Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 387

Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725
असभव्यसक्त में िामासजक पररितकन की महतड आकांक्षा सलए हुए है । दमलत मवमशा का उभार
सामामजक जड़ताओंपर प्रहार है । दूसरे शब्दों में कहा जाय तो यह एक नए िामासजक – आसथकक लोकतंि गढ़ने की िसदच्छा है । इस समदच्छा ने समकालीन महन्दी सामहत्य को एक नए आयाम से आवेमसेत मकया है , मवशेर्षकर कथा – सामहत्य को । यहाँ श्यौराज मसंह बेचैन का मनम्न कथन अवलोकनीय है –“ दमलत सामहत्य उन अछू तों का सामहत्य है मजन्हें सामामजक स्तर पर सम्मान नहीं ममला । सामामजक स्तर पर जामतभेद के जो लोग मशकार हुए हैं , उनकी छटपटाहट ही शब्दबद्ध होकर दमलत सामहत्य बन रही है ।” 1 ( बेचैन , डॉ . श्यौराज मसंह , - एक बेचैन रास्ता है दमलत कथा का – ‘ अंगुत्तर ’, जुलाई-अगस्त-मसतंबर , 1997 , पृ . 70 ) समकालीन परर्टश्य में उभरा दमलत मवमशा मूलक सामहमत्यक स्वर अपने पूवावती स्वरों से मभन्न है । क्योंमक , यह के वल दमलत व्यथा , यातना और शोर्षि का उल्लेख भर नहीं करता , या मफर यह उसका गलदश्रु भावुकता पूिा मववरि देता है , बमल्क यह अपनी अपनी आत्मसजगता में समदयों से चली आ रही जामतवाद से कु ं मठत समाज – व्यवस्था का बमहष्ट्कार करता है । यहाँ इस संदभा में ओमप्रकाश वाल्मीमक के मनम्न कथन को पढ़ा जा सकता है – “ भारतीय समाज- व्यवस्था ने विा – व्यवस्था का एक ऐसा मजरहबख्तर पहन रखा है , मजस पर लगातार हमले होते रहे हैं मफर भी वह टूट नहीं पाई । बीसवीं सदी में सबसे बड़ा हमला अंबेडकर ने मकया … इस व्यवस्था को तोड़ने के मलए जामत – व्यवस्था का टूटना जरूरी है , तभी समाज में समरसता उत्पन्न हो सकती है ।” 2 ( वाल्मीमक , ओमप्रकाश , दमलत सामहत्य का सौंदयाशास्त्र , राधाकृ ष्ट्ि प्राइवेट , मलममटेड , प्र . सं 2001 , पृ . 59-60 ) कहना न होगा मक
दसलत सिमिकमूलक िासहयय उन सिचारों , िंस्कारों , आचरणमूलक व्यिहारों िे मुसक्त की आकांक्षा रखने िाला िासहयय है , जो जासतिाद के हसथयार द्वारा पैने सकए गए हैं । सजिके कारण मानिीय असधकारों का हनन हुआ है और िमाज में ऊं च-नीच , श्रेष्ठ – हीन का भाि भरा गया है ।
मवमदत है मक महन्दी दमलत सामहत्य का प्रारमम्भक स्वर कमवता के रूप में था । कहामनयों का दौर बाद का है । महन्दी सामहत्य के समकालीन परर्टश्य अथाात् 1990 के आसपास दमलत मवमशा मूलक स्वरों के साथ महन्दी दमलत कहानी भी चच ा का मवर्षय बनती है । कहना न होगा मक समकालीन महन्दी कहामनयों में दमलत जीवन मस्थमतयों और चररत्रों के साथ जो सामामजक प्रश्न उभरता है , वह एक मवमशसे उद्देश्य को मलए हुए होता है । मजसे ओमप्रकाश वाल्मीमक के मनम्न कथन में लक्ष्य मकया जा सकता है - “ महन्दी दमलत कहानी का समकालीन परर्टश्य आठवें दशक में तेजी से उभरता है मजसमें कई नए रचनाकार उभरकर अपनी उपमस्थमत दज़ा करते हैं , और अपनी कहामनयों के द्वारा दमलत सामहत्य को एक मजबूत आधार देने की कोमशश करते हैं । दमलत कथाकारों का यह प्रयास जहाँ सजानात्मक आवेग से स्वयं को तलाशने की प्रमक्रया के साथ – साथ सामामजक पररवेश की गंभीर चुनौमतयों से टकराता है , वहीं महन्दी कहानी का पररचय उन मस्थमतयों और चररत्रों से कराता है मजनसे महन्दी रचनाकार अनमभज्ञ था ।” 3 ( वाल्मीमक , ओमप्रकाश , दमलत सामहत्य का सौंदयाशास्त्र , राधाकृ ष्ट्ि प्राइवेट मलममटेड , नई मदल्ली , प्र . सं . 2001 , पृ . 108-109 ) ध्यान मदया जाय तो यहाँ ऐसी कई बातें उभरती हैं , जो दमलत मवमशा के नये स्वर से हमारा पररचय कराती हैं । पहली , समकालीन महन्दी कहानी में दमलत स्वर का उभार आठवें दशक में प्रारम्भ होता है । दूसरी , कहानी मवधा में दमलत स्वर
Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 . वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017