Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 355

Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725
कबीर : कल और आज
िुसमत कु मार चौधरी शोधाथी- जवाहरलाल नेहरू मवश्वमवद्यालय
कमरा न . 236 झेलम छात्रावास नई मदल्ली-110067 मो . 9654829861
" साधो देखौ जग बौराना सांची कहूँ तो मारन धावै झूठे जग पमतयाना " 1
कबीर पर बात शुरू करने से पहले हमें यह देख लेना चामहए मक क्या कारि है मक कबीर कल भी हमारे बीच मौजूद थे और आज भी हमारे बीच मौजूद हैं ? जामहर सी बात है मक मकसी भी कमव या समाज सुधारक की कही गई बामियों का फ़लक इतना व्यापक होता है मक वह अपने समय के साथ-साथ दूरगामी भमवष्ट्य पर भी अपनी छाप छोड़ देती है । यही व्यमक्तव कमव , समाज सुधारक संत कबीर और उनकी रचनाओंकी रही है । जो आज भी आम जन मानस के बीच लोकमप्रय बनी हुई है ।
संत कबीर मजस समय पैदा हुए थे । उस समय भारतीय सामामजक व्यवस्था में काफी उथल-पुथल थी । उस समय समाज में संस्कृ मत , धमा और सम्प्रदाय का काफी जोर था । महन्दू धमा और इस्लाम धमा के बीच आम जनता मपस रही थी । राज सत्ताओं को के वल मसंघासन ही मदखाई दे रहा था । इन्हीं दोनों के बीच मपसती हुई आम जनता के शोर्षि की बात कबीर ने अपनी सामखयों में की है । जो समय का सच था । उस साखी का एक पाठ देमखए-
" चलती चक्की देखकर , मदया कबीरा रोय ।
दो पाटन के बीच में , साबुत बचा न कोय ।।" 2
संत कबीर की मनभीकता ही उनकी क्रांमतकारी वैचाररकता का आधार स्रोत था जो उन्हें जनता के बीच सम्मोमहत करता था । इनकी वैचाररकता का पूरा का पूरा अंश जनता के पक्ष में था और इनकी सामखयों का तेवर भी जन संस्कृ मत को बचाए रखने के पक्ष में था ।
प्रो . मैनेजर पाण्डेय के अनुसार , " कबीर की कमवता की दो बुमनयादी मवशेर्षताएं हैं- अथक आलोचनात्मक चेतना और प्रश्न की प्रवृमत्त । उनकी आलोचनात्मक चेतना मूलगामी है । वह जनता को जगाने वाली है और रूमढ़यों को चुनौती देने वाली । इस आलोचना की एक मवशेर्षता है- प्रश्न करने की प्रवृमत्त । यह प्रवृमत्त मजतनी प्रखर कबीर की कमवता में है , उतनी उस काल के मकसी अन्य कमव की कमवता में नहीं । उस समय का समाज उसका धमा और उसकी व्यवस्था का कोई ऐसा पक्ष नहीं है जो कबीर के प्रश्नों से बच पाया हो । वे भौमतक यथाथा के बारे में प्रश्न करते हैं और अमधभौमतक संभावनाओं के बारे में भी , सामामजक व्यवस्था से जुड़े प्रश्न पूछते हैं और मानमसक अवस्था से जुड़े प्रश्न भी । कभी-कभी वे धाममाक व्यवस्था की रूमढ़यों को अपने प्रश्नों के कठघरे में लाकर सवाल-दर-सवाल करते हुए उसके अंतमवारोधों को उजागर करते हैं ।" 3 जामहर सी बात है मक मैनेजर पाण्डेय का कथन कबीर के रचनात्मक जीवन का एक आईना है । जो मबलकु ल साफ़ है । मजसमें आम जनता अपने आप को देख सकती है । तभी कबीर ने जनता का ख़याल रखते हुए अपने सुर को जनता के सुर में ममलाया और जनता के पथ- प्रदशाक के रूप में अग्रसर हुए । इसमलए कबीर का व्यमक्तव बहुआयामी रूप में हमारे समक्ष मौजूद है ।
Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 . वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017