Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 357

Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725
नुकसान तो पहुंचा ही रही है साथ ही साथ देश की अखण्डता को भी ख़तरा पैदा कर रही है । वस्तुतः इन पररमस्थमतयों में कबीर के काव्य के सन्देश और अमधक प्रासंमगक बन गए हैं । लोकतंत्र में इन्हीं सब मवसंगमतयों को देख कर कबीर का समय और उनका काव्य बार-बार हमें झगझोरता है । क्योंमक कबीर ने अपने समय में जनतांमत्रक समाज की स्थापना की बात कर चुके थे । मजसका अनुपालन हम आज संमवधान सम्मत राष्ट्र-राज्य में कर रहे हैं । मफर भी हम आज असमानता का डंस झेल रहे हैं । सही मायने में कहा जाए तो देश और समाज की उन्नमत उसके मवकासगामी मूल्यों में है न मक जामतय संरचना में । और यह तब संभव हो पाएगा , जब हम जातीय आधार और धाममाक आधार को दर मकनार करके भाई चारे का पाठ पढ़ाए । एकता बनाएं । तभी सफल राष्ट्र का मनम ाि हो सकता है और देश का मवकास भी । इसीमलए कबीर ने बार-बार कहा है मक हम सब एक हैं । एक ही ईश्वर है । प्रकृ मत ने सबके साथ समानता बरती है , मफर मानव-मानव में कलह , भेद-भाव क्यों ? ऊँ च-नीच की खाई खोदकर मानव-मात्र को अलग करने और घृिा का प्रचार करने की क्या आवश्यकता है ? कबीरदास इस सन्दभा में कहते हैं-
" एक बू ँद एक मलमूतर एक चाम एक गूदा । एक जामत तै सब उपजा कौन बाभन कौन सूदा ।।" 5
इतना ही नहीं कबीरदास प्रबलता के साथ यह भी कहते हैं मक , सामंती समाज की उच्चता झूठे दम्भ पर मटक है और इसे समाप्त मकया जाना चामहए । यह दम्भ समाज के उत्पीमड़त जनता में हीनता बोध पैदा करती है । इसीमलए उनका प्रहार सामंती समाज के प्रमत होकर मनम्न जामतयों में आत्ममवश्वास का भाव पैदा करती
" पाँड़े छू त कहा ते आई ।" अथवा
" संतों पाँडे मनपुन कसाई ।" 6
इस तरह से देखा जाए तो यह आभास होता है मक मध्यकालीन समाज धमा , जामत , सम्प्रदाय के नाम पर मवमभन्न वगों , सम्प्रदायों में बटा हुआ था । और आज भी यही हाल है । कल भी सब अंधमवश्वास में जकड़े हुए थे और आज भी जकड़े हुए हैं । इसी जकड़न और आत्मालोचन को लेकर संत कबीर ने दोनों धमों के लोगों को उनके बड़प्पन की ख़बर ली है । देमखए कबीर साहब के शब्दों में-
" महन्दू अपनी करै बड़ाई , गागर छु अन न देई । वेश्या के पावन तर सोए , यह देखो महंदुआई ।।" 7 मुमस्लमों के प्रमत भी देमखए उनका नज़ररया- " मुसलमान के पीर औमलया मुगाा-मुगी खाई । खाला के री बेटी व्याहै घर में करै सगाई ।।" 8
इस तरह कबीर की ्टमसे समधमी थी । वह आलोचना और आत्मालोचना का भरपूर प्रयोग करते थे । मबना लाग लपेट के दोनों धमों पर जमकर बरसते थे । तभी डॉ . रामकु मार ने इस सन्दभा में कहा है मक , " कबीरदास ने सफलता पूवाक दोनों धमों की ' अधाममाकता ' पर कु ठाराघात मकया और नए सम्प्रदाय का सूत्रपात मकया जो ' संतमत ' नाम से प्रख्यात हुआ ।" 9 वास्तव में संतमत एक नया आयाम था मजसको आगे ले जाने में तमाम संत आगे आए । जैसे- रैदास , दादू , धन्ना , सेना , पीपा और दररया । मजन्होंने कबीर के मवचारों को आत्मसात मकया और मानव मात्र की एकता , स्वतंत्रता और समानता पर बल मदया । यह सामामजक समरसता और एकतावादी ्टमसे
है । इसी मानवतावादी ्टसेीकोि के कारि पांडे अथवा
पंमडत को संबोमधत कर बार-बार पू
ंछते हैं-
संत कबीर को अपने वामस्तवक जीवन में बड़ा मनुष्ट्य
Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 .
वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017