Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 418

सििेन के पररप्रेक्ष्य में प्रिािी िासहययकार एिं लेखक : एक पररचयायमक अध्ययन
Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725
प्रिािी िासहयय

सििेन के पररप्रेक्ष्य में प्रिािी िासहययकार एिं लेखक : एक पररचयायमक अध्ययन

डॉ . उसमकला पोरिाल िेसिया बेंगलोर
अनेक भारतीय ऐसे हैं जो भारत से इतर देशों में महंदी रचना व मवकास के काम में लगे हुए हैं । इनमें दूतावास के अमधकारी और मवदेशी मवश्वमवद्यालयों के प्राध्यापक तो हैं ही , अनेक सामान्य जन भी हैं जो मनयममत लेखन व अध्यापन से मवदेश में महंदी को लोकमप्रय बनाने के काम में लगे हैं । मवदेश में रहने वाले महंदी सामहत्यकारों का महत्व इसमलए बढ़ जाता है क्यों मक उनकी रचनाओं में अलग-अलग देशों की मवमभन्न पररमस्थमतयों को मवकास ममलता है और इस प्रकार महंदी सामहत्य का अंतरााष्ट्रीय मवकास होता है और समस्त मवश्व महंदी भार्षा में मवस्तार पाता है ।
बीसवीं शती के मध्य से भारत छोड़ कर मवदेश जा बसने वाले लोगों की संख्या में काफी वृमद्ध हुई । इनमें से अनेक लोग महंदी के मवद्वान थे और भारत छोड़ने से पहले ही लेखन में लगे हुए थे । ऐसे लेखक अपने अपने देश में चुपचाप लेखन में लगे थे पर उनमें से कु छ भारत में धमायुग जैसी पमत्रकाओं में प्रकामशत होकर काफी लोकमप्रय हुए , मजनका लोहा भारतीय सामहत्य संसार में भी माना गया । ऐसे सामहत्यकारों में उर्षा मप्रयंवदा और सोमावीरा के नाम सबसे पहले आते हैं ।
बीसवीं सदी का अंत होते होते लगभग १०० प्रवासी भारतीय अलग अलग देशों में अलग अलग मवधाओं में सामहत्य रचना कर रहे थे । इक्कीसवीं सदी के प्रारंभ होने तक पचास से भी अमधक सामहत्यकार भारत में अपनी पुस्तकें प्रकामशत करवा चुके थे । वेब पमत्रकाओंका मवकास हुआ तो ऐसे सामहत्यकारों को एक खुला मंच ममल गया और मवश्वव्यापी पाठकों तक पहुँचने का सीधा रास्ता भी । अमभव्यमक्त और अनुभूमत पमत्रकाओं में ऐसे सामहत्यकारों की सूची देखी जा सकती है मजसमें प्रवासी सामहत्यकारों के सामहत्य को रखा गया है ।
१० जनवरी २००३ को प्रवासी मदवस मनाए जाने के साथ ही मदल्ली में प्रवासी महंदी उत्सव का श्रीगिेश हुआ । प्रवासी महंदी उत्सव में ऐसे लोगों को रेखांमकत करने और प्रोत्सामहत करने के काम की ओर भारत की कें द्रीय और प्रादेमशक सरकारों तथा व्यमक्तगत संस्थाओं ने रुमच ली , जो मवदेश में रहते हुए महंदी में सामहत्य रच रहे थे । भारत की प्रमुख पमत्रकाओं जैसे वागथा , भार्षा और वतामान सामहत्य ने भी प्रवासी मवशेर्षांक प्रकामशत कर के इन सामहत्यकारों को भारतीय सामहत्य की प्रमुख धारा से जोड़ने का काम मकया । इस तरह इक्कीसवीं सदी के प्रारंभ में आधुमनक सामहत्य के अंतगात प्रवासी महंदी सामहत्य के नाम से एक नए युग का प्रारंभ हुआ ।
इसी आधार पर प्रत्येक देश का अध्ययन कर उस में मनवास करने वाले और महंदी की ममहमा में वृमद्ध करने वाले प्रवासी सामहत्यकारों का अध्ययन करने की प्रवृमत्त वतामान समय में सवात्र देखी जा सकती है इसी तारतम्य में मिटेन देश की सामहत्य वृमद्ध और लेखन परंपरा को समृद्ध करने वाले सम्मानीय सामहत्यकारों का अध्यन कर उनके बारे में संमक्षप्त रूप से पररचय देने के उद्देश्य से शोध आलेख लेखन प्रारंभ मकया गया
और पररिाम स्वरुप अद्भुत और आियाजनक Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 . वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017