने गद्य का लोहा
मनवा मलया । नारी संवेदना के अनछु ए पहलुओं पर
Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 .
वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017