Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 388

Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725
दमलत सामहत्य को समृद्ध करता है । तीसरी , दमलत कहामनयों का समकालीन स्वर और उसका उभार दमलत कथाकारों के अंतरबाह्य संघर्षा को सूमचत करता है । चौथी , समकालीन महन्दी दमलत कहामनयों के माध्यम से नारकीय एवं अपमानजनक जीवन मस्थमतयों के इदा-मगदा रहनेवाले , उसे भोगनेवाले पात्रों – चररत्रों से महन्दी कहानी पहली बार मुखामतब होती है । अतः साफ कहा जा सकता है मक दमलत कहामनयाँ समकालीन महन्दी कहानी लेखन को सशक्त करती हैं ।
दमलत मचंतन को मदशा देने वाले डॉ . अंबेडकर ने कहा था मक गाँव जामतगत भेदभाव और धाममाक पाखंड के कल – कारखाने हैं । उनका ऐसा कहने का स्पसे प्रयोजन था । उन्होंने अपने जीवनानुभवों में यह देखा और महसूसा था मक ग्रामीि समाज – व्यवस्था में न कहीं सामामजक लोकतन्त्र है , ना आमथाक लोकतन्त्र । अंबेडकर लोकतन्त्र को मसफा राजनीमतक अथा में देखने के बजाय उसे सामामजक , आमथाक कोि से संपृक्त करते हैं । ‘ इंमडयन फे डरेशन ऑफ लेबर ’ के तत्त्वावधान में 8 से 17 मसतंबर , 1943 में मदल्ली में ‘ अमखल भारतीय काममाक संघ ’ में डॉ . आंबेडकर ने संसदीय लोकतन्त्र की असफलताओं का मूल कारि सामामजक – आमथाक लोकतन्त्र के के वास्तमवक रूप में अमस्तत्वहीन होने को करार मदया है- “ सामामजक और आमथाक लोकतन्त्र राजनीमतक लोकतन्त्र के स्नायु और तंत्र हैं । ये स्नायु और तंत्र मजतने अमधक मजबूत होते हैं , उतना ही शरीर सशक्त होता है । लोकतन्त्र समानता का दूसरा नाम है । संसदीय लोकतन्त्र ने स्वतन्त्रता की चाह का मवकास मकया , परंतु समानता के प्रमत इसने नकारात्मक रुख अपनाया ।” 4 ( चन्द्र , सुभार्ष ,( संपादक ), अम्बेडकर से दोस्ती : समता और मुमक्त ; इमतहास बोध प्रकाशन , इलाहाबाद , सं . 2006 , पृ . 191 ) आगे भी उनके इस
मनम्न कथन को देखा जाय तो लोकतन्त्र के मूल अथा को समझा जा सकता है “ प्रजातंत्र सरकार की एक स्वरूप मात्र नहीं है । यह वस्तुतः साहचया की मस्थमत में रहने का एक तरीका है , ... प्रजातंत्र का मूल है , अपने सामथयों के प्रमत आदर और मान की भावना ।” 5 ( वही , पृ . 50 ) भारतीय सामामजक संरचना में समानता की भावना और अपने साथी को आदर देने की मनोवृमत्त ही सही प्रजातांमत्रक मानस को मनममात कर सकती है । कहने मक जरूरत नहीं है मक सामामजक-आमथाक लोकतन्त्र का अभाव स्वातंत्र्योत्तर मवकास को एकांगी और मनरथाक बनाता है । स्वातंत्र्योत्तर परर्टश्य में प्रजातन्त्र की स्थापना , पंचायती राज की प्रमतष्ठा आमद मवमवध मवकासमूलक कायाक्रम राजनीमतक पहल के रूप में हुए जो प्रकरान्तर से राजनीमतक लोकतन्त्र को स्थामपत करने की समदच्छा थी पर इन सबका मक्रयान्वयन आधा- अधूरा था , पूिातः एकांगी । इसकी समूची प्रमक्रया में सामामजक और आमथाक लोकतन्त्र को आहत करने वाले , उसे ध्वस्त करने वाले तत्त्वों को न तो मचमन्हत मकया गया , न उसे दूर करने की प्रचेसेा की गई । यहाँ , दमलत जीवन की कु छेक कहामनयों के मववेचन- मवश्लेर्षि द्वारा इस कटु सच से अवगत हुआ जा सकता है ।
इस प्रसंग में सबसे पहले पुन्नी मसंह की कहानी ‘ बोधन की नगमड़या ’ की चच ा स्वाभामवक है । यह कहानी स्वातंत्र्योत्तर ग्रामीि जीवन पररवेश की है । आलोच्य कहानी में मजस ग्रामीि सामामजक संरचना का मज़क्र है , उसमें बोधन एक दमलत है । वह और उसकी जामत के तमाम लोग गाँव के भीतर न रहकर उसके उसके बाहरी छोर पर रहने को बाध्य हैं , जो स्वातंत्र्योत्तर ग्रामीि समाज में सामामजक लोकतन्त्र के अभाव की तस्वीर पेश करता है । यहाँ यह भी समझा जा सकता है मक बोधन जैसों को स्वातंत्र्योत्तर
Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 . वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017