Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 334

Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725
यहाँ यह समझने की जरूरत है की के दार की कमवताएँ आद्यन्त अपने कलेवर और कथ्य में उम्मीद की रोशनी छु पाए हुए हैं । आधुमनकता की तमाम अच्छाइयों के बावजूद हमें यह तो स्वीकार करना ही होगा मक उसने मनुष्ट्य को अके ला बनाकर एक अजनबीयत के संसार में भेजा । आधुमनकता से उपजा आधुमनकीकरि कई तरह की मबडंबनाओं को भी साथ लेकर आया । मकन्तु यह गौर करने लायक बात है मक के दार की कमवताएँ आधुमनकताबोध से संमश्लसे होते हुए भी मनराशा , हताशा और अजनबीयत का वह अमतरेक अपमस्थत नहीं करती , जो प्रायः आधुमनक कमवयों में पाई जाती है । इसके कारिों की पड़ताल करते हुए हमें के दार की कमवताओं में लोक की वह चेतना ममलती है , जो समुदायबोध , संस्कृ मत और आशावाद में यकीन करती है । के दार स्वयं स्वीकार करते हैं मक वे शहरी जीवन की मबडंबनाओं से जब भी उबते हैं , अपने गाँव की ओर लौटकर जाते हैं । असल में यह लौटना आशावाद और लोक संस्कृ मत के समुदाय में लौटना है , जो के दार की कमवता की ताकत है , ऊज ा है ।
के दार के मलए लोक ‘ बैठेठाले की कल्पना ’ न होकर एक जातीय चेतना है , मजसकी भूममका इस कमठन समय में स्वयंमसद्ध है । लोक उनकी कमवता को अनुशामसत तो करता ही है , एक नई भार्षा और अमभव्यमक्त का अलहदा तकनीक भी प्रदान करता है । के दार जोड़ने वाले कमव हैं । मनुष्ट्य-मनुष्ट्य के भीतर रागात्मक संवेदना के तार झंकृ त कर भावात्मक एकता के मलए प्रयत्नशील । के दार मक कमवता घृिा के आवेग में भी कभी असंयममत नहीं होती – आधुमनकता में एक असंयम है , लोक में संयम । एक कमवता उदाहरि स्वरूप देखी जा सकती है – अंधेरा बज रहा है अपनी कमवता की मकताब रख दो
एक तरफ और सुनो सुनो अंधेरे में चल रहे हैं लाखओं करोड़ों
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उसी तरह ‘ अकाल में सारस ’ संग्रह की अनेक कमवताओं में लोक की वह चेतना देखी जा सकती है , जो के दार की आधुमनकताबोध को एक जातीय चररत्र प्रदान करती है , जामहर है मक वहाँ लोक और आधुमनकता का द्वन्द्व भी है । लेमकन आधुमनकताबोध और लोक की अंतमक्रा या के फलस्वरूप एक ऐसी चेतना प्रकट होती है , मजसका लक्ष्य मनुष्ट्य है । अकाल और सारस कमवता में कमव मलखता है – तीन बजे मदन में आ गए वे जब वे आए मकसी ने सोचा तक नहीं था मक ऐसे भी आ सकते हैं सारस .... सारे आसमान में धीरे-धीरे उनके क्रें कार से भर गया सारा का सारा शहर
वे देर तक करते रहे शहर की पररक्रमा देर तक छतों और बारजों पर उनके डैनों से झरती रही धान की सूखी पमत्तयों की गन्ध
अचानक एक बुमढ़या ने उन्हें देखा ज़रूर-ज़रूर वे पानी की तलाश में आए हैं
Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 . वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017