Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 406

Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725
का पुनका थन नहीं ।” 56 यह जोमखम व मजम्मेदारी का काम है । तब यह जोमखम और बढ़ जाता है , जब मवदेशी भार्षा के पाठ का अनुवाद करना हो । इस सन्दभा में सुरेश मसंघल की मान्यता है मक “ सांस्कृ मतक तथा ऐमतहामसक दूरी मजतनी बढ़ती जाती है । अनुवाद की कमठनता उतनी ही बढ़ती जाती है ।” 57 ड्राइडन के शब्दों में इसे “ पैराफ्रे ज कह सकते हैं ( जो मेराफ्रे ज यामन अक्षरशः अनुवाद नहीं होते )” 58 वहां भाव- प्रविता एवं संप्रेर्षिीयता अमधक महत्त्वपूिा है ।
पािात्य से लेकर भारतीय मवद्वानों ने अक्षरशः अनुवाद को कमजोर अनुवाद माना है । भारतेंदु “ अनूमदत ग्रंथ को अपनी भार्षा के पाठकों द्वारा सहजता से ग्रहि मकये जाने के मलए मूल भार्षा के मुहावरों का भी शामब्दक अनुवाद करने की अपेक्षा उसके समतुल्य अपनी भार्षा के प्रचमलत मुहावरों का समावेश करने के पक्ष में थे ।” 59
महािीर प्रिाद सद्विेदी , ‘ कु मारसंभव ’ के अनुवाद
के वल भाव को प्रकट करने के मलए होता है । अतएव भाव प्रदशान अनुवाद ही उत्तम अनुवाद है ।” 60
िुक्ल जी , “ अनुवाद की भार्षा में मौमलक लेखन जैसा प्रभाव उत्पन्न मकया जाए ” 61 , इस बात के समथाक थे । अपने अनुवाद कमा में उन्होंने अपने कथनानुसार पूरी छू ट ली और जरूरत के अनुसार अंश काटे-छाटे व जोड़े भी ।
हररिंि राय बच्चन जो मक एक कमव के साथ- साथ सफल अनुवादक भी थे , उन्होंने जोर देकर कहा मक “ अपने अनुवाद के मवर्षय में मुझे के वल इतना ही कहना है मक मैं शब्दानुवाद करने के फे र में नहीं पड़ता । भावों को ही मैंने प्रधानता दी है ।” 62 डॉ . गागी गुप्त ने अनुवाद को मूल का पुनका थन न मानकर , पुनराचना माना और कहा मक “ सफल अनुवाद वही होता है जो अनुवाद होकर भी अनुवाद जैसा प्रतीत न हो और एक मौमलक का-सा आनंद दे ।” 63
की भूममका में कहते हैं मक “ शब्दों का प्रयोग तो
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डॉ . सुरेश ससंहल , अनुवाद : संवेदना और सरोकार , संजय प्रकाशन , नई ददल्ली , प्रिम संस्करण-2006 , पृ . सं . -17
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वही , पृ . सं . -17
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डॉ . इंद्रनाि चौधुरी , लेख- ‘ सादहत्त्यक अनुवाद के
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डॉ . सुरेश ससंहल , ‘ अनुवाद : संवेदना और सरोकार ’, संजय प्रकाशन , नई ददल्ली , प्रिम संस्करण- 2006 , पृ . सं . -13
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वही , पृष्ठ सं . – 15
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वही , पृ . सं . -15
संदभच में अनुवाद अध्ययन का स्वरूप ’, प्र . सं . -डॉ. गागी
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हररवंशराय बच्चन , ‘ बच्चन रचनावली ’, खंड-4 ,
गुप्त , सं . -पूरन चंद्र टंडन , ‘ अनुवाद बोध ’, भारतीय राजकमल प्रकाशन , ददल्ली , 1983 , पृ . सं . -283
अनुवाद पररर्द , नई ददल्ली , पृ . सं . -120
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डॉ . आरसू , ‘ सादहत्यानुवाद : संवाद और संवेदना ’,
वाणी प्रकाशन , ददल्ली , 1995 , पृ . सं . -34
Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 . वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017