Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 39

Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725
आलोचनात्मक हस्तक्षेप करने का प्रयास करती है . यह मनुष्ट्य को सचेत प्रािी मानकर चलती है और उसके अंदर सोचने-समझने की क्षमताओंका मवकास करती है . इसमें ( समस्या-उठाऊ मशक्षा वयवस्था में ) “ अब सशक्षक महज वह नहीं रहता है ‘ जो पढ़ाता है ’ बसल्क छािों िे िंवाद करते िमय स्वयं भी उनिे पढ़ता है . दूिरी तरफ छाि भी वे नहीं रहते ‘ जो पढ़ते है ’, बसल्क सशक्षक िे िंवाद करते िमय पढ़ने के िाथ-िाथ पढ़ाते भी हैं . सशक्षक और छाि , दोनों उि प्रसिया के सलए उत्तरदायी हो जाते हैं , सजिमें िभी की वृसि होती है . इि प्रसिया में ‘ असधकार ’ पर आधाररत तकों की कोई वैधता नहीं रहती , क्योंसक यहााँ आसधकारी को यसद काम करना है तो स्वतंिता उिके सवरुि नहीं बसल्क उिके पक्ष में होना पड़ेगा . यहााँ न तो कोई दुिरे को सशसक्षत करता है , न स्वयं – सशसक्षत होता है . यहााँ मनुष्ट्य एक-दुिरे को सशसक्षत करते हैं और उनके बीच में होता है सवश्व , अथाषत िंज्ञेय वस्तुएं , जो बैंसकं ग सशक्षा में सशक्षक की अपनी वस्तुएं होती है .”
मनष्ट्कर्षा यह की बैंमकं ग व्यवस्था की मशक्षा जहाँ छात्रों को सहायता की वस्तु मानती है वही ँ समस्या-उठाऊ मशक्षा उन्हें आलोचनात्मक ढंग से सोचने वाला बन्नती है और अपनी मशक्षाशास्त्रीय पद्दमतयों में सृजनात्मकता को आधार बनाकर चलती है . यह छात्र को एक सम्पूिा मनुष्ट्य मानती है जो ज्ञान का मनमााि करते हैं न की कोरा कागज़ मजन पर कु छ भी अंमकत मकया जा सकता है .
पुस्तक का तीिरा अध्याय इस पर के मन्द्रत है की मशक्षा में मवर्षय तो एक साधन होते हैं मजनके जररए हम दुमनया को और अपने आप को समझते हैं असल जरूरत तो समूचे पररप्रेक्ष्य को समझने की है . मजसके मलए फ्रे रे मचंतन और कमा में आपसी संवाद को जरूरी
मानते हैं . और इस क्रम में ज्ञान का जो मनम ाि होता है उसमें पररिाम का उतना महत्त्व नही है मजतनी प्रमक्रया का . पररवेश से जुड़ी हुई कु छ बुमनयादी अवधारिाओं के मनमााि का काया हमारी प्राथममक कक्षाओं की अमनवाया शता होनी चामहए बजाय की सूचनाओं के संग्रहि के . अवधारिाओं के जानने के साथ ही बातचीत और ज्ञान के अन्य स्रोतों की ओर बढ़ा जा सकता है जो छात्रों में कल्पना और मचन्तन के मवकमसत होने के अवसर देते है . मजससे आलोचनात्मक समझ के मवकास में सहायता ममलती है .
पुस्तक के चौथे अध्याय में सांस्कृ मतक कमा की संवादात्मक और संवाद मवरोधी प्रमक्रयाओंमें ढलकर मवकमसत होने वाले मसधांतों का मवशलेर्षि मकया गया है . कु छ संवाद मवरोधी और संवादात्मक मसद्दांतों का मवस्तार से चच ा करते हए लेखक का मनष्ट्कर्षा है मक –“ संवाद मवरोधी कमा के मसधांत में सांस्कृ मतक आक्रमि चालबाजी ( मतकड़म ) के लक्ष्यों के मलए काम करता है , चालबाजी अमभमजमत के लक्ष्यों के मलए काम करती है , और अमभमजमत प्रभुत्व के लक्ष्यों के मलए काम करती है . सांस्कृ मतक संस्लेर्षि संगठन के लक्ष्यों के मलए काम करता है और संगठन मुमक्त के लक्ष्यों के मलए काम करता है .
अमभमजमत , मवभाजन
और शासन , चालबाजी , सांस्कृ मतकआक्रमि , सहयोग , मु मक्त के मलए एकता , संगठन , सांस्कृ मतक संश्लेर्षि आमद मबन्दुओं पर मवस्तार से चचाा की गयी है . उत्पीड़न से मुशि वही ीँ से िुरू होिी है जब “ मनुष्य को स्वयं ही अपने श्रम का स्वामी होना चाशहए , मानव का िरीर का ही एक अंर्ग है , और एक मानवीय प्राणी को न िो खरीदा जा सकिा है और न ही वह स्वयं को बेच सकिा है , इन िथ्यों की आलोचनात्मक चेिना प्राप्त कर लेिा है . ऐसा करना यथाथम का मानवीकरण
Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 . वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017