Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 404

Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725
अनुिाद
िासहसययक अनुिाद : ज्ञान का लोकतंिीकरण एिं अनुिादक की स्िायत्ा का प्रश्न
श्वेता राज शोधाथी , ( महंदी अनुवाद )
भारतीय भार्षा कें द्र , जवाहरलाल नेहरू मवश्वमवद्यालय
नई मदल्ली-110067 rajshweta08 @ gmail . com , 9968914002
िारांि
प्रस्िुि आलेख साशहशत्यक अनुवाद पर के शन्द्रि है । इस लेख के माध्यम से अनुवाद-कमम के वृहद् शवस्िार के साथ उसके माध्यम से ज्ञान के लोकिंत्रीकरण की प्रशिया िथा मौशलकिा की अविारणा पर शवचार करिे हुए , पूरे अनुवाद-कमम में अनुवादक की भूशमका , उसकी स्वायत्ता पर शवचार- शवमिम का प्रयास शकया र्गया है ।
प्रमुख िलद : अनुवाद , अनुवादक , मूल , मौमलक , भूमंडलीकरि , सामहत्य , सामहमत्यक , संस्कृ मत , भाव पक्ष , ज्ञान , लोकतंत्रीकरि , स्वायत्ता , सैद्धांमतक , समाज ।
वतामान समय में अनुवाद हमारे सामान्य जीवन – व्यवहार का अंग बन चुका है । भूमंडलीकरि के इस में दौर में जहां मवमवध संस्कृ मतयों में आपसी टकराहट जारी है , वहीं अनुवाद की महत्ता तेजी से बढ़ रही है । इसके पीछे मवश्व के अनेक भेदों व तथ्यों को जान लेने
की मजज्ञासा है । सामहत्य , इमतहास , राजनीमत , दशान , मवज्ञान , कला सभी एक भार्षा से दूसरी भार्षा में अनूमदत हो रहे हैं और मानव जामत के खाते में नए अनुभवों , मसद्धांतों व तथ्यों को जोड़ रहे हैं । “ मवश्व संस्कृ मत के मवकास में अनुवाद का बड़ा योगदान है ... अनुवाद के सहारे ही मवश्व भर में उत्तम सामहत्य पहुँच रहा है ।” 49
सवामवमदत है मक सामहत्य का काम मानव को संवेदनशील बनाना है । वह समाज के एक बड़े फलक पर क्रांमतकारी चेतना का संचार करता है । इसका मवस्तार ही सामहत्य का उद्देश्य है ; मजसमें अनुवाद ने आगे बाद बढ़कर अपनी भूममका मनभायी है । ज्ञान की नई-नई शाखाओंसे पररमचत होकर आज का नागररक मन अमधक उदार हुआ है । उसमें एक दूसरे को जानने की बेचैनी बढ़ी है । प्रमसद्ध मराठी रचनाकार सूयानारायि रिसुभे सही कहते हैं मक “ एक वृहत्तर समाज या मनुष्ट्य के साथ जुड़ने की छटपटाहट से ही समान अनुवाद-प्रमक्रया शुरू हो जाती है ... मनुष्ट्य सभी और समान है , उनके दुख भी समान है , सभी और उनकी मनयमत भी समान है – सृजनात्मक सामहत्य के अनुवाद में इस ्टमसे की मनतांत आवश्यकता है ।” 50 इसीमलए “ दुमनया की मजस जामत में जनतांमत्रकता अमधक है , वहां सवाामधक अनुवाद
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डॉ . अनुज प्रताप ससंह , ‘ अनुवाद ससदधांत और
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सूयचनारायण रणसुभे , ‘ अनुवाद प्रक्रिया और
व्यवहार ’, ग्रंिलोक प्रकाशन , ददल्ली , प्रिम संस्करण- व्यवस्िा ’, सं . -राजेंद्र यादव , ‘ हंस ’ पत्रत्रका , अक्षर प्रकाशन
2008 , पृ सं . -232
प्रा . सल ., नई ददल्ली , अंक-अक्टूबर 1997 , पृ . सं . -77
Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 . वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017