Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 374

Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725
मध्यकालीन िामंती प्रसतरोध और नागमती का चररि
छाया चौबे 319 , गंगा छात्रावास
जवाहरलाल नेहरू मवश्वमवद्यालय मदल्ली-110067
मो . 9868366186
जायसी के पदमावत में ’ नागमती ’ का शमक्तशाली चररत्र अपनी अलग कहानी बयाँ करता है । यमद नागमती इस कथा में नहीं होती तो क्या पदमावत महाकाव्य बन पाता । पदमावती का अलौमकक जगतव्यापी मशख-नख विान , नागमती के मवयोग विान के आगे धूममल जान पड़ता है और दोनों का सतीत्व , महाकाव्य को एक नयी ऊँ चाई देता है । नागमती गौड़ी भमक्त का प्रतीक है जहाँ वह राजममहमर्ष के पद पर राज्यामधकार के साथ के वल पत्नी का सूचक है उसके सामनध्य से रत्नसेन को उस सामत्वक प्रेम का आभास नहीं होता जो पदमावती के रूपश्रवि मात्र से अनुभूत होता है ।
नागमती मचत्तौड़ की राजममहर्षी है वह रत्नसेन की पटरानी है । पदमावत के कथानक में वह उपनामयका के चररत्र में प्रस्तुत है । पदमावती से अमधक चुनौतीपूिा चररत्र नागमती का है । वह सवाप्रथम ‘ रूपगमवाता ’ नारी के रूप में हमारे सामने आती है -
‘‘ नागमती रूपिंती नारी । िबरसनिाि पाि परधानी ।।’’ 1
नागमती को अपने सौंदया पर बड़ा अमभमान है । वह खूब शृ ंगार-पटार करके वह हीरामन सुआ से कहती है - ‘‘ बौलहु िुआ सपयारे नाहॉ । मोरे रूप कोई जग माहॉ ।।’’ 2
इस प्रश्न को सुनकर तोता पदमावती का स्मरि करके हँस देता है और कहता है -
जेसह िरिर महं हंि न आिा । बगुला तेसह िर हंि कहािा । 3
तोते के इस उत्तर से नागमती के कलेजे में आग लग जाती है क्योंमक नागमती मजस समाज में है वहाँ तो हंस मौजूद ही नहीं हैं , वहॉ कौवा ही हंस होगा । तोता कहता है -
‘‘ का पूँछहू सिंघल रानी । सदनसहं न पूजै सनसि अँसधयारी ।।’ 4
तोते के व्यंनय से यह भाव भी प्रकट होता है मक जगत ने इस रूप को अनुपम बनाया है मजसमें रूपों की मवमवधता है जहाँ प्रश्न की साथाक तब होगी जब उसका पमत उससे प्रेम करे ।
पदमावत में सौंदया के दो मानक ममलते हैं , पहला तो वह जो प्रेम की प्रतीती कराता है जो पदमावती का है और दूसरा जो अमधकार तक सीममत है जो भोगवस्तु वह नागमती का ।
नागमती को अपने पमत से अमतसय प्रेम है मकन्तु वह तत्कालीन पुरुर्ष मनोवृमत्त से भी बखूबी पररमचत है उसे ज्ञात है मक उस समय राजा सौंदया पर मुनध होकर चढ़ाई करते थे , युद्ध करके उन्हें छीन लेते थे । वह पदमावती के सौन्दया से भयभीत होकर अपनी दूरदमशाता का पररचय देते हुए धाय से तोते को मारने का आदेश देती है । अतः वह धाममनी से कहती है-
पासख न रासखउन होइ कु भाखी । तहँ लै मारू जहाँ नसहं िाखी ।
जेसह सदन कहज है सनसत डरौ रे सन छपािौं िूर । लै चह दीन्द्ह के िल कह मोकहँ होइ मँजूर ।। 5
Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 . वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017