Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 383

Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725
श्रेष्ठ और कोई नहीं अतएव मलखा है : ‘‘ आज हमारे देश को मजस चीज की आवश्यकता है , वह है लोहे की मांसपेमशयों और फौलाद के स्नायु , प्रचण्ड इच्छा शमक्त , मजसका अवरोध दुमनया की कोई ताकत न कर सके । और मजस उपाय से भी हो अपने उद्देश्य की पूमता करने में समथा हों , मफर चाहे समुद्र में क्यों न जाना पड़े , साक्षात मृत्यु का ही सामना क्यों न करना पड़े । और देमखए प्राचीन धमा ने कहा ‘‘ वह नामस्तक है जो ईश्वर में मवश्वास नहीं करता ।’’ नया धमा कहता है ‘‘ नामस्तक हुआ है जो स्वयं में मवश्वास नहीं करता ।’’ 9 वे अपने समय के जनमानस से जुड़े थे जबमक आज के प्रगमतशील मधुशालाओं और क्लबों से जुड़कर ‘ प्रगमत के नाम पर युग को , पररमस्थमतयों को नकार रहे हैं । ‘ रहबर ’ ने इन सब की मचन्ता मकये मबना अपनी परम्परा और संस्कृ मत को समझबूझ कर ही प्रस्तुत मकया है मक मतलक का उत्तरामधकारी वह व्यमक्त बन सके गा जो माक्सावाद का ज्ञाता होने के साथ-साथ संस्कृ त का भी पमण्डत हो और मजसने अपने अतीत का आत्मसात कर मलया हो । वही व्यमक्त हमारी राष्ट्रीय मवमशसेताओं को समझ सके गा और वही माक्सावाद को राष्ट्रीय रूप दे सके गा तब देश की जनता उसे सहज में हृदयंगम करके , क्रांमतकारी भौमतक शमक्त में रूपान्तररक कर देगी , आत्म-मवश्वास की बुमनयाद मजबूत होगी ।
इसीमलये कहा जाता है मक ‘ रहबर जी ’ माक्सावादी होने के साथ-साथ सही अथा में राष्ट्रवादी और प्रगमतशील थे ।
‘‘ राष्ट्रवादी के सही अथा में कहने का तात्पया स्पसेतः अंध राष्ट्रीयता का मवरोध करना है । जो इन्होंने ‘ मवजयी मवश्व मतरंगा प्यारा ’ गीत की इस भावना का मवरोध करके भी मकया है मक हम मवश्व पर मवजय हामसल करेंगे , जबमक सही ्टमसेकोि तो यह है मक हम भी मवश्व के अन्य देशों के साथ कं धे से कं धा ममलाकर आत्ममवश्वास पूिा जीवन यापन करेंगे ।’’ 10
रहबर की मवचारधारा को देखने पर मालुम होता है मक ‘ रहबर ’ आदशों के पक्षधर थे , आदशावाद के नहीं आदशा जीवन के मलये इनका कथन एक दम स्पसे था । ‘ मनुष्ट्य का जब मनमित मसद्धान्त हो और वह सतत् संघर्षा का मागा अपनाएं तो धीरे-धीरे इसकी प्रमतभा का समुमचत मवकास होता रहता है , लेमकन इसके मवपरीत अगर मसद्धान्त छोड़कर आदशाहीनता और मवलामसता का मागा अपना ले और जनता से अपना सम्बन्ध मवच्छेद कर ले तो धीरे-धीरे उसकी प्रमतभा का हास्य भी हो जाता है ।’’ 11 स्वच्छन्द मवचरि पर भी रहबर जी की मवचारधारा नकारात्मक थी वे अंकु श के पक्षधर थें अब यह स्वच्छन्दता चाहे नारी की हो या चाहे पुरुर्ष की । इनके सम्पूिा कथा सामहत्य में जो भी पात्र मदशाहीन स्वच्छन्दता की लीक पकड़ता है । पूिातः असफल होता है । मस्त्रयों के स्वातन्त्र्य यानी मवमैनमलव की बात उठाकर अपने आपको पमिमी सभ्यता के रंग में रंगने को प्रयत्नशील ममहलाअें के अत्यन्त सुन्दर मचत्रि ‘ इनके कु छ उपन्यासों में ममलते हैं । मसलन , अममता , उन्माद , पंखहीन मततली तथा मकस्सा तोता पढ़ाने का तो मुख्यतः यही मवर्षय है । उन्हीं के शब्दों में उपन्यास की प्रमुख नारी पात्र का कथन देखें ‘‘ मैं जो इस देश की मशमक्षत और सजग नारी हूँ .... तुम्हारे इस ऐश्वया में भागी बनने से , पैसे की इस गुलामी को अपने ऊपर ओढ़ने से इन्कार करती हूँ ... मैं तुम्हारी थी पर तुम मेरे नहीं बन पाये ’’ 12 जामहर है मक इन्होंने नारी को मात्र भोनय नहीं , बमल्क सहधममािी माना ।
इनके समक्ष इनके पत्नी होने के साथ-साथ माँ , बहन , और बेटी के सम्बन्ध भी इतने ही महत्वपूिा हैं , बमल्क कहीं-कहीं तो और अमधक हैं ।
‘ रहबर ’ जी के मवचार से मशक्षा नौकरी का जररया मात्र नहीं है । वह मात्र ज्ञान प्राप्त करने में सहायक है । देश भमक्त में सहायक हैं , इन्होंने अपनी कहानी में मलखा है ‘‘ पढ़े-मलखे ही अगर देश की सेवा न करेंगे तो और कौन करेगा ।’’ 13
Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 . वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017