Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 333

Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725
मकसी पोथी से मछटककर मनु से बहस कर रहा है और रासो की कोई सबसे पुरानी प्रमत धीरे-धीरे गुनगुना रही है मकसी युवा कमव की अप्रकामशत कोई
कमवता 26
उपरोक्त अमद्वतीय मबंबों के अलावा के दार एक नई मशल्प , काव्य का एक नया मुहावरा और एक मबल्कु ल नई भार्षा लेकर महन्दी काव्य जगत में उपमस्थत होते हैं । कहा गया है मक आधुमनकता मवचारों में बदलाव के साथ कला माध्यमों के मशल्प और उसकी अमभव्यमक्त के तरीके में भी बदलाव करती है । के दार जब गीत मलखते हैं , तब भी उनकी भार्षा की ताजगी में उस नयेपन को महसूस मकया जा सकता है । के दार की भार्षा की एक ताकत उनकी सहजता और लोक शब्दावमलयों का कमवता में स्वाभामवक और समटक प्रयोग भी है । के दार कई बार अपनी भार्षा की अमद्वतीयता से चमत्कृ त करते हैं , एक जादू का-सा भाव-जगत रचने में सफल होते है-
झरने लगे नीम के पत्ते , बढ़ने लगी उदासी मन
की उड़ने लगी बुझे खेतों से झुर-झुर सरसों की रंगीनी धूसर धूप हुई मन पर ज्यों – सुमधयों की चादर अनबीनी ..। 27
‘ माँझी का पुल ’ भार्षा और संवेदना के संगुफन का अद्भुद काव्य है । इस कमवता की एक पंमक्त देखें – मछमलयां अपनी भार्षा में क्या कहती हैं पुल को ? सू ंस और घमड़याल क्या सोचते हैं ? कछु ओं को कै सा लगता है पुल जब वे दोपहर बाद की रेती पर
अपनी पीठ फै लाकर उसकी मेहराबें सेंकते हैं ? 28 के दार की उक्त कमवताओं से हमें उनके भामर्षक सजगता और और उसके प्रयोग की नवीनता का अहसास हो जाता है । ऐसी अनेक कमवताएँ हैं जो उदाहरि स्वरूप यहाँ रखी जा सकती हैं । बकौल के दारनाथ मसंह – “ कमवता का सबसे सीधा संबंध भार्षा से हैं । भार्षा प्रेर्षिीयता का सवासुलभ माध्यम है । अतः ‘ शुद्ध कमवता ’ जैसी मकसी चीज की कल्पना मबलकु ल बेमानी है ।” 29 जामहर है के दार के मलए भार्षा का महत्व कमवता से भी अमधक है – यह भामर्षक सजगता उन्हें आधुमनकता के एक स्वकीय संसार में ले जाती है , जहाँ के दार सबके के मलए सवा सुलभ लगने लगते हैं । उनकी लोक मप्रयता का एक कारि यह भी है । इस पर ध्यान मदया जाना चामहए ।
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आधुमनकताबोध को जातीय चररत्र ममलता है लोक जीवन से जो आज भी मुख्यतः गाँव का जीवन है । यह अंचलवाद नहीं है , बमल्क आधुमनकता को ममट्टी के सोंधे भुरभुरेपन से जोड़ने का आग्रह है । माझी का पुल के कमव के दारनाथ मसंह में नागाजु ान की तरह देसीपन ममलता है । उन्होंने नई सभ्यता द्वारा मानवीय मूल्य और संवेदना पर उपमस्थत संकट को ‘ अकाल और सारस ’ के अकाल के रूपक में बांधा है । इस संकट के माहौल में भी आशा के कु छ बचे मजह्न हैं । कोई कह सकता है मक तुच्छता , मवखंडता , और ढोंग के इस सवाग्रासी माहौल में आशावाद बैठेठाले की कल्पना है , यह कमवता के स्वराज में एक सामामजक घुसपैठ है । वस्तुतः जीवन का असल तत्त्व यह आशा ही है । कमवता भी तभी तक है , जब तक आशा है ।
Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 . वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017