Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 352

Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725
हर व्यमक्त को अपने महसाब से जीने का अमधकार भी है , अपनी इसी मवमवधता के कारि भारतीय सामाज मवश्व के समक्ष एक आदशा रूप स्थामपत करता है , लेमकन आदशा के भीतर का इमतहास बहुत खोखला है । मकसी भी देश में मवशेर्ष प्रकार के धमा को लेकर कट्टरता उस देश की खण्डता का कारि बनती है । सामामजक प्रािी होने के नाते हमें एक दूसरे के धमा , संस्कृ मत को जानने का अमधकार है , लेमकन कई बार मस्थमतयां ऐसी हो जाती हैं मक धमा को थोपे जाने की परम्परा भी चल पड़ती है । अध्यापक की भूममका मनष्ट्पक्ष रहती है और उसकी जहां भी मनयुमक्त हो उसे वहां जाना ही है लेमकन मवशेर्ष प्रकार के कट्टर धाममाक देवता मकसी भी अध्यापक को बोलने , खाने , पहनने , पढ़ाने और जाने की प्रमक्रया तय करते हैं । वतामान समय में यह मसलमसला और भी तेजी से बढ़ चुका है । इन देवताओं का मशकार के वल अध्यापक ही नहीं बमल्क मानवता की भार्षा बोलनें वाला कोई भी व्यमक्त हो सकता है । उपन्यास में काली मेम और महन्दूवादी लड़कों के संवाद से इस बात का स्पसेीकरि हो जाता है -
‘‘ तुम महन्दू हो ? हाँ , क्यों ? मफर तुम ईसाई बस्ती में रोज क्यों जाती हो ? मैं वहाँ प्राइमरी स्कू ल में पढ़ाती हूँ ।
यह झूठ बोल रही है ... यह बताती नहीं , पर यह इसाई हो चुकी है । यह उनके मगरजाघर में प्राथाना करने जाती है ....।” 7
इस संदभा से दो बातें मुख्य रूप से उभरकर आती हैं एक तो यह मक मवभाजन की त्रासदी में महन्दोस्तान एवं पामकस्तान की आड़ में कई मस्त्रयाँ यौन शोर्षि का मशकार हुई और दूसरा कु छ कट्टरपंमथयों द्वारा अपने-
अपने धमा स्थापना की प्रमक्रया में मानवता का पतन हुआ । लेखक मवमभन्न संस्कृ मतयों को सम्माननीय ्टमसे से देखता है उनका मानना है मक संस्कृ मतयों में मानवता मजन्दा रहती है प्रेम के प्रमत सत्कार की भावना रहती है नफरत जैसी चीजों का संस्कृ मत रूपी उपजाऊ जमीन में कोई स्थान नहीं रहता है संस्कृ मतयाँ नफरत में जीना नहीं मसखाती बमल्क प्रेम की भार्षा बोलने का आदशा स्थामपत करती है , वह बांटने में मवश्वास नहीं रखती बमल्क जोड़ने में अपनी साथाकता समझती है इसी संदभा में कमलेश्वर का कहना है मक ‘‘ कोई भी संस्कृ मत पामकस्तानों के मनमााि के मलए जगह नहीं देती । संस्कृ मत अनुदार नहीं , उदार होती है .......... वह मरि का उत्सव नहीं मनाती , वह जीवन के उत्सव की अनवरत श्रृ ंखला है .... इसी सामामसक संस्कृ मत की ज़रूरत हमें है क्योंमक वह जीवन का सम्मान करती है ।’’ 8 कमलेश्वर की ्टमसे में पामकस्तान कोई एक मुल्क नहीं बमल्क उस मानमसकता का प्रतीक है जो महंसा के नाम पर अपना स्वाथा साधकर अपनी जीत हामसल करती है , न जाने इस आड़ में मकतनों के घर जले होंगे , मकतने मौत के घाट उतारे गए होंगे , मकतने बच्चे अनाथ हुए होगें ।
उपन्यास में महन्दुओं एवं मुस्लमानों के झगड़ों एवं फसादों की जड़ बाबरी ममस्जद के मनम ाि से माना जाता है । इमतहासकारों के अनुसार यह धारिा स्थामपत की गई मक बाबर ने राम मंमदर हटाकर बाबरी ममस्जद का मनम ाि मकया था । लेमकन कमलेश्वर के मलए यह तथ्य भ्रामक एवं असत्य है । कमलेश्वर तमाम शोध के उपरान्त उपन्यास के पात्रों के माध्यम से बाबरी ममस्जद का सच उभार कर सामने लाते हैं । अदीब की सभा में जब बाबर को पेश मकया जाता है तब वह अपने बारे में स्पसे करते हुए कहता है मक ‘‘ मैंने कोई ममन्दर ममसमार नहीं मकया और न महन्दुस्तान में कोई ममस्जद अपने नाम से कभी
Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 . वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017