Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 377

Jankriti International Magazine/ जनकृसत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN: 2454-2725 हैं। आचायक ि क् ु ल ने इिे असद्वतीय मानते हुए सलखा है - ‘‘नागमती का सिरहिणकन सह द ं ी िासहयय में असद्वतीय िस्तु है... रानी नागमती सिरहदिा में अपना रानीपन भूलकर अपने को िाधारण स्त्री के रूप में देखती है। ’’ 19 पमत के प्रमत अमतशय प्रेम की भावना श क ा, ईष्ट्या जैस भावों को उत्पन्न करते हैं जो सहज या स्वाभामवक कहा जाता है। नागममत भी अपनी सौत पदममनी क आने पर ‘सौमतयाभाव’’ से भरी है तभी तो पदमावती द स ू रे महल में उतारी जाती है - नागमती मचत्तौड़ के इतने बड़े राजमहल में पमत क मबना मृतक अवस्था में पड़ी है - ‘‘िही न जाइ ििसत कै झारा। दुिरे मंसदर दीन्द्ह उतारा।’’ 24 ‘‘रहौ अके सल गहें एक पािी। नैन पिासि भरौं सहय कारी।।’’ 20 इिके उपरांत िह रयनिेन िे प्रश्न करती है - वह कौवे के माध्यम से अपना संद श देती है - ‘‘सपय िौ कहेहु िंदेिरा ऐ भंिरा ऐ काग। जौं पदुमािसत है िुसि लोनी। मोरे रूप सक िरबरर होनी।  * * िो धसन सबरहें जरर गयी, तेसहक छुआ हम लागा।’ 21 भँिर पुरुख अि रहै न राखा। तजै दाख महुआ रि चाखा। वह एक आदशा भारतीय नारी की भाँमत पमत के चरि रज से ही धन्य हो जाना चाहती है - तसज नागेिरर र्ूल िोहािा। कॅ िल सबिैंधे िो मन लािा।।’’ 25 ‘‘यह तन जारौं छार कै कहौं सक पिन उड़ाउ। सौमतयाभाव के कारि ही स्वयं को द्राक्षा तथा पदमावती को महुआ कहती है। मकु तेसह मारग होइ परौं, कंतधरै जहँ पाउ।।’’ 22 यही नहीं वह एक चेरी बनकर याचना करती है - रकत न रहा ररह तन गरा।रती रती होइ नैंनसन्द्ह ढरा। पािॅ लासग चेरी धसन हाहा।चूरा नेहु जोरु रे नाहा।। 23 अब नागमती को अपने पमत के अमतररक्त द म ु नया का कोई ऐश्वया-भोग नहीं चामहए। नागमती के इस कथन में ; मान से रमहत, स ख भोग की लालसा से मवलग, अत्यंत नम्र, शीतल और मवश द्ध प्रेम की झलक ममलती है। Vol. 3 , issue 27-29, July-September 2017. ईष्ट्यावश दोनों रामनयाँ आपस में ‘कहा-स न ु ी’ भी करती हैं , जहाँ एक-द स ू रे को नीचा मदखाने का प्रयास हो रहा है। नागमती कहती है- ‘‘जौ उसजगार चाँद होइ उई। बदन कलंक डोिे क छुई। औ मोसह तोसह सनसि सदनकर बीचू। राहु के हाथ चाँद कै मीचू।।’’ 26 अब पदमावती नागमती के मलए अ ग ं ार बन गयी है तो उसका शोला बनना भी स्वाभामवक है दोनों रामनयों म द ग ं ल की भाँमत मार-पीट फन जाती है - वर्ष 3, अंक 27-29 जुलाई-सित ब ं र 2017