Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 364

Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725
कमानाशा का पानी छू ले , वह मफर हरा नहीं हो सकता ।” 16 जबमक उसी कमानाशा के पास एक नीम का पेड़ भी है मजसे कमानाशा की लहरें सुखा नहीं पायी । “ मजन उध्दत लहरों की चपेट से बड़े-बड़े मवशाल पीपल के पेड़ धराशायी हो गये थे ; वे एक टूटे नीम के पेड़ से टकरा रहीं थी , सूखी जड़ें जैसे सख्त चट्टान की तरह अमडग थीं , लहरें टूट-टूटकर पछाड़ खाकर मगर रहीं थीं । मशमथल ... थकी ... परामजत ” 17 मजस समाज में भैरो पांडे जैसे नयी चेतना के व्यमक्त रहेंगे वहाँ की कमानाशा को परामजत होना ही है । गोपाल राय ने मलखा है , “ इससे कहानीकार की नयी सोच और संवेदना का पता चलता है । कमानाशा नदी यमद उस रूमढ़वादी परम्परा का तो भैरो पांडे उस नयी चेतना का प्रतीक हैं मजसके सामने कमानाशा को झुकना ही पड़ता है ।” 18 इस कहानी में बदलते ग्रामीि जीवन के पारम्पररक मूल्यों-मान्यताओं की ओर संके त मकया गया है । इस सन्दभा में मशवप्रसाद मसंह कहते हैं ,“ कमानाशा की हार मनुष्ट्य के कमा को नसे करके उसके ऊपर सामामजक रूमढ़ और मनयमत का अमभशाप लादने वाली समूची प्रवृमत्त के मवरोध का प्रतीक है । कमानाशा हमारे समाज के वैर्षम्य का प्रतीक है , मजसे परामजत करना नयी मानवता का सही संकल्प होना चामहए । कहानी इसी ओर संके त करती है ।” 19
‘ नन्हों ’ कहानी में नन्हों के वैवामहक जीवन की मवडम्बनाओं , परम्परागत दाम्पत्य जीवन और प्रेम संबंधों को रेखांमकत मकया गया है । इस कहानी में नन्हों का वैवामहक जीवन मसफा और मसफा एक मवडम्बना या जीवन एक संत्रास बनकर रह गया है , मजसमें उसे आत्मपीड़ा के अलावा कु छ नहीं ममलता है । नन्हों की शादी के मलए लड़का रामसुभग ( जो सु ंदर , सुडौल है ) मदखाया जाता है लेमकन शादी एक अनदेखे लड़के ममसरीलाल ( पैर से मवकलांग ) से होती है । यह बात नन्हों के मपता को मालूम है लेमकन बेटी के अच्छे घर और वर के मलए दहेज़ देने की औकात नहीं है । अत : वह इस बात का मजक्र भी नहीं करता है । हाथ भर घू ँघट के नीचे आँसुओंको सुखाती हुई नन्हों सुहामगन बनी । शादी के बाद से ही नन्हों की मनयमत का चक्र पूरे जीवन मकसी न मकसी रूप में आस-पास मंडराता रहता है । शादी के धोखे की पीड़ा से वह उबर नहीं पाई थी मक पमत की मृत्यु हो गयी । ये “ काँच की चूमड़याँ भी मकस्मत का अजीब खेल खेला करती हैं । नन्हों जब इन्हें पहनना नहीं चाहती थी तब तो ये जबदास्ती उसके हाथों में पहना दी गयीं और अब जब इन्हें उतारना नहीं चाहती तो लोगों ने जबदास्ती हाथों से उतरवा मदया ।” 20 नन्हों अपना पूरा जीवन सामामजक मय ादा और नैमतक दबाव में काट देती है । ह्रदय में आत्मपीड़ा को दबाये वह अके ले जीवन के
Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 . वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017