Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 410

Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725
राजनीमतक और सामामजक उद्देश्य है । ध्यान देने योनय बात है मक ये सारी कहामनयां एक ही भारतीय उपमहाद्वीप की कहामनयां हैं ।
मजसे ‘ मौमलक पाठ ’ कहा जा रहा है , यमद वह पुनरुत्पादन है तो वह एक लेखक की व्यमक्तगत संपमत्त कै से हो सकती है ? और कोई भी सामहमत्यक पाठ , मजसका उद्देश्य मानवतावाद का मवकास करना है , वह ज्ञान के लोकतांमत्रकरि की प्रमक्रया का माध्यम होगा मक नहीं ? या मफर के वल एक लेखक या कमव की मनजी संपमत्त हो कर रह जाएगा ? यमद “ सामहत्य का अमस्तत्व समाज से अलग नहीं होता ... सामहत्यकार रचनाशील चेतना उसके सामामजक अमस्तत्व से मनममात होती है । सामहमत्यक कमा की पूरी प्रमक्रया सामामजक व्यवहार का ही एक मवमशसे रूप है ।” 75 तो अनुवादक भी तो उसी समाज का महस्सा है , जहां ज्ञान ( सामहमत्यक पाठ ) पर कोई पहरा नहीं होना चामहए । वह मकसी की व्यमक्तगत संपमत्त न हो । उसपर सबका अमधकार हो । वह सबके मलए सुलभ हो । यही अनुवाद – कमा का उद्देश्य है और सामहमत्यक-कमा का भी । ज्ञान को सुलभ बनाने की इस प्रमक्रया में एक अनुवादक कहां है ? उसके क्या अमधकार है ? इस पर मवचार करना आवश्यक है । कृ ष्ट्ण कु मार गोस्िामी
अपनी पुस्तक ‘ अनुिाद सिज्ञान की भूसमका ’ में मलखते है मक “ अनुवादकमी एक ऐसा कलाकार है मजसे आलोचक ( पाठक ), भार्षामवद् और रचनाकार ( लेखक ) तीनों मस्थमतयों में एक साथ गुजरना पड़ता है । वह आलोचक या पाठक के रूप में मूल कृ मत में बीज का पता लगाता है । भार्षामवद् के रूप में उस बीज को अन्य भार्षा की जमीन की जलवायु , वातावरि आमद को समझते हुए उस जमीन पर प्रमतरोमपत करता है और रचनाकार के रूप में उसे सवांरता है । तभी वह पौधा बनकर अनुमदत कृ मत के रूप में प्रस्फु मटत और पल्लमवत होता है ।” 76 यहां मफर से एक प्रश्न उठता है की क्या मकसी कृ मत के ‘ बीज ’ का पता लगा लेने तक की ही आलोचक की मजम्मेदारी है , मक अमुक पाठ में क्या कहा गया है ? उसके क्या गुि दोर्ष है ? या मफर मकसी पाठ की एक नयी व्याख्या प्रस्तुत करना भी आलोचक का काम है । इस मायने में “ आलोचक सृजन की प्रमक्रया का अपररहाया अंग है ... सामहत्यालोचन जहां तक एक मवज्ञान है , वह कृ मत मवशेर्ष का पररक्षि करता है , उसका गुिदोर्ष-मनरुपि करता है और आवश्यकतानुसार नवीन मसंद्धातों की उद्भावना भी करता है । इसके साथ ही साथ कला के रूप में वह उत्पेरक कृ मतयों के मनमााि में भी संलनन
75
मैनेजर पांडेय , ‘ सादहत्य और इततहास दृत्ष्ट ’, वाणी
76
कृ ष्ण कु मार गोस्वामी , ‘ अनुवाद ववज्ञान की
प्रकाशन , ददल्ली , 2009 , पृ . सं . -7
भूसमका ’, पृ . सं . -274
Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 . वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017