Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 331

Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725
लगते हैं , बोलने चालने लगते हैं और के दार की कमवता का एक नया मुहावरा रचते हैं ।
के दार की यह अपनी आधुमनकता है , जो आमजात आधुमनकता से मभन्न उनकी अपनी अनुभवजन्य आधुमनकता है मजसका उल्लेख वे यह कहकर करते हैं मक उनके मलए आधुमनकता सबसे पहले उनका अपना अनुभव है । कहना चामहए मक उनके अनुभव का मवस्तार बहुत व्यापक है ।
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आधुमनकता एक सतत मवकासमान और सातत्य प्रमक्रया है । समय , काल और पररवेश के साथ इसके स्वरूप और अवधारिा में पररवतान होता रहता है । उपर कहा गया है मक हर लेखक की भी आधुमनकता की अपनी अलग अवधारिा होती है , जो उसकी जमीन और पररवेश से संचामलत और मनयंमत्रत होती है । आधुमनकता का एक अथा नयापन और उन वमजात क्षेत्रों में प्रवेश भी है जहाँ तक पहुँचने की समदयों से घोमर्षत मनाही रही है । यह एक तरह का नूतन ‘ एडवेंचर ’ है , जो नए की तालाश के मलए मकया जाता है । कला के क्षेत्र में इसका अथा मवचारों के साथ ही रूप में भी नूतन मवकास और स्थापना के रूप में समझा जाना चामहए ।
के दार की कमवताओं में शुरू दौर से ही यह नयापन और बदलाव देखने को ममलता है । पहली बार के दार की कई कमवताएँ एक साथ उनकी मटप्पिी के साथ तार सप्तक में प्रकामशत हुई। ं तारसप्तक में कमवताओं का प्रकामशत होना के दार जैसे युवा कमव के मलए एक उपलमब्ध की तरह थी । बहरहाल के दार ने कमवताओं के साथ जो वक्तव्य मदए हैं उसे पढ़ना और समझना उनके बोध को समझने में मददगार हो सकता है । के दार तारसप्तक के अपने वक्तव्य में मलखते हैं – “ कमवता में मैं सबसे अमदक ध्यान देता हूँ मबम्ब-
मवधान पर । मबम्ब मवधान का संबंध मजतना काव्य की मवर्षय वस्तु से होता है , उतना ही उसके रूप से । ... मानवीय संस्कृ मत का इमतहास चेतना के मवकास का इमतहास है । इस मवकास के साथ-साथ काव्यात्मक मबंबों के स्वरूप तथा पद्धमत में भी अंतर आता गया है ।... मानव संस्कृ मत के मवकास में कमव का योग दो प्रकार से होता है – नवीन पररमस्थमतयों के तल में अंतःसमलला की तरह बहती हुई अनुभूत लय से अमवश्कार के रूप में , तथा अछू ते मबंबों की कलात्मक योजना के रूप में ।” 20 वे आगे उसी वक्तव्य में उल्लेख करते हैं – “ मबना मचत्रों , रूपकों और मबम्बों की सहायता के मानव-अमभव्यमक्त का अमस्तत्व प्रायः असंभव है ... मबंब मनमााि की यह प्रमक्रया पूरे मानव-जीवन में फै ली हुई है ।” 21 उसी वक्तव्य में वे एक बहुत महत्वपूिा और रूमचकर बात भी कहते हैं मजसपर अलग से ध्यान देने की जरूरत है । मलखते हैं – “ नयी कमवता की मवमशसेता की परीक्षा न तो चररत-मचत्रि की पूवा-प्रचमलत पद्धमत पर हो सकती है , न प्राचीन रसवाद के मनयमों के आधार पर ; यद्दमप में यह मानता हूँ मक रस की सत्ता से इनकार करना काव्य की सत्ता से ही इनकार करने के समान है । पर आधुमनक कमवता में रस की धारिा बदल गई है । .. एक आधुमनक कमव की श्रेष्ठता की परीक्षा उसके द्वारा आमवष्ट्कृ त मबंबों के आदार पर ही की जा सकती है । उसकी मवमशसेता और उसकी आधुमनकता सबसे अमधक उसके मबंबों में ही व्यक्त होती है ।” 22 के दार के उपरोक्त वक्तव्य अंशों से जो मनष्ट्कर्षा मनकलते हैं उनमें पहला यह है मक उनका सबसे अमधक ध्यान मबंबों पर है । दूसरे वे रस की सत्ता को स्वीकार करते हुए भी प्राचीन रस मसद्धांत के आधार पर आधुमनक कमवता के मूल्यांकन को खाररज करते हैं और तीसरे मक मकसी कमव की आधुमनकता सबसे अमधक उसके द्वारा प्रयुक्त मबंबों में प्रकट होती है । के दार के उपरोक्त
Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 . वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017