Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 415

Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725
था । पर इस समय कौन-सा मकसान खेत जोत रहा था , यह मुझे नहीं पता था । सच पूमछए तो मैं यह जानना भी नहीं चाहता था क्योंमक मैं अपने काम में डूबा हुआ था । आप कह सकते हैं मक मैं अखरोट के पेड़ की डंमडयाँ तोड़ने में व्यस्त था । मैं उन डंमडयों से मेंढकों को पीटता था । अखरोट के पेड़ की पतली डंमडयाँ अच्छे चाबुक का काम करती हैं , लेमकन वे ज़्यादा मदनों तक नहीं चलती हैं । पर भोज-वृक्ष की पतली टहमनयों का स्वभाव इससे ठीक उलट होता है । मेरी रुमच भौंरों और अन्य कीड़ों में भी थी ; मैं उन्हें एकत्र करता था । इनका उपयोग सजावटी था । काले धब्बों वाली लाल और पीले रंग की छोटी , फु तीली मछपकमलयाँ भी मुझे बहुत पसंद थीं , लेमकन मैं साँपों से डरता था । हालाँमक साँप मछपकमलयों से ज़्यादा मवरल थे ।
वहाँ बहुत कु कु रमुत्ते होते थे । खु ँमबयों को पाने के मलए आपको भोज-वृक्षों के जंगल में जाना पड़ता था और मैं वहाँ जाने ही वाला था । पूरी दुमनया में मुझे और मकसी चीज़ से उतना प्यार नहीं था मजतना उस जंगल से और उसमें पाई जाने वाली चीज़ों और जीव-जंतुओं से -- कु कु रमुत्ते और जंगली बेर , भौंरे और रंग-मबरंगी मचमड़याँ , साही और मगलहररयाँ । जंगल में ज़मीन पर मगरी नम , मरी पमत्तयों की गंध मुझे अच्छी लगती थी । इतनी अच्छी मक यह पंमक्त मलखते समय भी मैं भोज-वृक्षों के उस जंगल की गंध को सू ँघ रहा हूँ । ये छमवयाँ जीवन भर मेरे साथ रहेंगी । उस गहरी मस्थरता के बीच अचानक मैंने स्पसे रूप से मकसी के मचल्लाने की आवाज़ सुनी -- " भेमड़या ! " यह सुनकर मैं बुरी तरह डर गया और ज़ोर से चीख़ते- मचल्लाते हुए मैं सीधा बीच के ख़ाली जगह में खेत जोत रहे उस मकसान की ओर भागा ।
भी है , मकं तु सभी उसे मारेय नाम से ही बुलाते थे । वह गठीले बदन वाला पचास साल का मोटा-तगड़ा मकसान था , मजसकी भूरी दाढ़ी के कई बाल पके हुए थे । मैं उसे जानता था , हालाँमक मुझे पहले कभी उससे बात करने का मौका नहीं ममला था । मेरी चीख़ सुनकर उसने अपना घोड़ा रोक मलया और हाँफ़ते हुए जब मैंने एक हाथ से उसके हल को और दूसरे हाथ से उसकी कमीज़ के कोने को पकड़ा , तब उसने देखा मक मैं मकतना डरा हुआ था ।
" यहाँ कहीं एक भेमड़या है । " मैं हाँफ़ते हुए मचल्लाया ।
एक पल के मलए उसने अपना मसर चारो ओर ऐसे घुमाया जैसे उसे मेरी बात पर लगभग यकीन हो गया हो ।
" कहाँ है भेमड़या ? "
" कोई मचल्लाया था -- ' भेमड़या ' ... । " मैं हकलाते हुए बोला ।
" बकवास । मबल्कु ल बेकार बात । भेमड़या ? अरे , वह तुम्हारी कल्पना होगी ! यहाँ भेमड़या कै से हो सकता है ? " मुझे आश्वस्त करते हुए वह बोला । लेमकन मैं अभी भी डर के मारे थर-थर काँप रहा था और मैंने अभी भी उसकी कमीज़ का कोना पकड़ रखा था । मैं काफ़ी डरा हुआ लग रहा हूँगा । उसने मेरी ओर एक मफ़क्र-
भरी मुस्कान दी । ज़ामहर है , मेरे कारि वह तनाव- ग्रस्त और मचंमतत महसूस कर रहा था ।
" अरे , तुम तो बेहद डर गए हो ! " वह मसर महलाते हुए बोला । " मेरे प्यारे बच्चे ... सब ठीक होगा ! " अपना हाथ आगे बढ़ा कर वह मेरे गालों को
अरे , वह तो मारेय नाम का हमारा गुलाम थपथपाने लगा ।
मकसान था । मुझे नहीं पता मक ऐसा कोई नाम होता Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 . वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017