Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 367

Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725
पीछे चला जाता है । लेमकन मजसे वह जमींदार भेदुमसंह को दंड देने वाला कलंकी अवतार समझता है वह तो अपनी बहन के मववाह के मलए भेदुमसंह के बेटे को देखने आया है । रोपन हारे हुए जुआरी की तरह घोड़े पर सवार व्यमक्त को देखता रह जाता है । इस कहानी में एक पात्र शोभन है जो इस चीज को बहुत अच्छे से समझ गया था । वह रोपन से कहता है- “ नये ज़माने के लोग ही पुराने लोगों को ठीक करेंगे दादा । गाँठ बाध लो । हमें अवतार नहीं करतार चामहए । करतार यानी अपना हाथ ही तारेगा ।” 25 ‘ पापजीवी ’ कहानी में ‘ बरम बाबा की परती ’ पांच सौ बीघे की है । इस परती में मकसी की जाने की महम्मत नहीं है क्योंमक पुराने जमाने में ठाकु रों ने यहाँ मकसी िाह्मि की हत्या की थी । एक मदन सरकार ने ‘ बरम बाबा ’ की परती जमीन को नीलाम कर दी । देखते ही देखते ठेके दार का बँगला भी बनकर तैयार हो गया । बदलू को मवश्वास था मक ‘ बरम बाबा ’ बदला लेगें , लेमकन जब ऐसा कु छ नहीं हुआ तो उसे भी मानना पड़ता है की बरम बाबा का तेज ममद्धम पड़ गया है । ‘ कमानाशा की हार ’ कहानी में भैरव पांडे कहते हैं मक बढ़ी हुई कमानाशा की बाढ़ दुधमुहें बच्चे की बमल से नहीं बमल्क पसीना बहाकर बांध बनाने से रुके गी । इस कहानी में वर्षों से चला आ रहा अंधमवश्वास टूटता हुआ नजर आता है । मशवप्रसाद मसंह की कहामनयों में “ अमस्तत्वगत
सजगता पारम्पररक अंधमवश्वासों , अवतारीय धारिाओं , पूजा-व्रतों आमद को लाँघ रही है । उसका मवश्वास करतार पर नहीं , कर-तार पर आकर ठहर गया है । यही उसका क्षमाबोध है , आस्था है , जो मनुष्ट्य को धरती का मनुष्ट्य बनने को बाध्य करती है ।” 26 िन्द्दभक ग्रन्द्थ िूची
1 . मववेकी राय , महंदी कहानी : समीक्षा और सन्दभा , राजीव प्रकाशन , इलाहाबाद , संस्करि-1985 , पृष्ठ सं . 27
2 . कामेश्वर प्रसाद मसंह , कथाकार : मशवप्रसाद मसंह , संजय बुक सेंटर , वारािसी , संस्करि-1985 , पृष्ठ सं . क 3 . वही , पृष्ठ सं . क 4 . मशवप्रसाद मसंह , मेरे साक्षात्कार , मकताबघर , नई मदल्ली , संस्करि- 1995 , पृष्ठ सं . 19-20
5 . मशवप्रसाद मसंह , दस प्रमतमनमध कहामनयाँ , मकताबघर प्रकाशन , अंसारी रोड दररयागंज , नई मदल्ली , संस्करि 1994 , पृष्ठ सं . 8
6 . कामेश्वर प्रसाद मसंह , कथाकार : मशवप्रसाद मसंह , संजय बुक सेंटर , वारािसी , संस्करि-1985 , पृष्ठ सं . ख
Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 . वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017