Jankriti International Magazine/ जनकृसत अंतरराष्ट्रीय पसिका
उसने सोचा
वह रसोई में गई
और आँगन के बीचोबीच
लाकर रख मदया
एक जल-भरा कटोरा
लेमकन सारस
उसी तरह करते रह
शहर की पररक्रमा
न तो उन्होंने ब म ु ढ़या को देखा
न जल भर कटोरे को
सारसों को तो पता तक नहीं था
मक नीचे रहते हैं लोग
जो उन्हें कहते हैं सारस
पानी को खोजत
द र ू -देसावर से आए थे व
सो उन्होंने गदान उठाई
एकबार पीछे की ओर देखा
न जाने क्या था उस मनगाह म
दया मक घृिा
पर एक बार जाते-जात
उन्होंने शहर की ओर म ड़ ु कर
देखा ज़रूर
मफर हवा म
अपने डैने पीटते हुए
द र ू रयों में धीरे -धीर
खो गए सारस 31
Vol. 3 , issue 27-29, July-September 2017.
ISSN: 2454-2725
इस कमवता में कमव ने सारस शहर और
ब म ु ढ़या के माध्यम से लोक और आध म ु नकता का एक
महत्वपूिा रूपक रचा है। द र ू देसावर से आए सारस
शहर में जल की खोज के मलए आए हैं , द र ू देसावर म
जल नहीं है , यह एक मबंडबना है , शहर जो उनकी
तरफ नहीं देखता, वह आध म ु नकता का अमतरे क है ,
और वह ब म ु ढ़या वह लोक है , जो शहर की ओर
मवस्थामपत होता जा रहा है , मजसने अपने अ द ं र म ल् ू य
चेतना को बचाए रक्खा है।
इस तरह हम देखते हैं मक के दार के यहा
आध म ु नकता के कई चेहरे हैं , जो कमव की कमवता म
मशद्दत के साथ प्रस्त त ु हैं। के दार के यहा
आध म ु नकताबोध एक म ल् ू य और लोक के साथ
स म ं श्लसे होकर एक जातीय चेतना की तरह आया है।
कुमार कृ ष्ट्ि के शब्दों में - “के दारनाथ मस ह ं की
कमवताएँ आध म ु नकतावाद और उग्र क्रा म ं तकारी
भटकाव के खतरे से अपने को बचाते हुए बेहतर
द म ु नया बनाने की मच त ं ा मलए हुए आगे बढ़ती है।
मनमित रूप से के दार जी को आत्मसंघर्षा करना पड़ा
होगा एवं नयी कमवता से लड़ने , उबरने की चेसेा भी
उनके भीतर मौज द ू रही होगी। हर महान कमव महान
स भ ं ावनाओ ं के साथ नये मसरे से लड़ाई लेने का
जोमखम लेता है और के दार की कमवताएँ उसी
जोमखम की कमवताएँ हैं जो आलोचकों को भी
जोमखम उठाने के मलए मजब र ू करती हैं। ” 32
इस तरह हम देखते हैं मक के दार की
आध म ु नकता का मवकास भी पमिम के मानकों पर
हुआ है लेमकन उनकी आध म ु नकता की अमद्वतीयता
यह है मक वह प ि ू त ा ः य र ू ोपीय न होते हुए भारतीय
आध म ु नकता है मजसकी जड़े भारत की जमीन में मौज द ू
हैं। उनकी कमवताओ ं में व्यक्त आध म ु नकता इसका
साक्ष्य प्रस्त त ु करती है।
वर्ष 3, अंक 27-29 जुलाई-सित ब ं र 2017