Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 362

Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725
टूटने की खुमारी , जान पाना मुमश्कल है । वह अपनी चादर लेने के मलए वहाँ खड़े प्रत्येक व्यमक्त को करुिा भरी बोमझल ्टमसे से देखेगा । उसकी आँखों में बेबसी और आग्रह की मूमता मदखाई देती है ; ‘ अरे दे न दो ! वे हँसते हैं , मदा हैं , मजबूत हैं । तुम तो औरत हो , गरीब हो , मेरी तरह कमजोर हो , तुम मुझे परेशान क्यों करती हो ।’ 10 इस आग्रह में मकतना ममा मछपा है , मजसे यह समाज समझना नहीं चाहता है । उसके दुःख को समझने वाला कोई नहीं है । उसके जीने का एक मात्र आसरा ममिू कु त्ता है , जो एक महीने पहले से मदखाई पड़ रहा है । अब यह कु त्ता सोते-जागते हमेशा बौड़म के साथ रहता है । उस कु त्ते के आ जाने से बौड़म व्यस्त हो गया और जो भी बौड़म के करीब आने की कोमशश करता कु त्ता गुराा उठता । प्रेमचंद की कहानी ‘ पूस की रात ’ में हल्कू का एक मात्र सहारा झबरा कु त्ता बनता है । हल्कू की तरह ही बौड़म का सहारा ममिू कु त्ता बनता है मजसके साथ वह अपने को व्यस्त रखता है । लेमकन बौड़म की यह व्यस्तता गाँव वालों के मनोरंजन में बाधक बनी अत : उसके ममिू को जहर दे मदया गया । हमारा समाज मकतना स्वाथी और मनरीह है मक अपने मनोरंजन के मलए बौड़म की खुशी का एकमात्र सहारा भी छीन मलया । लेमकन इन मवपरीत पररमस्थमत में भी उसके अंदर एक ऐसी मजजीमवर्षा है , जो उसे मरने भी नहीं देती है । मशवप्रसाद मसंह इस
सन्दभा में कहते हैं- “ संत्रास के मदनों में भी यमद व्यमक्त में मनष्ठा और उसकी मजजीमवर्षा है तो मवश्व की बड़ी से बड़ी समस्या का सामना कर सकता है ।” 11 बौड़म का पूरा जीवन संत्रास से भरा हुआ है । वह मजन्दगी से लड़ रहा है लेमकन अपनी मंमजल की उम्मीद में मजन्दगी से हार भी नहीं मान रहा है । उसके मन में पल रही आशा की मकरि , उसे हारने नहीं देती है । अत : अंत तक उसके सपनों का मचराग जलता रहता है । वह तब तक हार नहीं मानता है जब तक अपनी मंमजल नहीं पा लेता है । लेमकन आज जब वह अपनी मंमजल पा मलया । उसका घर दुलमहन के रुन-झुन पायलों की आवाज से गू ंज उठा । बौड़म ने मनयमत के क्रू र पंजे को मरोड़कर घर में खुशी ला दी । बौड़म के घर के “ चारों तरफ उल्लास था , आनन्द था , और इस अपार खुशी की रात के सबेरे लोगों ने देखा मक आनंद के महासागर में तैरते हुए बौड़म का शरीर ठंडा हो गया । मरा-सा तो वह था ही , पर इच्छा का जोर उसे खींचता गया , मंमजल पर आकर राही मौन हो गया ।” 12 मशवप्रसाद ने ऐसे पात्रों के सन्दभा में मलखा है , “ उनके कथा-चररत्रों में जहाँ पाररवाररक जीवन का उच्छल राग , आत्मीय अनुशासन , सामामजक उदारता और एक खास मकस्म की नैमतक चेतना बहुत दूर से भी मदखाई पड़ती है , वहीं गरीब की दारुि यातना , असमान सामामजक मूल्यों से पैदा होने वाली दु : सह यन्त्रिा , सामामजक
Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 . वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017