Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 351

Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725
धीरे-धीरे गुलाम बनता गया और भीतर से खोखला होता गया । लेखक ने हज़ाज के माध्यम से भारतीय समाज की कमजोरी जामतवाद को बताते हुए कहा है मक ‘‘ हुजूर ! जंग के वक्त हमारा तो बच्चा-बच्चा लड़ता है , लेमकन हज़ाज ने हमें यह राज़ बताया था मक महन्द में पूरी कौंम नहीं लड़ती । रवायत के मुतामबक वहाँ मसफा क्षमत्रय लड़ता है । क्षमत्रय हारता था तो सब हार जाते थे । ’’ 3 जामतवाद की यह धारिा के वल महन्दुस्तान में ही नहीं बमल्क इस मसद्धान्त का मशकार मुमस्लम समाज भी हुआ । मुख्यतः मुमस्लम समाज में जामतवाद प्रत्यक्ष रूप से नहीं मदखाई देता लेमकन हाँ गौि रूप से देखा जरूर जा सकता है । मुमस्लम समाज की अखण्डता को जामतवादी अवधारिा ने ही खमण्डत मकया । इस्लाम की रूहानी आत्मा से सूफी उदारवाद जन्मा उसे इस्लाम के कट्टरपंथी िाह्मिवामदयों ने स्वीकार नहीं मकया और इसी कट्टरता ने मुमस्लम समाज की भीतर की नींव को कमज़ोर बनाया । ‘‘ नहीं तो क्या वजह थी मक जो भी महन्दुस्तानी कलमा पढ़ कर मुस्लमान बना , मुग़मलया सल्तनत में वह खामदम और चोबदार के ओहदे से ऊपर नहीं जा सका ... यही था मुगलों का जामतवाद ... इसी जामतवाद के चलते समदयों पहले महन्दू हारा था और इसी के चलते मुल्की-मुसलमान की मदद से मुग़ल महरूम थे । जैसे महन्दू क्षमत्रय का साथ महन्दू दमलत ने नहीं मदया था , वैसे ही मुग़ल- क्षमत्रय का साथ मुल्की-मुमस्लम-दमलत नें नहीं मदया था .. इसी इस्लामी-िाह्मिवाद ने अकबर की कोमशशों को नाकाम मकया था …।” 4
बांटता है इसी सन्दभा में सलमा , अदीब को कहती है मक ‘‘ इस्लाम की नज़र से पामकस्तान का बनना ही गुनाह है ... क्योंमक इस्लाम नफरत नहीं मसखाता , पर पामकस्तान की बुमनयाद नफ़रत पर रखी गई है .... इस्लाम जैसा मज़हब मकसी मुल्क की सरहदों में कै द कै से मकया जा सकता है ! कोई मजहब कै द नहीं मकया जा सकता है ... इस्लाम तो खासतौर से नहीं ।’’ 5
लेखक ने स्पसे करना चाहा है मक मनुष्ट्य की पहचान उसकी मानवता के आधार पर नहीं बमल्क जामतयों के आधार पर , धमा के आधार पर की जा रही है । 1947 में एक पामकस्तान बना लेमकन प्राचीन काल से लेकर अब तक प्रत्येक देश के भीतर कई पामकस्तान बनते आये हैं , और बनाये जाने की प्रमक्रया जारी है । हर व्यमक्त नफरत की आग जलाकर दूसरे व्यमक्त के मखलाफ एक दूसरा पामकस्तान बनाने की तैयारी में जुटा है । इसी सन्दभा में लेखक कहता है मक ‘‘ अब तो सब मुल्कों में नफरत का एक पामकस्तान बनाने की कोमशशे जारी हैं ..... क्या हुआ बोमस्नया में , क्या हुआ है साइप्रस में , क्या हुआ है तब के टूटे सोमवयत यूमनयन और अब के बने रमशयन फे डरेशन में । क्या हो रहा है आज के अफगामनस्तान में ? हर व्यमक्त नफरत के सहारे अपने ही लोगों के मखलाफ एक दूसरा पामकस्तान ईजाद करना चाहता है ।’’ 6 जब तक जामत , धमा , नस्ल की सवोच्चता तथा मवश्व शमक्त बनने का नशा नहीं टूटता तब तक पामकस्तान से पामकस्तान ही पैदा मकए जाते रहेंगे । कमलेश्वर इस सवोच्चता के नशे को तोड़ने के पक्षधर हैं और उस समाज का सपना देखते हैं जहाँ व्यमक्त मानवता के आधार पर पहचाना जाए न मक वगा , विा , धमा या नस्ल के आधार पर ।
मकसी भी संस्कृ मत को सीमाओं में नहीं बांधा जा
सकता और न ही उस पर एकामधकार ज़माया जा
सकता है हर मजहब मानवता की भार्षा मसखाता है
मजसमें प्रेम , ममत्रता , संवेदनशीलता , मववेक जैसे तत्व
मवद्यामान रहते हैं । कोई भी मजहब आत्माओंको नहीं
भारतीय समाज ने धमा मनरपेक्षता की संस्कृ मत का पाठ
सम्पूिा मवश्व को पढ़ाया और अपनी इसी मवशेर्षता के
कारि अपनी अलग पहचान भी बनाए हुए है ।
भारतीय देश में मवमभन्न प्रकार के लोग रहते हैं और
Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 .
वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017