Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 416

Jankriti International Magazine/ जनकृसत अंतरराष्ट्रीय पसिका " आओ , आओ ; ईश्वर सब ठीक करे गा । ईश्वर का नाम लो ! " लेमकन मैंने ऐसा नहीं मकया । मेरे म ह ँ ु क कोने अब भी फड़क रहे थे , और उसने इसे देख मलया । उसने अपनी काले नाख़ न ू वाली मोटी , ममट्टी लगी उँगली आगे बढ़ाई और हल्के -से मेरे फड़कते हुए होठों को छुआ । " चलो , शाबाश , शाबाश , " माँ-जैसी कोमल , हल्की म स् ु कान देते हुए उसने कहा , " प्यार बच्चे , कुछ नहीं होगा । चलो , शाबाश ! " आमख़र मैं समझ गया मक वहाँ कोई भेमड़या नहीं था , और जो चीख़ मैंने स न ु ी थी वह महज़ मेरी कल्पना की उपज थी । हालाँमक वह चीख़ बेहद स्पसे थी , पर मैं ऐसी चीख़ों ( के वल भेमड़यों के बार में ही नहीं ) की कल्पना पहले भी एक-दो बार कर च क ा था । मैं यह बात जानता था । ( जैसे-जैसे मैं बड़ा होता गया , मेरे ये मनम ल ू भ्रम ख़त्म होते गए । ) " ठीक है , तो अब मैं चल ँग ू ा , " मैंन सहमी आवाज़ में उससे कहा । " ठीक है , मैं त म् ु हें जाते हुए द र ू तक देखता रहू ग ँ ा । मैं भेमड़ये को त म् ु हारे पास नहीं आन द ग ँ ू ा । " वह अब भी माँ-जैसी कोमल म स् ु कान मबखेरता हुआ बोला , " ईश्वर त म् ु हारी रक्षा करें । चलो शाबाश , भागो । " मफर उसने ज़ोर से ईश्वर का नाम मलया । मैं हर दसव कदम पर म ड़ ु कर पीछे देखते हुए आगे बढ़ने लगा । मारे य अपने घोड़े के साथ वहीं मस्थर खड़ा था । मजतनी बार मैं पीछे म ड़ ु कर उसे देखता , वह मसर महला कर मेरा हौसला बढ़ाता । म झ ु े यह मानना होगा मक मारे य के सामने ख द ु को इतना डरा हुआ पा कर मैं शममिंदा महस स ू कर रहा था । पर सच्चाई यही थी मक मैं अब Vol. 3 , issue 27-29, July-September 2017. ISSN: 2454-2725 भी भेमड़ए के बारे में सोच कर डरा हुआ था । चलते- चलते उस सँकरी घाटी की आधी ढलान पार करके म पहले भ स ु ौरे तक पहु च ँ ा । वहाँ पहु च ँ कर मेरा डर प र ू ी तरह ग़ायब हो गया । उसी स मय मेरा झबरा कुत्ता वॉल्तचोक प ँछ महलाते हुए दौड़ कर मेरे पास पहु च ँ ा । कुत्ते के आ जाने से मैं ख द ु को स र ु मक्षत महसूस करन लगा । मैंने म ड़ ु कर अ म ं तम बार मारे य की ओर देखा । हालाँमक अब म झ ु े उसका चेहरा साफ़-साफ़ नहीं मदख रहा था , पर म झ ु े लगा जैसे वह अब भी मेरी ओर देख कर मसर महला रहा था और प्यार से म स् ु करा रहा था । मैंने उसकी ओर अपना हाथ महलाया । जवाब में उसन भी मेरी ओर अपना हाथ महलाया और मफर वह अपन घोड़े से म ख़ ामतब हो गया , " चल, शाबाश ! " द र ू वहाँ मैंने दोबारा उसकी आवाज़ स न ु ी और मफर उसक घोड़े ने खेत जोतना श रू कर मदया । पता नहीं क्यों , म झ ु े ये सारी छोटी-छोटी बातें भी असाधारि रूप से अचानक याद आ गई ं । कोमशश करके मैं अपने मबस्तर पर उठ कर बैठ गया । म झ ु े याद है , अपनी स्मृमतयों के बारे में सोच कर मैंन स्वयं को च प ु चाप म स् ु कराता हुआ पाया । मैं उस सब के बारे में थोड़ी देर और सोचता रहा । जब उस मदन मैं घर वापस आया तो मैंन मकसी को भी मारे य के साथ हुए अपने ' स क टप ि ू ा ' अन भ ु व के बारे में कुछ नहीं बताया । और सच कहू तो इसमें स क टप ि ू ा जैसा कुछ भी नहीं था । और वास्तमवकता यही है मक जल्दी ही मैं मारे य और इस घटना के बारे में भ ल गया । यदा-कदा जब भी मेरी उससे म ल ाकात हो जाती तो मैं उससे भेमड़ये या उस मदन की घटना के बारे में कभी बात नहीं करता । पर बीस बरस बाद अचानक आज साइबेररया में म झ ु मारे य के साथ हुई अपनी वह म ल ाकात और उसकी एक-एक बात मबल्कुल स्पसे रूप से याद आई । इस घटना की याद अवश्य ही मेरी आत्मा में कहीं मछपी वर्ष 3, अंक 27-29 जुलाई-सित ब ं र 2017