Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 344

Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725
बालमुकु न्द दास , रामदास , सीताराम दास , हरनंदनदास इनके मशष्ट्य प्रमशष्ट्य हु ,। इनका प्रधान के न्द्र माँझी की Ûद्दी है । इस सम्प्रदाय के अनुयायी बमलया में ममलते है मजनका मूल सम्बन्ध परसा के मठ से है । इसी मठ से चैनराम बाबा प्रमसद्ध हुए । चैनराम बाबा के मशष्ट्य प्रमशष्ट्यों में महाराज बाबा , सुमदष्ठ बाबा तथा रघुपमतदास सामत्त्वकी हुए । इनके अन्तर लक्ष्मिदास , रामप्रसादजी , गोपालदास , पीतांबरदास , सीतारामदास , श्रीपालदास , संतरामदास आमद की परम्परा आती है । 33
चरनदासी सम्प्रदाय :
प्रस्तुत करता है , मदल्ली में इस सम्प्रदाय की तीन गमद्दयां हैं यथा – जुगतानंद , सहजोबाई , एवं रामरूप जी की गमद्दयाँ । इनके अनंतर सहजोबाई गद्दी के महंतों में गंगादास , वृन्दावन , शुककु ं ज मनवासी िह्मचारी प्रेमस्वरूप , रूप माधुरी शरि तथा सरस माधुरी शरि एवं अखैराम प्रभृमत महंत हुए हैं । 36
मनरंजनी सम्प्रदाय :
‘ मनरंजन ‘ शब्द को आधार बनाकर मनरंजनी सम्प्रदाय का प्रवतान स्वामी हररदास मनरंजनी ने 12वीं शताब्दी के लगभग राजस्थान के मवस्तृत क्षेत्र में मकया गोमवन्द मत्रगुिायत इस सम्प्रदाय को नाथ पन्थ की एक शाखा न कहकर सहमजया बौद्ध मसद्धों की
चरनदासी सम्प्रदाय को इसके अनुयायी शुक
सम्प्रदाय ही कहते हैं । इस सम्प्रदाय के संस्थापक
ही प्रशाखा माना है । 37 परन्तु यह राजस्थान में
व्यास पुत्र
शुकदेव माने जाते हैं , तथा प्रचारक ,
आमवभू
ात एक स्वतंत्र सम्प्रदाय है , मकसी मत की
सम्प्रदाय के प्रवताक आचाया के रूप में चरनदास की
शाखा नहीं , इस सम्प्रदाय की अपनी अलग मान्यताएँ
ही प्रमतष्ठा हुई है , इनका जन्म सं० 1760 में माना गया
हैं । 38 इस सम्प्रदाय मे ‘ मनरंजन ‘ शब्द का प्रयोग संत
है । 34 चरनदास ने मदल्ली को प्रमुख के न्द्र बनाकर
कमवयों ने मनगु
ाि िह्म के अथा में मकया है । यह मनरंजनी
उत्तर प्रदेश , मबहार , बंल , मध्यप्रदेश , राजस्थान तथा
शब्द इस सम्प्रदाय के सन्तों के नाम के अन्त में
पंजाब में प्रचार के न्द्र स्थामपत मक ,, मजनमें 52 के न्द्रों
अवश्यमेव व्यवहृत मकया जाता हैं , जैसे हररदास
को प्रमुख के न्द्रों या ‘ बड़ा थांभा ‘ के रूप में मान्यता
मनरंजनी , भगवानदास मनरंजनी , जगजीवन दास
प्राप्त हुई । इनके लगभग 52 मशष्ट्य कहे जाते हैं मजनमें
मनरंजनी , मनोहरदास मनरंजनी प्रभृमत । हररदास
जुगतानंद , सहजोबाई , दयाबाई आमद प्रमुख हैं ।
मनरंजनी इस सम्प्रदाय के प्रवताक थे । इनके कई मशष्ट्य
चरनदास ने अपना उत्तरामधकारी जुगतानंद को बनाया
प्रमसद्ध हुए इनके मशष्ट्यों-प्रमशष्ट्यों में जगजीवनदास ,
था , इस सम्प्रदाय का स्थापना काल सं ॰ 1781 माना
ध्यानदास , मोहनदास , र्षेमदास बड़े , भगवानदास ,
गया है तथा सं० 1781 में ही चरनदास द्वारा मशष्ट्य
मनोहरदास , पीपा , हरररामदास , अमरपुरूर्ष , सेवादास
परम्परा का प्रारम्भ कर इसे सम्प्रदाय का स्वरूप मदया
प्रभृमत सन्तों के नाम उल्लेखनीय हैं । 39
गया । 35 इनके द्वारा प्रवता सम्प्रदाय एक ऐसा समन्वय
का रूप था जहां दादू , दररया , मनरंजनी आमद मवमभन्न
मत , क ही मंच पर ममलते थे । इस सम्प्रदाय में मभक्षा
वृमत का , पंचदेव ( मवष्ट्िु , सूया , मशव , देवी गिेश ) युक्त
पूजा का मनर्षेध था परन्तु पंचदेवों में वे िह्मा , मवष्ट्िु ,
महेश को मवशेर्ष प्रधानता देते थे । वास्तव में यह
मशवनारायिी सम्प्रदाय :
सन्त मशवनारायि द्वारा मशवनारायिी
सम्प्रदाय प्रवता हुआ , मशवनारायि का आमवभ ाव
गज़ीजीपुर मजले ( बमलया ) में हुआ था , सम्प्रदाय के
प्रारमम्भक के न्द्र भी इसी मजले में है , इस सम्प्रदाय का
सम्प्रदाय मनगु
ाि एवं सगुि
समन्वयात्मक स्वरूप
Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 .
मवस्तार प्रायः सम्पूिा भारत के प्रमुख नगरों में हो चुका
वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017