Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 419

Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725
पररिाम प्राप्त हुए वास्तव में महंदी सामहत्य परंपरा प्रवासी सामहत्यकारों द्वारा मकतनी समृद्ध है यह इस शोध आलेख के अध्ययन के माध्यम से समझा जा सकता है प्रत्येक प्रवासी सामहत्यकार अपनी अपनी मवमवध प्रमतभा के माध्यम से सामहत्य को समृद्ध कर रहा है प्रत्येक सामहत्यकार के बारे में संमक्षप्त रूप से उनके योगदान के बारे में संमक्षप्त रूप से लेखन का पूिा रुप ही यह शोध आलेख है ।
चररत्रों की सही मानमसकता की पकड़ और एक ऐसी भार्षा का प्रयोग जो चररत्रों और मस्थमतयों के अनुकू ल होती है । उनके रेमडयो नाटकों में प्रवासी भारतीयों की दूसरी एवं तीसरी पीढ़ी की मानमसकता एवं संघर्षा का भी सटीक मचत्रि देखने को ममलता है । बद ाश्त बाहर , सूखा हुआ समुद्र तथा मध्यांतर उनके चमचात कहानी संग्रह हैं । सूरीनाम मवश्व महन्दी सम्मेलन में अचला शम ा को मिटेन के महन्दी सामहत्य में उत्कृ से योगदान के मलए सम्मामनत मकया गया ।
१ )
अचला शमाा लंदन मे रहने वाली भारतीय मूल की महंदी लेमखका है । उनका जन्म भारत के जालंधर शहर में हुआ तथा मशक्षा मदल्ली मवश्वमवद्यालय से प्राप्त की । वे लंदन प्रवास से पूवा भारत में ही कहानीकार एवं कमव के रूप में स्थामपत हो गई थीं । रेमडयो से भी वे भारत में ही जुड़ चुकी थीं , बाद में वे लंदन में बी . बी . सी . रेमडयो की महन्दी सेवा से जुड़ीं और अध्यक्ष के पद तक पहुँचीं । बीबीसी से जुड़ने के पिात उनके व्यस्त जीवन में कहानी और कमवता जहाँ पीछे छू टते गये , वहीं हर वर्षा एक रेमडयो नाटक मलखना उनके दैमनक जीवन का महस्सा बन गया । इन रेमडयो नाटकों के दो संकलन `पासपोटा '[ 1 ] एवं `जड़ें '[ 2 ] के मलए उन्हें वर्षा २००४ के पद्मानंद सामहत्य सम्मान [ 3 ] से सम्मामनत मकया गया । ‘ पासपोटा ’ में बीबीसी महन्दी सेवा से प्रसाररत उन नाटकों को संकमलत मकया गया है मजनमें मिटेन में बसे भारतीय मूल के प्रवासी अपनी पहचान को लेकर संभ्रम में मदखाई देते हैं और दोहरी या मचतकबरी संस्कृ मत जीतने पर मववश मदखाई देते हैं , जबमक ‘ जड़ें ’ में बीबीसी से प्रसाररत उन नाटकों को संकमलत मकया गया है मजनकी के न्द्रीय समस्याओं का सम्बन्ध भारत से है । अचला शमाा के लेखन की मवशेर्षता है मस्थमतयों की सही समझ ,
Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 . वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017
२ )
उर्षा राजे सक्सेना युनाइटेड मकं गडम मे बसी भारतीय मूल की लेखक है । वे भारत में भी काफी लोकमप्रय है । लक्ष्मीमल मसंघवी , कमलेश्वर , मशवमंगल मसंह ' सुमन ', रामदरश ममश्र , महमांशु जोशी , अशोक चक्रधर , मचत्रा मुद्गल एवं हरीश नवल जैसे सामहत्यकारों ने समय-समय पर उर्षा राजे के सामहत्य की सराहना की है । कहानी , कमवता , लेख जैसी मवधाओं में उर्षा राजे ने अपनी एक शैली मवकमसत की है । मकमन्चत आलोचको के अनुसार् , उनकी कहामनयों की एक पहचान है मक उन्हें यात्रा में कोई चररत्र ममलता है जो उन्हें या तो अपनी कहानी सुनाता है या वो कु छ ऐसा कर जाता है मजससे उर्षा राजे को कहानी ममल जाती है । मकन्तु उनकी कहानी इससे भी कु छ अमधक है । प्रवास मे भारतीय सोच , जो सन्कीिाताओ से मुक्त मकन्तु शाश्वत सत्यो से गु ंथी हुई है , सौम्यता , सहोदरता और मवश्व-बन्धुत्व को साधारि से मवमशसे होते हुए पात्रो के माध्यम से अमभव्यक्त करती है । उनकी कहानी मे सदयता के साथ , मानवीय सत्ता के प्रमत मवश्वास् और मवपरीत पररमस्थमत मे साहस उत्तर आधुमनक काल मे एक प्रकाश-स्तम्भ की भामत उभरते है ।