Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 332

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Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725
वक्तव्यों के आधार पर जब हम उनकी कमवताओंको आधुमनकता और आधुमनकता बोध की कसौटी पर कसते हैं तो हम यह पाते हैं मक कमव ने अपनी कमवता में उक्त वक्तव्यों का आद्यन्त मनव ाह मकया है । के दार की एक बड़ी मवशेर्षता उनकी नवीन भार्षा और उनके द्वारा व्यक्त सवाथा नूतन और अछू ते मबंब भी हैं ।
के दार जी द्वारा प्रयुक्त आधुमनक और अछू ते मबंबों के कु छ उदाहरि यहाँ देखे जा सकते हैं –
[ 4.1 ]
इस अनागत को करें क्या ? जो मक अक्सर मबना सोचे , मबना जाने सड़क पर अचानक चलते दीख जाता है हर नवागंतुक उसी की तरह वह दरपनों में
कौंध जाता है हाथ उसके हाथ में आकर मपघल जाते स्पशा उसका धममनयों को रौंद जाता है पंक फसकी सुनहली परछाइयों में खो गए हैं पांव उसके कु हासे में छटपटाते हैं । 23
[ 4.2 ]
एक लकीर पृथ्वी के सारे आक्षांशों से होती हुई जहाँ सौर सौर-मंडल के पास खो जाती है वहाँ मैं खड़ा हूँ मछु ए का एक जाल नदी से मनकालकर धरा हुआ मेरे मचर आमदम कन्धों पर-
तरह है
यह मेरा नगर है ..। 24
[ 4.3 ] खोल दू ँ यह आज का मदन मजसे मेरी देहरी के पास कोई रख गया है एक हल्दी-रंगे ताजे , दूरदशी पत्र-सा थरथराती रोशनी में हर संदेस की तरह यह भटका संदेशा भी अनपढ़ा ही न रह जाय सोचता हूँ खोल दू इस संपुमटत मदन के सुनहरे पत्र को जो द्वार पर गुमसुम पड़ा है खोल दू .. हाथ मजसने द्वार खोला मक्षमतज खोले मदशाएँ खोली न जाने क्यों इस महकते मूक , हल्दी रंगे , ताजे मकरि-मुमद्रत संदेशे को खोलने में काँपता है । 25 xx xx आप पाएँगे वहाँ शब्दों ने पीसकर समय को बराबर कर मदया है और अब वहाँ सारा समय एक जगह इस
मक आपको लगेगा जैसे िह्मसूत्र पढ़ रहा है मुमक्तबोध को और शाकु ं तल का महरन कु छ कह रहा है पद्मावत को तोते से और बीजक का कोई पद
Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 . वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017