Jankriti International Magazine/ जनकृसत अंतरराष्ट्रीय पसिका
ISSN: 2454-2725
रहा था। मशवप्रसाद जी स्वतंत्र भारत की स न ु हरी स्वातंत्र्य को इ त ं हा तक स्वीकार नहीं करता, अमल म
मकरिों की ऊष्ट्मा में मलख रहे थे।” 2 मशवप्रसाद मसंह लाना चाहता हू । ँ मैं मशवप्रसाद-परम्परा का आरमम्भक
प्रेमचंद की परम्परा में होते हुए भी आध म ु नक कथाकार और अ म