Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 384

Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725
वह ज्ञान वह मशक्षा बेकार ही है मजसका उपयोग देश महत में न हो । ‘ रहबर जी ’ के कृ मतत्व के आलोक में इनकी मवचार धारा पर ्टमसेपात करते समय मजस पक्ष को मवशेर्ष रूप से देखना है , वह है राजनैमतक चेतना । यद्यमप राजनैमतक प्रमतबद्धता अन्धानुकरि को जन्म देती है । तथामप इसे अनदेखी करना इससे मनरपेक्ष रहना , अपने समय और समाज के साथ-साथ अपने साथ गद्दारी करना है । मजस व्यमक्त में राजनैमतक चेतना का अभाव है , वह स्वयं कठमुल्लापन और अन्धानुकरि का मशकार हुए मबना नहीं रह सकता । इस तथ्य के कारि ही तो हम देखते हैं ‘ रहबर ’ के सम्पूिा कृ मतत्व में समकालीन राजनीमत , जो मक भमवष्ट्य का इमतहास है और अपनी परम्परा के इमतहास से कदम-दर-कदम साक्षात् होता है । कहानी हो या उपन्यास , व्यमक्तत्व समीक्षा हो या सामहमत्यक समीक्षा इनका मवमवध लेखन साममयक राजनीमत के रु-ब-रु होकर ही खड़ा है जो प्रमतमबम्ब स्वरूप अपना मचत्र भी प्रस्तुत करता है और शत्रु के सामने चुनौती भी देता है । इनके लेखन में सामामजक एवं राजनैमतक इमतहास के दशान मजस ढंग और स्पसेता के साथ होते हैं , ऐसा मचत्रि इमतहास की पुस्तकों में भी सुलभ नहीं है और यही कारि है मक जब हमारे देश का मनरपेक्ष इमतहास मलखा जायेगा और वह मदन अब दूर नहीं लगता ... उस समय इनका कृ मतत्व पयााप्त सहायक होगा ।’’ 14
बुजमदली से रहबर जी का काफी घृिा थी और तो और अपने जीवन में इस कमजोरी को इन्होंने अपने पास भी फटकने नहीं मदया । वे कहते ‘ मैं बुजमदली और मजबूरी की मौत नहीं मरना चाहता जब तक मजस्म में खून का एक भी कतरा बाकी है । मैं इस जामलम मौत का मुकाबला करूं गा । 15 और मजस व्यमक्त को बुजमदली से इतनी नफरत है ; उसका परतन्त्रता के प्रमत मवचार भी अनुमामनत नहीं रहने चामहये , ‘ कोई बात नहीं । मेरा बच्चा शहीद है । उसने
इन्कार मकया है- इन्कार मकया है गुलामी की मफ़जा में साँस लेने से । 16
रहबर की राष्ट्रीयता , मशक्षा तथा न्यायमप्रयता और माका सीय मवचारधारा प्रश्नातीत है ।
ये अपनी संस्कृ मत के रक्षक और परम्परा एवं पररमस्थमत से सीखने के पक्षधर रहे । रहबर जी कभी भी मकसी प्रकार के दबाव के सामने नहीं झुके यही उनका स्वभाव था और यही शान । वे कहते थे-
‘‘ पेड़े के पत्ते मगनने वालों तुम ‘ रहबर ’ को क्या जानो ।’’
कपड़ा-लत्ता ठीक न हो पर बात तो उसकी भारी है । 17
‘ रहबर ’ की बात हमेशा भारी रही , उनके मवचार उनकी सोच उथली नहीं थीं उसमें हल्कापन नहीं था , बमल्क पररपक्वता थी गुरुता थी ।
रहबर जी ने कथासामहत्य मलखा हो कहानी उपन्यास या आलोचना , समीक्षा सभी में अपनी स्पसेवामदता और मबना मकसी लाग लपेट के बात को कहा है ।
मवचारधारा में घटनाओं , पररमस्थमतयों का समावेश होता है । रहबर की कहामनयों के माध्यम से मद्वतीय मवश्व युद्ध के उपरान्त भारत में साम्यवादी मवचारधारा को समझने में सहायता ममलती है जो खुद लेखक के ही शब्दों में कहते हैं । ‘‘ मैं कौन-कौन सा मदया अपने मदये से जलाऊँ ? यहाँ तो हर घर में अंधेरा है ।’’
सन् 1943 में रहबर जेल में थे । इस दौरान इन्होंने ‘ हाथ में हाथ ’ तथा ‘ कं कर ’ दो उपन्यास , दजानों कहामनयाँ और नज्मे-गजलें भी मलखीं । इसके साथ ही अनेक महत्वपूिा सामहत्य की सजाना की है मजनमें प्रेमचन्द , जीवन , कला और कृ मतत्व , प्रगमतवाद पुनामूल्यांकन , नेहरू बेनकाब , गामलब बेनकाब , गान्धी बेनकाब , राष्ट्रनायक , गुरुगोमवन्द मसंह , भगतमसंह , एक जीवनी तथा योद्धा सन्यासी मववेकानन्द , मेरे सात जन्म ( चार खण्डों में ) के साथ-साथ अनेक कहामनयाँ व उपन्यास
Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 . वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017