Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 347

Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725
तरनतारन में बनगामसंह की गद्दी । सामलग्राम के एक मशष्ट्य िह्मशंकर ममश्र ( महाराज सामहब ) हुए हैं । इनका जन्म सं० 1917 में तथा देहान्त सं० 1964 में हुआ । इनका समामध स्थल स्वामीबाग नाम से मवख्यात है । इनके अनंतर इनकी बड़ी बहन श्रीमती माहेश्वरी देवी ( बुआजी सामहबा ) गद्दी की उत्तरामधकारी बनी । महाराज साहब के दो अन्य मशष्ट्य कामता प्रसाद तथा ठाकु र अनुकू ल चन्द्र भी क्रमश आगरा तथा पवना ( पूवा बंगाल ) में अपनी गमद्दयाँ स्थामपत की , बुआजी सामहबा का देहान्त सं० 1969 में हुआ । इनके उत्तरामधकारी माधवप्रसाद मसंह ( बाबूजी साहब ) बने , कामताप्रसाद ( सरकार सामहब ) का देहावसान सं० 1971 में हुआ तथा उनकी गद्दी पर उत्तरामधकारी के रूप में सर आनदंस्वरूप ( साहेबजी ) बैठे । इनके देहान्त के उपरान्त राय साहब गुरुचरन दास मेहता इसी गद्दी के उत्तरामधकारी बने ।
तरनतारन में बनगामसंह की गद्दी के उत्तरामधकारी बाबा देवा मसंह बने , इसके सावनमसंह ( व्यास ) के मशष्ट्य-प्रमशष्ट्यों में जगतमसंह , चरनमसंह के नाम उल्लेखनीय हैं । 53
उपसंहार :
उत्तर मध्यकाल में लगभग 45 संत संम्प्रदाय और मवमभन्न पंथों में दीमक्षत संतों की एक लंबी परम्परा ममलती है । इन सन्तों ने अपने पंथ प्रचार के तथा मानव महत के मनममत्त जो उपदेश मद , वे ही सन्त वािीके रूप में सामहत्य की अमूल्य मनमध हैं । प्रत्येक पंथ के सभी संतों ने वािी प्रिीत नहीं की , मूलत : सन्त वामियाँ मौमखक रूप में थी , मजन्हें मशष्ट्यों-प्रमशष्ट्यों द्वारा मलमखत रूप में प्रस्तुत मकया गया । उत्तर मध्यकाल एक ऐसा काल रहा है , मजसमें संतों का उत्कर्षा हुआ , चाहे उनमें सम्प्रदायों की होड़ लग गयी थी , परन्तु मुझे तो यह प्रतीत होता है मक यह संत
समाज का स्विा-युग कहा जा सकता है क्योंमक इसमें लगभग 96 संत अवतररत हुए । इनका पररचय भी अपने आप में शोध का मवर्षय है ।
िहायक ग्रंथ िूची :
1-पीताम्बरदत्त बडथ्वाल , महन्दी काव्य में मनगु ाि सम्प्रदाय ( लखनऊ : अवध पमब्ल० हाऊस ) पृ० 122 , 128
2-मवष्ट्िुदत्त राके श , उत्तर भारत के मनगु ाि पंथ सामहत्य का इमतहास ( इलाहाबाद : सामहत्य भवन प्रा० मल०1975 ) पृ० 114
3-मत्रलोकी नारायि दीमक्षत , महंदी संत सामहत्य ( मदल्ली : राजकमल प्रकाशन , 1983 ) पृ० 57
4-मवष्ट्िुदत्त राके श , उत्तर भारत के मनगु ाि पंथ सामहत्य का इमतहास ( मदल्ली : राजकमल प्रकाशन , 1963 ) पृ० 118
5-परशुराम चतुवेदी , उत्तरी भारत की संत परम्परा ( इलाहाबाद : भारती भ . डार , 1964 ), पृ० 291
6-वही , पृ० 427 , 428
7-मत्रलोकी नारायि दीमक्षत ( महन्दी सन्त सामहत्य ( पूवोक्त )), पृ० 58
8-परशुराम चतुवेदी , उत्तरी भारत की संत परम्परा ( पूवोक्त ), पृ० 431
9-मत्रलोकी नारायि दीमक्षत ( महन्दी सन्त सामहत्य ( पूवोक्त )), पृ० 58
10-संतनारायि उपाध्याय , दादू दयाल ( कलकत्ता : ईश्वर गांगुली स्रीट , 1969 ), पृ० 22
11-वही , पृ० 52 , 53
Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 . वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017