Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 342

Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725
प्रिामी-सम्प्रदाय :
‘ प्रिामी ‘ या ‘ धामी ‘ सम्प्रदाय के प्रवताक सन्त प्रािनाथ कहे जाते हैं । संत प्रािनाथ ने समन्वय के आधार पर इस पन्थ का प्रवतान मकया । इन्होंने समकालीन धमा का पूिा रूप से अनुशीलन मकया । इसके अमतररक्त इन्हें अरबी , फारसी , महन्दी , वं संस्कृ त का भी अच्छा ज्ञान था , वेदों , कु रान , ईसाइयों की तथा यहूमदयों की धाममाक पुस्तकों का भी इन्होंने अध्ययन मकया था । इसी कारि इनके मवचार अत्यंत पररष्ट्कृ त हुए , इनके समन्वय का उदाहरि इनके द्वारा प्रिीत ‘ कु लजम स्वरूप ‘ नामक बृहद् ग्रन्थ है मजसका एक नाम ‘ तारतम्यसागर ‘ भी है । इस ग्ररन्थ में मवमभन्न भार्षाओं के साथ-साथ ईसाइयों यहूमदयों आमद के धाममाक मसद्धान्त भी ममलते हैं । इस ग्रंथ को मसखों के गुरु ग्रन्थ सामहब की तरह धामी सम्प्रदाय में भी पूजा जाता है । इस पंथ का प्रमुख के न्द्र पन्ना नगर का धामी ममन्दर है । 21 इस पंथ का एक अन्य नाम ‘ महाराज पंथ ‘ भी है । इस पंथ के पूवा नामों में मेराजपन्थ मखजड़ा एवं चकला कहा जाते हैं , परन्तु ‘ धामी ‘ एवं प्रिामी ( प्रािनाथी ) सम्प्रदाय नामकरि ही सवाप्रमसद्ध है । इस सम्प्रदाय के अनुयायी ‘ साचीभाई ‘ या ‘ भाई ‘ कहलाते हैं । 22
रामस्नेही सम्प्रदाय :
‘ रामस्नेही ‘ शब्द का अथा राम से स्नेह करने वाला या राम का स्नहे पात्र है । इस पंथ का नाम रामस्नेही कदामचत् इसमल , रखा गया क्योंमक इसके अनुयायी राम नाम की ही उपासना करते थे , और अपने राम नाम से स्नेह के कारि अनुयामययों की परम्परा रामस्नेही कहलायी । इस सम्प्रदाय का उद्भव मवक्रम की 18वीं शताब्दी में राजस्थान में हुआ , रामस्नेही सम्प्रदाय के आद्याचाया दररयासाहब ( मारवाड़ वाले ) ही कहे जा सकते हैं क्योंमक इनका
जन्म सं० 1733 की भाद्रपद शुक्ल असेमी को मारवाड़ के जैतारि नामक ग्राम में हुआ , आप रैि शाखा के प्रवताक थे । दूसरी तरफ मसंहथल खेड़ापा शाखा के प्रवताक हरर रामदास हैं , मजनका जन्म सं० 1750 से 1755 के लगभग अनुमामनत मकया जाता है तथा तीसरी शाखा ‘ शाहपुरा ‘ के प्रवताक रामचरि कहे जाते हैं इनका जन्म सं० 1776 में हुआ । 23 अतः जन्म-काल को देखते हुए दररया साहब ( मारवाड़ वाले ) ही इस सम्प्रदाय के प्रवताक कहे जा सकते हैं । संत दररया साहब तथा हरररामदास की मशष्ट्य परम्परा से सम्बमन्धत मववरि प्राप्त नहीं होता । परन्तु इतना अवश्य है मक इनके अनेक मशष्ट्य रहे होंगे । संत रामचरि के 225 मशष्ट्य कहे जाते हैं मजनमें 12 प्रमुख हैं - बल्लभराम , रामसेवक , रामप्रताप , चेतनदास , कान्हड़ दास , द्वारकादास , भगवानदास , राजन , देवदास , मुरलीदास , तुलसीदास , एवं नवलराम । 24 इस सम्प्रदाय में मनराकारोपासना की प्रमतष्ठा मुख्य रूप से की गई है । इनके उपासना गृह मसख गुरुद्वारों की भांमत सूने होते हैं तथा मध्य भाग में सम्प्रदाय प्रमुख की वािी सुसमज्जत रूप में मवराजमान रहती है । पूजा गृहों को रामद्वारा कहा जाता है । ‘ रामस्नेही ‘ समन्वय की तीनों शाखाओं के अलग-अलग रामद्वारे प्रमसद्ध हैं । रैिाशाखा के मद्वतीय आचाया हरखाराम हुए तृतीय आचाया रामकरि , चतुथा आचाया भगवद्दास तत्पिात् पांचवें आचाया रामगोपाल बने तथा उसके पिात् क्षमाराम । मसंहथल , खेड़ापा शाखा के मद्वतीय आचाया हरररामदास के पुत्र मबहारीदास मनयुक्त हुए परन्तु वे शीघ्र ही परमधाम मसधार गए , उन के अनंतर उनका पुत्र हरदेवदास पीठाचाया मनयुक्त हुए मफर खेड़ापा से हरररामदास के मशष्ट्य रामदास ने रामस्नेही शाखा स्थामपत की , इस शाखा के दूसरे आचाया के रूप में रामदास ने अपने पुत्र दयालु राम को खेड़ापा गद्दी का महन्त बनाया , उनके पिात् पू ाि दास इस महंत गद्दी
Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 . वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017