Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 359

Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725
सििप्रिाद सिंह की कहासनयों में ग्रामीण जीिन और िामासजक पररप्रेक्ष्य
कं चन लता यादि भारतीय भार्षा कें द्र जवाहरलाल नेहरू
मवश्वमवद्यालय , नई मदल्ली मोबाइल . 9868329523 , ईमेल – klyjnu26 @ gmail . com
मशवप्रसाद मसंह स्वतंत्रता के बाद और नयी कहानी के प्रमुख रचनाकार हैं । भारतीय स्वाधीनता आन्दोलन के बाद बदले हुए ग्रामीि पररवेश का यथाथापरक और ननन मचत्रि उनकी कहामनयों में मदखाई देता है । उन्होंने व्यमक्त और सममसे के मवघटनकारी मूल्यों की बारीमकयों को पकड़ा ही नहीं बमल्क उसका नकार भी मकया । उन्होंने जब कथा लेखन में प्रवेश मकया तब देश औद्योमगकीकरि , पंचवर्षीय योजना आमद तमाम मवकासमान मूल्यों की तरफ गमतमान था । अम्बेडकर और गाँधी के प्रयास से दमलतों में चेतना सुगबुगा रही थी । गाँव का साममजक ढ़ांचा टूट रहा था । इस तरह की मस्थमत में गाँव का एक बदला हुआ परर्टश्य मदखाई मदया मजसे मशवप्रसाद मसंह ने अपनी कहानी में रूपामयत मकया । उन्होंने अपनी कहामनयों में सामामजक , राजनीमतक , आमथाक , जामतगत आमद मवमवध समस्याओं को अमभव्यक्त
मकया है । इस सन्दभा में मववेकी राय कहते हैं , “ बदले हुए गाँव और मबन बदली हुई गाँव के गरीबों की मनयमत से संबंमधत सवालों को कथाकार मशवप्रसाद मसंह मवमवध कोिों से उठाते हैं । आमथाक सवालों से तीखे सामामजक सवाल हैं ।” 1 इनकी कहामनयों का मूल कथ्य ग्राम जीवन पर आधाररत होने के कारि , इन्हें प्रेमचंद की परम्परा से जोड़कर देखा जाता है । दोनों लेखक ग्रामीि जीवन के कथाकार हैं लेमकन अलग-अलग देश , काल , वातावरि के कारि , दोनों लेखकों की रचना-प्रमक्रया , कथ्य-मशल्प आमद में मभन्नता है । प्रेमचंद के समय साम्राज्यवाद और सामन्तवाद से जनता संघर्षा कर रही थी मजसे उन्होंने कहानी का मवर्षय बनाया । लेमकन मशवप्रसाद मसंह के समय देश आज़ाद हो गया था , जमींदारी उन्मूलन भी हो गया था , जमींदार के रूप में ठेके दार और पू ंजीपमत जैसी शोर्षिकारी शमक्तयाँ पनप रहीं थीं लेमकन सामामजक ढ़ांचे में कोई बदलाव नहीं आया । जमींदारी खत्म होने के बाद भी जमींदारों द्वारा शोर्षि बरकरार है । इस सन्दभा में बच्चन मसंह ने मलखा है , “ परम्परा पर मवचार करते समय स्मरि रखना होगा मक प्रेमचंद का जमाना और था तथा मशवप्रसाद का जमाना और है । प्रेमचंद परतंत्र भारत में मलख रहे थे जो साम्राज्यवाद और सामन्तवाद से जूझ रहा था , महाजनी सभ्यता से टकरा कर मकसान चकनाचूर हो
Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 . वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017