Jankriti International Magazine/ जनकृसत अंतरराष्ट्रीय पसिका
‘‘ओई सआह कहं ओसह कहं गहा। गहा गहसन
जि जाइ न कहा।
दुऔ निल भर जोबन गाजी। अछरी जानु अखार
बाजीं।
भा िॉहसन िॉहसन िौं जोरा। सहया सहया िो बाग
न मोरा।
कुंच िौं कुच जौं िौंहे आने। निसह न जाए िूिसह
ताने।
कुंभ स्थल जेउ गज मैंमता। दूनौ अल्हर सभरै च
द त ं ा।
देि लोक देखत मुए िाढ़े। लागे बन सहयं जासहं न
काढ़े।।’’ 27
राजा रयनिेन द्वारा ‘िेि करहु समसल दुनहु औ
मानहु िुख भोग’’ 28 दोनों में समझौता होता है।
अ त ं में जब राजा रत्नसेन वीरगमत को प्राप्त होता है तब
दोनों रामनयाँ मचत्ताड़ की राजप त ू ाना परम्परा की
मयाादा के साथ अपने अलौमकक प्रेम का पररचय देती
हुई सती होती हैं -
‘‘नागमती पदुमापसत रानीं। दुिौ महारत िाती
बखानी।
दुिौ आइ चसढ़ खाि बईिी। औ सििलोक परा
सतन्द्ह डीिी।।
*
*
आजु िूर सदन अथिा आजु रैसन िसि ब स ू ड़।
आजु नॉसच सजय दीसजअ, आजु आसग हम
जूसड़।।’’ 29
ISSN: 2454-2725
जाती है मजतनी अलौमकक पदमावती। श्याममनोहर
पाण्डेय ने नागमती के सतीत्व को पदमावती स
अमधक महत्वप ि ू ा माना-’’ िह नारी सजिको पसत
सक उपेक्षा समली,सजिके रहते पसत ने दूिरी नारी
को अंगीकार सकया,िह पसत के सलए िती हो
जाती है तो उिका ययाग अपेक्षाकृत असधक
महयिप ण
क िमझा जाना चासहए।’’ 30
आचाया श क् ु ल ने इस उत्सगामय छमव के रूप पर म न ु ध
होकर कहा है मक - ‘‘पसत परायणा नागमती
जीिनकाल में अपनी प्रेमज्योसत िे गृह को
आलोसकत करके अंत में िती की सद ग ं तव्यासपनी
प्रभा िे दमकर इि लोक िे अदृश्य हो जाती है। ’’
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नागमती का चररत्र समाज के कई पहल ओ
ं से रूबरू
होता हुआ एक स्त्री की व्यथा-कथा के साथ समाज
का भी आइना प्रस्त त ु करता है। नागमती भारतीय नारी
के चररत्र का सवोच्च आदशाात्मक प्रमतमब ब ं है।
नागमती को नारी का श द्ध
रुप मानते हुए श्याममनोहर
पाण्डेय मलखते है- ’’पदमािती िे असधक ििक्त
चररि नागमसत का है। िह नारी ह्रदय की िमस्त
सनबकलताओ ं िे पररपूणक हैं। पदमािती िाधना
और तप का आलंबन अिश्य है पर नारी का िुि
मानिीय रुप तो नागमती में ही प्रकि हुआ है। ’’
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िन्द्दभक िूची .
1.
83 पदमावत : सं. माताप्रसाद ग प्त ु , पृ.129, पद
2. वही पृ.129, पद 83
पमत धमा और प्रेम की अमनन में ख द ु को आहूत करक
नागमती भी उतनी ही उजाावान तथा प्रकाशमान हो
Vol. 3 , issue 27-29, July-September 2017.
वर्ष 3, अंक 27-29 जुलाई-सित ब ं र 2017