Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 408

Jankriti International Magazine/ जनकृसत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN: 2454-2725 है। वह है, सामहमत्यक अन व ु ाद में भाव पक्ष की अन व ु ाद–कमा मात्र एक भार्षा से द स ू री भार्षा म प्रधानता। रूपांतरि है ? या उसका कोई सांस्कृ मतक, राजनीमतक सामहमत्यक अन व ु ाद एक सृजनात्मक कमा है, अन व ु ादक कुछ काट-छाट या जोड़ने की छूट ल सकता है। इन सब बातों को कहने के बावज द ू , क्या अन म ू दत पाठ की अपनी स्व त ं त्र सत्ता हो सकती है? इस पर एक मौन मदखता है। अन व ु ादक पर बार-बार तथा वैचाररक उद्देश्य भी है ? वह मकसके मलए मकया जा रहा है ? अन व ु ाद-प्रमक्रया में एक अन व ु ादक कहा है ? उसके क्या अमधकार है ? ये प्रश्न तब और अमधक महत्त्वप ि ू ा हो जाते हैं, जब वह पाठ एक सामहमत्यक पाठ हो। ‘ईमानदारी’ का प्रश्न उठाया जाता है मक “अन व ु ादक “सामहत्य के अमस्तत्व, महत्त्व, उत्थान, और अपनी तरफ से मकतनी स्वतंत्रता ले सकता है। यह प्रभाव की व्याख्या सम च ू ी व्यवस्था के समग्र अपने-आप स्पसे है मक सामहमत्यक अन व ु ाद करते हुए ऐमतहामसक संदभा में ही की जा सकती है। सामहत्य का अथा में आ म ं शक लोप और संयोजन के आधार पर उद्भव और मवकास समग्र ऐमतहामसक-सामामजक रूपांतरि अमनवाया है। मगर इसका अथा यह नहीं की प्रमक्रया का अ ग ं है। सामहमत्यक रचनाओ ं का म ल के प्रमत ईमानदार रहने की जरूरत नहीं।” 68 यह सौंदयागत सारतत्त्व और म ल् ू य और इसमलए उनका संद ह े वाचक प्रश्नमचह्न अन व ु ादक के ऊपर सदैव प्रभाव उस सामान्य और सममन्वत सामामजक प्रमक्रया म ड ं राता रहता है। का अ ग ं है।” 69 समाज से काटकर सामहत्य को नहीं अब मवचारिीय है मक मजसे बार–बार ‘म ल - समझा जा सकता। “सामहत्य एक सामामजक रचना पाठ’ कहा जाता रहा है, वह क्या वास्तव में मौमलक है।” 70 वह एक ‘ऐमतहामसक सामामजक प्रमक्रया’ का है ? उसकी रचना–प्रमक्रया क्या है ? मजसे मौमलक अ ग ं है। इसीमलए मकसी भी पाठ को तथा उसकी रचना कहा जा रहा है, क्या वह स्वयं प न ु रा चना नहीं ? क्या प्रमक्रया को समझने के मलए दोनों के द्व द्व ं ात्मकता को समझना आवश्यक है। प्रत्येक रचना अपने देश- 68 डॉ. इंद्रनाि चौध र ु ी, लेख-‘सादहत्त्यक अन व ाद के संदभच में अनुवाद अध्ययन का स्वरूप’, प्र. सं.-डॉ. गागी गुप्त, सं.-पूरन चंद्र टं डन, ‘अनुवाद बोध’, भारतीय अनुवाद पररर्द, नई ददल्ली, प . ृ सं.-115 69 जॉजच ल क ाच, लेख-सौंदयचशास्त्र के बारे में माक्स कला’, राहुल फाउं डेशन लखनऊ, प्रिम संस्करण-2006, प . ृ सं.-445 70 मैनेजर पांड य , सादहत्य और इततहास दृत्ष्ट, वाणी प्रकाशन, ददल्ली, 2009, प . ृ सं.-7 और एंगेल्स के ववचार, माक्सच-एंग ल् स, ‘सादहत्य और Vol. 3 , issue 27-29, July-September 2017. वर्ष 3, अंक 27-29 जुलाई-सित ब ं र 2017