Jankriti International Magazine/ जनकृसत अंतरराष्ट्रीय पसिका
" आओ , आओ ; ईश्वर सब ठीक
करे गा । ईश्वर का नाम लो ! "
लेमकन मैंने ऐसा नहीं मकया । मेरे म ह ँ ु क
कोने अब भी फड़क रहे थे , और उसने इसे देख मलया
। उसने अपनी काले नाख़ न ू वाली मोटी , ममट्टी लगी
उँगली आगे बढ़ाई और हल्के -से मेरे फड़कते हुए
होठों को छुआ ।
" चलो , शाबाश , शाबाश , " माँ-जैसी
कोमल , हल्की म स् ु कान देते हुए उसने कहा , " प्यार
बच्चे , कुछ नहीं होगा । चलो , शाबाश ! "
आमख़र मैं समझ गया मक वहाँ कोई
भेमड़या नहीं था , और जो चीख़ मैंने स न ु ी थी वह महज़
मेरी कल्पना की उपज थी । हालाँमक वह चीख़ बेहद
स्पसे थी , पर मैं ऐसी चीख़ों ( के वल भेमड़यों के बार
में ही नहीं ) की कल्पना पहले भी एक-दो बार कर
च क
ा था । मैं यह बात जानता था । ( जैसे-जैसे मैं बड़ा
होता गया , मेरे ये मनम ल
ू भ्रम ख़त्म होते गए । )
" ठीक है , तो अब मैं चल ँग ू ा , " मैंन
सहमी आवाज़ में उससे कहा ।
" ठीक है , मैं त म् ु हें जाते हुए द र ू तक
देखता रहू ग ँ ा । मैं भेमड़ये को त म् ु हारे पास नहीं आन
द ग ँ ू ा । " वह अब भी माँ-जैसी कोमल म स् ु कान
मबखेरता हुआ
बोला , " ईश्वर त म् ु हारी रक्षा करें । चलो शाबाश , भागो
। " मफर उसने ज़ोर से ईश्वर का नाम मलया । मैं हर दसव
कदम पर म ड़ ु कर पीछे देखते हुए आगे बढ़ने लगा ।
मारे य अपने घोड़े के साथ वहीं मस्थर खड़ा था । मजतनी
बार मैं पीछे म ड़ ु कर उसे देखता , वह मसर महला कर
मेरा हौसला बढ़ाता । म झ ु े यह मानना होगा मक मारे य
के सामने ख द ु को इतना डरा हुआ पा कर मैं शममिंदा
महस स ू कर रहा था । पर सच्चाई यही थी मक मैं अब
Vol. 3 , issue 27-29, July-September 2017.
ISSN: 2454-2725
भी भेमड़ए के बारे में सोच कर डरा हुआ था । चलते-
चलते उस सँकरी घाटी की आधी ढलान पार करके म
पहले भ स ु ौरे तक पहु च ँ ा । वहाँ पहु च ँ कर मेरा डर प र ू ी
तरह ग़ायब हो गया । उसी स मय मेरा झबरा कुत्ता
वॉल्तचोक प ँछ
महलाते हुए दौड़ कर मेरे पास पहु च ँ ा ।
कुत्ते के आ जाने से मैं ख द ु को स र ु मक्षत महसूस करन
लगा । मैंने म ड़ ु कर अ म ं तम बार मारे य की ओर देखा ।
हालाँमक अब म झ ु े उसका चेहरा साफ़-साफ़ नहीं मदख
रहा था , पर म झ ु े लगा जैसे वह अब भी मेरी ओर देख
कर मसर महला रहा था और प्यार से म स् ु करा रहा था ।
मैंने उसकी ओर अपना हाथ महलाया । जवाब में उसन
भी मेरी ओर अपना हाथ महलाया और मफर वह अपन
घोड़े से म ख़
ामतब हो गया , " चल, शाबाश ! " द र ू
वहाँ मैंने दोबारा उसकी आवाज़ स न ु ी और मफर उसक
घोड़े ने खेत जोतना श रू
कर मदया ।
पता नहीं क्यों , म झ ु े ये सारी छोटी-छोटी
बातें भी असाधारि रूप से अचानक याद आ गई ं ।
कोमशश करके मैं अपने मबस्तर पर उठ कर बैठ गया ।
म झ ु े याद है , अपनी स्मृमतयों के बारे में सोच कर मैंन
स्वयं को च प ु चाप म स् ु कराता हुआ पाया । मैं उस सब
के बारे में थोड़ी देर और सोचता रहा ।
जब उस मदन मैं घर वापस आया तो मैंन
मकसी को भी मारे य के साथ हुए अपने ' स क
टप ि ू ा '
अन भ ु व के बारे में कुछ नहीं बताया । और सच कहू
तो इसमें स क
टप ि ू ा जैसा कुछ भी नहीं था । और
वास्तमवकता यही है मक जल्दी ही मैं मारे य और इस
घटना के बारे में भ ल
गया । यदा-कदा जब भी मेरी
उससे म ल
ाकात हो जाती तो मैं उससे भेमड़ये या उस
मदन की घटना के बारे में कभी बात नहीं करता । पर
बीस बरस बाद अचानक आज साइबेररया में म झ ु
मारे य के साथ हुई अपनी वह म ल
ाकात और उसकी
एक-एक बात मबल्कुल स्पसे रूप से याद आई । इस
घटना की याद अवश्य ही मेरी आत्मा में कहीं मछपी
वर्ष 3, अंक 27-29 जुलाई-सित ब ं र 2017