Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 411

Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725
रहता है ।” 77 एक आलोचक के रूप में अनुवादक को भी यह मजम्मेदारी उठानी होती है उसे अपने अनुवाद- कमा में नई व्याख्याएं देनी होती है । एक रचनाकार के रूप में उसी सृजन-पीड़ा से होकर गुजरना होता है और एक नई कृ मत को जन्म देना होता है । मफर अनुवादक तथा अनुमदत कृ मत की अपनी स्वतंत्र सत्ता क्यों न हो ? इस संदभा में “ याकोलिन ने सृजनात्मक पाठ के अनुवाद को मूल पाठ का प्रमतरूप न मानकर सृजनात्मक रूपातंरि कहां है । यह एक ऐसी स्वायत सृजानात्मक मवधा है मजसकी अपनी सत्ता है ।” 78
प्रेमचंद की कहानी ‘ ितरंज के सखलाड़ी ’ का िययजीत राय द्वारा मकया गया मफ़ल्मी रूपातंरि ( मसनेमेमटक रांसलेशन ) अच्छा उदाहरि है । जहां सत्यमजत राय कहानी की मूल संवेदना को संजीदगी के साथ पकड़ते है मक मकस प्रकार उस दौर का राजनीमतक पतन हो चुका था , वही नई व्याख्याएं भी देते हैं । प्रेमचंद के यहां वामजदअली शाह को एक पतनशील राजा के रूप में मचमत्रत मकया गया है । जोमक एक औपमनवेमशक समझदारी है । वहीं सत्यजीत राय के यहां वह “ स्वभाव से कमव , मवद्वान और सुसंस्कृ त
व्यमक्त तो है ही , सौंदया का पारखी भी है । उसे समझने में देर नहीं लगती मक डूबते मुगमलया राज की तमाम मवकृ मतयों को दूर करने के मलए वह पैदा नहीं हुआ है । ये मवकृ मतयां कोई एक मदन में पैदा नहीं हुई हैं , अमपतु कई-कई दशकों या पूरी एक शताब्दी में पैदा हुई है ।” 79 सत्यजीत राय के यहां वामजदअली शाह का पूरा चररत्र शासक-वगा द्वारा गढ़े गए एक शासक के मदावादी चररत्र को बार-बार चुनौती देता है ।
मीर साहब की बेग़म मजस “ अज्ञात कारि ” 80 से मीर साहब को घर से दूर रखना उपयुक्त समझती थी , सत्यजीत राय उस ‘ अज्ञात कारि ’ का भेद खोल देते हैं मक महल के अंदर बेग़मों की जो उपेमक्षत अतृप्त इच्छाएं थी , वह मकस प्रकार अलग-अलग माध्यमों से पूरी होती हैं ।
प्रेमचंद के यहां , जहां “ अपने बादशाह के मलए मजनकी आंखों से एक बू ंद आंसू न मनकला , उन्हीं दोनों प्रामियों ने शतरंज के वजीर की रक्षा में प्राि दे मदए ।” 81 वहीं सत्यजीत राय के यहां “ अंत में , जब अंग्रेज लखनऊ में प्रवेश कर जाते हैं तब भी वह
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संकलन , गोपेश्वर ससंह , ‘ नसलन ववलोचन शमाच : संकसलत तनबंध ’, प्रकाशन-नेशनल बुक ट्रस्ट , इंडडया , नई ददल्ली , 2011 , पृ . सं . - 62
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कृ ष्ण कु मार गोस्वामी , ‘ अनुवाद ववज्ञान की
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थचदानंद दास गुप्ता , ‘ सत्यत्जत राय का ससनेमा ’, नेशनल बुक ट्रस्ट , इंडडया , नई ददल्ली , संस्करण-1997 , पृ . सं . -77
80
सं . -भीष्म साहनी , ‘ प्रेमचंद : प्रतततनथध कहातनयां ’,
भूसमका ’, पृ . सं . -274
राजकमल प्रकाशन , नई ददल्ली , 2010 , पृ . सं . -74
81
वही , पृ . सं . -80
Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 . वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017