Jankriti International Magazine/ जनकृसत अंतरराष्ट्रीय पसिका
ISSN: 2454-2725
होते हैं और अन व ु ाद तथा अन व ु ादक – दोनों की मवर्षयवस्तु के स्पसे और सटीक अ त ं रि की अपेक्षा
प्रमतष्ठा होती है।” 51 उल्लेखनीय है मक इस प्रस ग ं म की जाती है ।” 53 लेमकन सामहमत्यक अन व ु ाद करत
सामहमत्यक अन व ु ाद सवाामधक कारगर सामबत हुआ समय यह मजम्मेदारी और बढ़ जाती है। वहां अथा की
है। संप्रेर्षिीयता के साथ-साथ सृजन का प्रश्न अहम् हो
सामहमत्यक अन व ु ाद को मभन्न–मभन्न समयों म
उठता है। कला पक्ष और भाव पक्ष दोनों को प र ू ी
पररभामर्षत मकया जाता रहा है। मकसी ने उसे प न ु रा चना सावधानी के साथ मनभाना अन व ु ादक की मजम्मेदारी
कहा है तो मकसी ने प न ु सृाजन, मकसी ने अन स ु ज ृ न कहा होती है। “सामहमत्यक अन व ु ाद के मसद्धा त ं में एक
है तो मकसी ने सामहमत्यक प न ु जीवन।” 52 अन व ु ादक से यह अपेक्षा की जाती है मक वह स्रोत
पाठ में दजा वस्त म ु नष्ठ यथाथा को प न ु ःसृमजत
अन्य सभी शाखाओ ं के अन व ु ाद की त ल
ना म
सामहमत्यक अन व ु ाद अमधक कमठन होता है क्योंमक
करे ...अन व ु ादक सावधानीप व ू क
लेखक की शैली
एवं पद्धमत के अन स ु रि का भी प्रयास करता है।” 54
वहां संस्कृ मत व संव द े ना की संप्रेर्षिीयता का प्रश्न
सामहमत्यक अन व ु ाद करते समय एक अन व ु ादक
महत्वपूिा हो उठता है। पी. एम. पाण्डेय वैज्ञामनक
पाठ के अन व ु ाद तथा सामहमत्यक अन व ु ाद का अ त ं र
समझाते हुए कहते है मक “वैज्ञामनक एवं तकनीकी
पाठ के अन व ु ाद के क्षेत्र में अमधकतर मसद्धांतकार
कमोबेश स्पसे हैं मक वहां अनुवादक से स्रोत पाठ की
51
52
वही, प . ृ सं.-78
रचनाकार (लेखक)” 55 तीनों की होती है। इसीमलए
लेखक एवं अन व ु ादक में भेद करना गलत है।
सामहमत्यक “अन व ु ाद एक सृजनात्मक प्रमक्रया है, म ल
54
कृष्ण कुमार गोस्वामी, ‘अन व
ाद ववज्ञान की
भूसमका’, राजकमल प्रकाशन, नई ददल्ली, पहला छात्र
संस्करण-2012, प . ृ सं.-273
“In the field of scientific and technical translation,
theoreticians more or less are clear that the demands made
upon the translators with regards to the exact transmission
53
of the content of the original, its clarity and accuracy
की भ म ू मका “आलोचक (पाठक), भार्षामवद, और
.” P.
M. Pande, ‘Some Problems of Theory and Practice of
Translation’, सं.-गोपीनािन एव ं कंदस्वामी, अनुवाद की
|“ The theory of literary translation expects a translator
to recreate the objective reality which has been depicted in
the original work…he will also make a conscious attempt to
follow the author’s style and method. ” वही, प . ृ सं.-19
55
कृष्ण कुमार गोस्वामी, ‘अन व
ाद ववज्ञान की
भूसमका’, राजकमल प्रकाशन, नई ददल्ली, पहला छात्र
संस्करण-2012, प . ृ सं.-274
समस्याएं, लोकभारती प्रकाशन, इलाहाबाद, प्रिम
संस्करण-1993, प . ृ सं.-19
Vol. 3 , issue 27-29, July-September 2017.
वर्ष 3, अंक 27-29 जुलाई-सित ब ं र 2017