Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 350

Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725
सकतने पासकस्तानः मानिता का दस्तािेज
भगिती देिी , िोधछािा सहंदी सिभाग , जम्मू सिश्वसिद्यालय , जम्मू ई-मेल-musicmusic176 @ gmail . com
र्ोन-8713076753
भारतीय समाज को कमजोर बनाने में सबसे बेहतरीन भूममका विा-व्यवस्था ने मनभाई है , इस व्यवस्था को तोड़ा नहीं जा सकता है । विावाद सम्बन्धी मवचारधारा वट वृक्ष की जड़ों की भांमत भीतर ही भीतर फै ल चुकी है तथा समाज को खोखला कर चुकी है । मूलतः समाज में प्रत्येक विा अपने आप में िाह्मिवादी मवचारधारा को ओढ़कर बैठा है । सामहत्य के क्षेत्र में विाव्यवस्था के मवरुध आवाज़ उठाई जा रही है और समानता का परचम लहराये जाने का प्रयास मकया जा रहा है , लेमकन समाज में जो बड़ा बनने की होड़ लगी है अन्ततः वही नफरत एंव तनाव में बदलती हुई एक नया पामकस्तान बनाने पर मज़ूबर कर देती है । कमलेश्वर इस उपन्यास के माध्यम से उन मानकों को प्रस्तुत करते हैं , मजनके आधार पर पामकस्तान खड़े मकए जाते रहे हैं और मकए जा सकते हैं । भारत के भीतर पहला पामकस्तान बनाये जाने का संके त सलमा के माध्यम से अमभव्यक्त होता हैं और उपन्यासकार के मलए पामकस्तान का अथा नफरत , सत्ता प्रामप्त की होड़ में दूसरे का शोर्षि , अनाचार , युद्ध से है । सलमा , अदीब के समक्ष जामतवाद के मवरुद्ध कहती है मक
तुम्हारे िाह्मिों ने अपना पामकस्तान बना मलया ।’’ 1 इसी के साथ ही कमलेश्वर िह्मा के मुख से एवं पैरों से पैदा हुए की धारिा को नकारते हुए स्त्री अमस्तत्व पर सवाल खड़ा करते है । प्राचीन काल से ही िाह्मिवादी मसद्धान्त ने स्त्री कोख से जुड़े यथाथा एवं स्त्री अमस्मता को गौि बनाया है । आयों के मजस दैवी मवधान में मस्त्रयों की अमस्मता को गौि बनाया वह मसद्धान्त कमलेश्वर के मलए अनगाल है । बोमध वृक्ष के माध्यम से लेखक ने विावादी मसद्धान्त को तका के आधार पर कसते हुए कहा है मक ‘‘ हम िह्मा के पैरों से पैदा नहीं हुए हैं‐‐‐‐आयो का विावाद एक अप्राकृ मतक मसद्धान्त है , क्योंमक िाह्मिों की पमत्नयों को भी मामसक धमा के चक्र से गुज़रना पड़ता है । वे भी गभावती होती हैं । वे भी बच्चों को जन्म देती है , उन्हें दूध मपलाती और उनका पालन पोर्षि करती हैं .... इतने पर भी यह आया िाह्मि , मजनका जन्म मस्त्रयों की कोख से होता है , यह दावा करते हैं मक वे िह्मा के मुख से पैदा हुए हैं ..... िह्मा के मुख में गभ ार्षय नहीं है ....।’’ 2 इस तरह से कहा जा सकता है मक स्त्री को अमस्तत्वहीन समझे जाने की धारिा विाव्यवस्थओंके मसद्धान्त से भी बहुत गहरा सम्बन्ध रखती है ।
जामतवाद की समस्या का मशकार के वल भारतीय समाज ही नहीं बमल्क मुमस्लम समाज भी रहा है और मजस समाज में भी जामतगत भेदभाव रहेगा वहां एकता का अभाव रहेगा । विाव्यवस्था एक बहुत बड़ा कारि रही है भारतीय अखण्डता को समाप्त करने के मलए , क्योंमक जहां जामत के आधार पर एकता स्थामपत की जाती है अगर क्षमत्रय समाज पर संकट के बादल छाये तो वह क्षमत्रय समाज देखे यमद दमलत समाज पर कोई खतरा मंडराए तो यह दमलत समाज की समस्या है । समाज के इसी भीतरी तनाव का लाभ बाहरी शासकों
‘‘ तुम्हारे िाह्मि ग्रन्थों के आधार पर ! ‐‐‐तुमने अपना वि ाश्रम धमा बना मलया था- हर बच्चा माँ के पेट से पैदा होता है पर तुम्हारे िाह्मिों और उनके ग्रन्थों में माँ की कोख का अपमान करते हुए मनुष्ट्य को िह्मा के अलग-अलग अंगों से पैदा करने का मसद्धान्त पैदा मकया ..... आज के शब्दों में कहूँ तो ने उठाया और एकजुटता की कमी के कारि भारत Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 . वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017