Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 399

Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725
कॉलेज में कायारत रहा । उसके बाद मेरी मनयुमक्त पुिे मवश्वमवद्यालय के महंदी मवभाग में रीडर पद पर हुई ।
५- डॉ . प्रमोद पाण्डेय : मु ंबई मवश्वमवद्यालय में आप
कब आए ? डॉ . करुणािंकर उपाध्याय : जब मैं पुिे
मवश्वमवद्यालय में पढ़ा रहा था तो उसी समय मेरी मनयुमक्त मु ंबई मवश्वमवद्यालय के महंदी मवभाग में रीडर के पद पर हुई और मैंने मदसंबर- 2003 में मु ंबई मवश्वमवद्यालय में रीडर पद का कायाभार संभाला ।
६- डॉ . प्रमोद पाण्डेय : मु ंबई मवश्वमवद्यालय का
आपका आरंमभक अनुभव कै सा रहा ? डॉ . करुणािंकर उपाध्याय : मैं मु ंबई मवश्वमवद्यालय
में अपनी पी-एच . डी . पूिा होने के उपरांत सन् 1997 से ही अमतमथ प्राध्यापक के रूप में एम . ए . की कक्षाएं ले रहा था । मैंने अपनी पी-एच . डी . डॉ . चंद्रकांत बांमदवडेकर जी के मागादशान में संपन्न की थी । अतः मैं कह सकता हूँ मक मैं 1989 से ही मु ंबई मवश्वमवद्यालय के महंदी मवभाग से जुड़ा रहा और वहाँ की तमाम गमतमवमधयों से पररमचत था । इसमलए जब मैंने मु ंबई मवश्वमवद्यालय में अपना कायाभार संभाला तो मुझे मकसी प्रकार की कोई तकलीफ नहीं हुई ।
७- डॉ . प्रमोद पाण्डेय : आपकी सामहमत्यक यात्रा
की शुरुआत कब और कै से हुई ? डॉ . करुणािंकर उपाध्याय : जहाँ तक मेरी
सामहमत्यक यात्रा का सवाल है तो मैंने 11वीं और 12वीं के अध्ययन के दौरान ही मीराबाई नामक एक काव्य नाटक मलखा जो अभी तक प्रकामशत नहीं हुआ है । उसके बाद मु ंबई आकर मैंने कहानी , कमवता और मनबंध लेखन के क्षेत्र में अपनी रुमच का पररचय मदया । लेमकन एम . ए . करने के दौरान ही मैं आलोचना के क्षेत्र में आ गया और मूल रूप से आलोचक ही बन गया ।
८- डॉ . प्रमोद पाण्डेय : आप अपनी सामहमत्यक
यात्रा के मलए मकसे प्रेरिा स्रोत मानते हैं ? डॉ . करुणािंकर उपाध्याय : जहाँ तक सामहमत्यक
यात्रा के प्रेरिा स्रोत का सवाल है तो मैं अपनी सामहमत्यक यात्रा के प्रेरिा स्रोत के रूप में डॉ . चंद्रकांत बांमदवडेकर , डॉ . रोशन डुमामसया और अपने बड़े भाई साहब को श्रेय देता हूँ क्योंमक इन लोगों ने मुझे सामहत्य के क्षेत्र में समक्रय होने के मलए प्रेररत मकया ।
९- डॉ . प्रमोद पाण्डेय : आप एक प्रमसद्ध सामहत्यकार एवं आलोचक के रूप में प्रमसद्ध हैं , इतनी लंबी यात्रा आपने कै से तय की ? डॉ . करुणािंकर उपाध्याय : इस संदभा में कहना
चाहूंगा मक मैंने एम . ए . के दौरान आलोचनात्मक लेख मलखने आरंभ मकए थे । जब मैं पी-एच . डी . कर रहा था , उस समय 1995 में मेरी दो आलोचना की पुस्तकें , " सजाना की परख ," " सामहत्यकार बेकल : संवेदना और मशल्प " प्रकामशत हुई । इसके बाद सन् 1999 में मेरा पी-एच . डी . का शोध प्रबंध " आधुमनक महंदी कमवता में काव्य मचंतन " शीर्षाक से प्रकामशत हुआ । उसके बाद 2001 में " पािात्य काव्य मचंतन के मवमवध आंदोलन " मवर्षय पर मवश्व मवद्यालय अनुदान आयोग की अध्येतावृमत्त पर मेरा पोस्ट डॉक्टर ररसचा संपन्न हुआ । सन्- 2002 में मेरी पुस्तक " मध्यकालीन काव्य मचंतन और संवेदना " तथा 2003 में " पािात्य काव्य मचंतन " नामक काव्यशास्त्रीय ग्रंथ प्रकामशत हुआ । इसी क्रम में पत्र-पमत्रकाओं में लगातार लेखन होता रहा । सन् 2007-08 में 5 पुस्तकें प्रकामशत हुई । इन पुस्तकों में " महंदी कथा सामहत्य का पुनपााठ ," " मवमवधा ," " आधुमनक कमवता का पुनपााठ ," " महंदी का मवश्व संदभा " इत्यामद का समावेश है । इसके बाद कई पुस्तकें प्रकामशत हुई , मजनमें आवां मवमशा , वक्रतु ंड ममथक की समकालीनता , ब्लैक होल मवमशा , सृजन के अनछु ए संदभा , महंदी सामहत्य मूल्यांकन और मूल्यांकन , सामहत्य और संस्कृ मत के
Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 . वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017